All Party Delegation: कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर, सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी इन दिनों विदेशी दौरों पर भारत का परचम लहरा रहे हैं. लेकिन रुकिए, कहानी में ट्विस्ट है. उनकी अपनी पार्टी ही उनकी तारीफों के पुल बांधने के मूड में नहीं है. आखिर माजरा क्या है?
दरअसल, मोदी सरकार ने हाल ही में एक खास रणनीति बनाई. मकसद? दुनिया को बताना कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत कितना गंभीर है. इसके लिए सरकार ने ऑल-स्टार टीम बनाई, जिसमें कांग्रेस के बड़े नाम शामिल किए गए. कभी विदेश मंत्री रह चुके सलमान खुर्शीद, एक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनकर विदेश गए. वहीं, अपनी बेबाक बातों और शानदार अंग्रेजी के लिए मशहूर शशि थरूर ने तो एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल की कमान संभाली. मनीष तिवारी भी पीछे नहीं रहे और उन्होंने खाड़ी व अफ्रीकी देशों में भारत का पक्ष मजबूती से रखा.
इन नेताओं ने अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से लेकर कई देशों के नेताओं के सामने भारत की बात रखी. खासकर, पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. खुर्शीद ने तो मलेशिया में कमाल कर दिखाया. तीन दिन की यात्रा के बाद मलेशिया के प्रधानमंत्री से समर्थन का पत्र मिला, और पाकिस्तान को निराश होकर प्रेस विज्ञप्ति जारी करनी पड़ी. थरूर ने भी साफ कहा, “राष्ट्रीय हित के लिए काम करना कोई पार्टी विरोधी काम नहीं. जो ऐसा सोचते हैं, उन्हें खुद पर सवाल उठाने चाहिए.” मनीष तिवारी ने भी अपने दौरे की तारीफ की और कहा कि उन्होंने पाकिस्तान के आतंकी मंसूबों को दुनिया के सामने ला दिया.
लेकिन कांग्रेस को क्यों नहीं भा रहा?
अब यहीं से कहानी में मसाला आता है. इन नेताओं की मेहनत और कामयाबी की तारीफ सुनकर आपको लग रहा होगा कि कांग्रेस पार्टी खुशी से झूम रही होगी. लेकिन नहीं, पार्टी का कहना है कि इन विदेशी दौरों से कुछ खास हासिल नहीं हुआ. कांग्रेस के प्रवक्ता अजॉय कुमार ने कहा, “सरकार ने इन प्रतिनिधिमंडलों को कोई ठोस स्क्रिप्ट ही नहीं दी.” उनका ये भी आरोप है कि इन नेताओं ने न तो बड़े विदेशी नेताओं से मुलाकात की और न ही चीन जैसे देशों का नाम लिया, जो पाकिस्तान का साथ दे रहा है.
इतना ही नहीं, कांग्रेस ने तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भी आलोचना करने से परहेज किया, जिन्होंने एक बार दावा किया था कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराया. हालांकि, ट्रंप बाद में अपनी बात से मुकर गए, लेकिन कांग्रेस का गुस्सा कम नहीं हुआ. पार्टी का कहना है कि ये सारी कवायद बेकार थी और मीडिया कांग्रेस को ही कांग्रेस के खिलाफ खड़ा करने में जुटा है.
“हम देश के लिए लड़े, पार्टी के लिए नहीं”
खुर्शीद, थरूर और तिवारी ने इस आलोचना को हल्के में नहीं लिया. खुर्शीद ने साफ कहा कि वो पूरे दौरे के दौरान पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के संपर्क में थे. उन्होंने मलेशिया का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के सदस्य देश ने भारत का साथ दिया. थरूर ने तो और सख्त लहजे में कहा, “राष्ट्रीय हित से बड़ा कुछ नहीं.” तिवारी ने भी अपने दौरे की सफलता का बखान किया और कहा कि उन्होंने खाड़ी देशों में पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब किया.
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असली टकराव कहां है?
सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस क्यों अपनी ही पार्टी के नेताओं की तारीफ सुनने को तैयार नहीं? जानकारों का कहना है कि ये मामला सिर्फ रणनीति का नहीं, बल्कि पार्टी के अंदरूनी सियासत का भी हो सकता है. एक तरफ थरूर, खुर्शीद और तिवारी जैसे नेता राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ पार्टी का एक धड़ा सरकार की हर बात का विरोध करने के अपने पुराने स्टैंड पर कायम है.
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस को डर है कि अगर वो इन दौरों की तारीफ करती है, तो ये सरकार की जीत मानी जाएगी. लेकिन इस चक्कर में पार्टी अपने ही नेताओं की मेहनत को नजरअंदाज कर रही है. और यही वजह है कि थरूर और खुर्शीद जैसे नेता खुलकर बोल रहे हैं कि देश पहले है, पार्टी बाद में.
इस पूरे ड्रामे में एक बात तो साफ है कि भारत की वैश्विक छवि को मजबूत करने की कोशिश में कांग्रेस के ये नेता कोई कसर नहीं छोड़ रहे. लेकिन उनकी अपनी पार्टी का रुख उनके लिए नई चुनौती बन रहा है. क्या कांग्रेस अपने नेताओं की मेहनत को सलाम करेगी? या फिर ये सियासी टकराव और गहरा होगा? ये तो वक्त ही बताएगा.
