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आज देशभर में संविधान दिवस (Samvidhan Divas) मनाया जा रहा है. 76 वर्ष पहले 26 नवंबर 1949 को भारत ने अपना संविधान अपनाया था, जिसे दो महीने बाद, 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. यह दिन राष्ट्र के लोकतांत्रिक इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण तारीखों में से एक माना जाता है. ग़ौरतलब है कि तत्कालीन दौर में भी दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान को तैयार करना आसान नहीं था. क्योंकि, आज़ादी के बाद भारत को विरासत में चौतरफ़ा चुनौतियां और मुफ़लिसी ने घेर रखा था. तब भारत बंटवारे के घावों से जूझ रहा था. 500 से अधिक रियासतों को एकजुट करना था. करोड़ों विस्थापितों का पुनर्वास करना था, प्रशासनिक ढांचे को नए सिरे से खड़ा करना था और ऐसे विविध देश में कानूनों के एकीकरण की चुनौती भी सामने थी.
इसी पृष्ठभूमि में संविधान को लागू करना, असल में भारत को नए राष्ट्र के रूप में पुनर्गठित करने भगीरथ काम था. यही कारण है कि इसे दुनिया के सबसे कठिन संविधान-प्रवर्तन (Constitution Implementation) प्रयासों में से एक माना जाता है और यह परिचय आज भी इस दिन को विशेष पहचान देता है.
ग़ौरतलब है कि 2015 से पहले 26 नवंबर को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाया जाता था. लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद उसी वर्ष इसे ‘संविधान दिवस’ घोषित किया, जो डॉ. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के वर्ष में राष्ट्र को संविधान के प्रति फिर से जागरूक करने का प्रयास था.
कैसे बना भारतीय संविधान?
संविधान सभा ने संविधान का मसौदा तैयार करने में कुल 2 साल, 11 महीने, 18 दिन का समय लिया. संविधान सभा में भारत के एक बढ़कर एक दानिशमंद लोग इसकी ड्राफ्टिंग में जुटे थे. सतत बहस और उनका आला दर्जे के निराकरण के बाद संविधान के तमाम क्लॉजेज को अपनाने का काम किया गया. 7,600 से अधिक संशोधन प्रस्तावित हुए, इनमें से 2,400 संशोधन मंज़ूर किए गए. कुल 114 दिन धारावार विषयों पर चर्चा में लगे. वर्तमान में संविधान में 395 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियां शामिल हैं. इसे समय-समय पर विभिन्न संशोधनों के माध्यम से और भी सशक्त बनाया गया.
भारत के प्रमुख संविधान संशोधन
संविधान बनने के बाद से लेकर अब तक कई ऐसे संशोधन हुए, जो भारत की दशा और दिशा बदलने में अपना रोल अदा किए. कई संविधान संशोधन युगांतरी और मील का पत्थर साबित हुए, तो कई ऐसे विवादित रूप भी इख़्तियार किए, जिसके चलते भारत की राजनीतिक धारा में बड़ा बदलाव देखने को मिला. नीचे उन्हीं महत्वपूर्ण एवं युगांतरी संशोधनों का ज़िक्र है.
42वां संशोधन (1976)या ‘मिनी संविधान’
इस संविधान संशोधन को ख़ास तौर पर आलोचक मिनी संविधान का तमग़ा देते हैं. दरअसल, इस संविधान संशोधन का कालखंड तब का है, जब देश में आपातकाल लागू था और इंदिरा गांधी की सरकार ने बड़े स्तर पर संविधान के डायनेमिक्स में परिवर्तन करने का जोखिम उठाया था. इसमें,
- प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्द जोड़े गए
- मौलिक कर्तव्यों को शामिल किया गया
- केंद्र की शक्तियों में वृद्धि और न्यायपालिका की शक्तियों में कटौती की गई
44वां संशोधन (1978)
इमरजेंसी ख़त्म होने के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ. इस दौरान 42वें संविधान संशोधन की कई विवादित धाराओं को ख़त्म करने का काम किया. जिनमें,
- 42वें संशोधन की कई विवादित धाराएं रद्द की गईं
- आपातकाल संबंधी प्रावधानों में सुधार किया गया
- संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर कानूनी अधिकार बनाया गया
61वां संशोधन (1989)
राजीव गांधी के कार्यकाल में हुए इस संविधान संशोधन को काफ़ी अहम माना जाता है. इसी दौरान कुछ ऐसे संशोधन हुए जिसने देश के लोकतंत्र को एक अलग ही मुक़ाम और दिशा दी.
- मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई
86वां संशोधन (2002)
नागरिकों के मौलिक अधिकारों में इस संविधान संशोधन मील का पत्थर साबित हुए. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार ने इस संशोधन के ज़रिए शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाए.
- 6–14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा मौलिक अधिकार बनी (अनुच्छेद 21A)
- माता-पिता के लिए शिक्षा सुनिश्चित करने का कर्तव्य जोड़ा गया (अनुच्छेद 51A(k))
101वां संशोधन (2016)
देश की आर्थिक नीतियों और कर व्यवस्था में एक बड़ा युगांतरी अध्याय जोड़ा गया. हालाँकि, इसका एक अलग आलोचनात्मक पक्ष भी ज़रूर है. लेकिन, इस पर जानकारों का मत भी बंटा हुआ रहता है.
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू करने का प्रावधान जोड़ा गया
- देश में एकीकृत कर प्रणाली स्थापित हुई
वे 10 ऐतिहासिक फैसले जिन्होंने संविधान को दिशा दी
संविधान को संसदीय संशोधन के अलावा सुप्रीम कोर्ट के ज़रिए क़ानूनी व्याख्या ने भी लोकहित में की मील के पत्थर वाले फ़ैसले दिए. देश की सर्वोच्च अदालत के फ़ैसलों ने भी समय-समय पर ऐसे फ़ैसले दिए, जिसने सिस्टम को एक अलग खाँचे में लाकर खड़ा कर दिया. उन्हीं में से नीचे 10 ऐतिहासिक फ़ैसलों का ज़िक्र है,
- गोलकनाथ बनाम पंजाब (1967)
संसद की मौलिक अधिकारों में संशोधन की शक्ति सीमित की गई
- केशवानंद भारती केस (1973)
मूल संरचना सिद्धांत की स्थापना-संसद संविधान की मूल संरचना नहीं बदल सकती
- इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975)
मुक्त और निष्पक्ष चुनाव को संविधान की मूल संरचना घोषित किया गया
- मेनका गांधी बनाम भारत सरकार (1978)
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की सीमा बेहद विस्तृत हुई
- मिनर्वा मिल्स केस (1980)
संसद की असीमित संशोधन शक्ति असंवैधानिक ठहराई गई
- ओल्गा टेलिस केस (1985)
जीविका का अधिकार, जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा माना गया
- एस.आर. बोम्मई केस (1994)
राष्ट्रपति शासन (Article 356) पर न्यायिक समीक्षा लागू
केंद्र द्वारा राज्यों में मनमाने ढंग से राष्ट्रपति शासन लगाने पर रोक
- पुट्टस्वामी केस (2017)
निजता का अधिकार मौलिक अधिकार घोषित
- एनसीटी दिल्ली बनाम भारत सरकार (2018)
दिल्ली सरकार के अधिकारों को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि LG मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करेगा
- एडीआर बनाम भारत सरकार (2024)
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना रद्द, इसे असंवैधानिक और अपारदर्शी बताया गया
संविधान: एक जीवंत दस्तावेज़
संविधान दिवस सिर्फ इतिहास को याद करने का दिन नहीं, बल्कि उन मूल्यों को समझने का अवसर है जिन पर भारतीय लोकतंत्र खड़ा है. भारत लगातार सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन संविधान की सबसे बड़ी ताकत यही है कि वह समय के साथ बदल सकता है. विकसित भी होता है, पर अपने मूल सिद्धांतों न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की रक्षा करता रहता है.
