Patanjali Ayurveda: दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurveda) को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ भ्रामक और अपमानजनक विज्ञापन प्रसारित करने से रोकने का अंतरिम आदेश जारी किया है. दिल्ली हाई कोर्ट के इस आदेश से पतंजलि को बड़ा झटका लगा है. यह फैसला डाबर इंडिया लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई के बाद आया, जिसमें पतंजलि पर डाबर के उत्पाद को बदनाम करने और उपभोक्ताओं को गुमराह करने का आरोप लगाया गया था. मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी.
डाबर की याचिका और पतंजलि के दावों पर विवाद
डाबर ने अपनी याचिका में कहा कि पतंजलि के विज्ञापनों में झूठे और भ्रामक दावे किए गए हैं, जिसमें यह कहा गया कि केवल पतंजलि ही आयुर्वेदिक शास्त्रों के अनुसार ‘असली’ च्यवनप्राश बनाती है. डाबर ने आरोप लगाया कि पतंजलि ने अपने विज्ञापनों में डाबर च्यवनप्राश को ‘साधारण’ और कमतर बताकर उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की. डाबर के वकील संदीप सेठी ने कोर्ट में तर्क दिया कि पतंजलि ने दावा किया कि उनका च्यवनप्राश 51 से अधिक जड़ी-बूटियों से बना है, जबकि वास्तव में इसमें केवल 47 जड़ी-बूटियां हैं. इसके अलावा, डाबर ने पतंजलि के उत्पाद में पारा (Mercury) की मौजूदगी का भी आरोप लगाया, जो बच्चों के लिए असुरक्षित हो सकता है.
The Delhi High Court on Thursday restrained #Patanjali Ayurved from running advertisements allegedly disparaging to Dabur's Chyavanprash product.
— Live Law (@LiveLawIndia) July 3, 2025
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कोर्ट का अंतरिम आदेश
न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा की एकल पीठ ने डाबर की अंतरिम राहत की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा- ‘इस स्तर पर डाबर की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने वाले किसी भी विज्ञापन को रोका जाना आवश्यक है.’ कोर्ट ने स्पष्ट किया कि व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि कोई कंपनी दूसरी कंपनी को बदनाम कर सकती है. आदेश में पतंजलि को निर्देश दिया गया कि वह डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ कोई भी अपमानजनक या भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित या प्रसारित नहीं करेगी.
पतंजलि की दलील और कोर्ट की प्रतिक्रिया
पतंजलि की ओर से वरिष्ठ वकील जयंत मेहता और राजीव नायर ने दलील दी कि उनके विज्ञापनों में किसी विशिष्ट ब्रांड का नाम नहीं लिया गया और यह सामान्य प्रचार का हिस्सा था. हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि विज्ञापनों की सामग्री स्पष्ट रूप से डाबर के उत्पाद को निशाना बनाती है और उपभोक्ताओं में भ्रम पैदा करती है. कोर्ट ने प्रारंभिक तौर पर माना कि पतंजलि के दावे झूठे और भ्रामक हैं, खासकर आयुर्वेदिक उत्पादों के संदर्भ में.
डाबर का मार्केट शेयर और हर्जाने की मांग
डाबर ने कोर्ट को बताया कि वह च्यवनप्राश बाजार में 61.6% हिस्सेदारी रखता है और पतंजलि के विज्ञापन उनकी साख और उपभोक्ता विश्वास को नुकसान पहुंचा रहे हैं. डाबर ने पतंजलि पर 2 करोड़ रुपये का हर्जाना लगाने की मांग की है, क्योंकि इन विज्ञापनों से उनकी ब्रांड छवि को ठेस पहुंची है. डाबर के वकील ने यह भी बताया कि दिसंबर 2024 में समन जारी होने के बावजूद, पतंजलि ने एक सप्ताह में 6,182 बार भ्रामक विज्ञापन प्रसारित किए.
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पतंजलि का विवादों से पुराना नाता
पतंजलि का भ्रामक विज्ञापनों को लेकर विवादों में घिरने का इतिहास रहा है. इससे पहले, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पतंजलि पर कोविड और अन्य बीमारियों के इलाज के लिए झूठे दावे करने का आरोप लगाया था. नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने का आदेश दिया था, लेकिन कंपनी ने इसका पालन नहीं किया.
