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‘आडवाणी की गिरफ्तारी’ से ‘चरवाहा विद्यालय’ तक… 78 की उम्र में भी बिहार की राजनीति में ऐसे ही लालू यादव सुप्रीमो नहीं बने

Lalu Prasad Yadav

लालू प्रसाद यादव

Lalu Prasad Yadav: बिहार की राजनीती से लेकर देश की राजनीतिः में सबसे सक्रीय चेहरों में से एक लालू प्रसाद यादव आज अपना 78वां जन्मदिन मना रहे हैं. जेपी के आंदोलन से कई बड़े नेता निकले थे, जिसमें से एक लालू भी रहे. लालू ने पहली बार जब चुनावी मैदान में कदम रखा तो उन्होंने जीत दर्ज की थी. उन्हें राजनीति का शकुनि भी कहा जाता है. 78 की उम्र में पहुंचे लालू भले ही आज किसी के सहारे से चलते हैं, लेकिन आज भी चुनावी रणनीति उनका सहारा ढूंढती है.

लालू ने बिहार के मुख्यमंत्री और केंद्रीय रेल मंत्री रहते हुए (1990-1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री और 2004-2009 तक केंद्रीय रेल मंत्री) कई बड़े फैसले लिए जो आज भी उनकी छाप को दर्शाता है. लालू के ये फैसले सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे और इनका बिहार और भारतीय रेलवे पर गहरा प्रभाव पड़ा.

लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी (1990)

    लालू प्रसाद यादव ने 23 सितंबर 1990 को समस्तीपुर में राम रथ यात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवाया था. यह फैसला राम मंदिर आंदोलन और सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए लिया गया था.

    लालू के इस कदम ने लालू को धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में स्थापित किया और मुस्लिम समुदाय के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ाई. यह उनके MY (मुस्लिम-यादव) गठजोड़ को मजबूत करने में मील का पत्थर साबित हुआ, जो आज तक चल रहा है.

    ‘चरवाहा विद्यालय’ की स्थापना

      लालू ने ग्रामीण और पिछड़े समुदायों के बच्चों की शिक्षा के लिए चरवाहा विद्यालय योजना शुरू की, जिसका नारा था ‘गैया बकरी चरती जाए, मुनिया बेटी पढ़ती जाए.’

      इस योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को बढ़ावा दिया, खासकर उन बच्चों के लिए जो पशु चराने में व्यस्त रहते थे. इससे सामाजिक समावेश और शिक्षा का प्रसार हुआ.

      पिछड़े वर्गों को सशक्तिकरण

        लालू ने ‘मंडल आयोग’ की सिफारिशों को लागू करने का समर्थन किया और बिहार में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) और दलित समुदायों को राजनीतिक और सामाजिक मंच प्रदान किया.

        इस फैसले ने बिहार में ऊंची जातियों के प्रभुत्व को कम किया और OBC समुदायों की सियासी ताकत बढ़ाया. हालांकि, गैर-यादव OBC समुदाय बाद में उनसे अलग हो गए.

        अंग्रेजी भाषा की नीति (1993)

          लालू ने स्कूलों में अंग्रेजी को पाठ्यक्रम में फिर से शामिल करने की नीति अपनाई. इस कदम ने ग्रामीण छात्रों को वैश्विक भाषा तक पहुंच दी, जिससे उनकी शैक्षिक और रोजगार की संभावनाएं बढ़ीं. यह शिक्षा के क्षेत्र में प्रगतिशील कदम था.

          रेलवे का कायाकल्प (2004-2009)

            रेल मंत्री के रूप में लालू ने भारतीय रेलवे को घाटे से मुनाफे में लाने के लिए कई सुधार किए, जैसे डायनामिक प्राइसिंग, बोगी की संख्या बढ़ाना, और गैर-किराया राजस्व बढ़ाना.

            भारतीय रेलवे को 90,000 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ, और लालू के ‘प्रबंधन मॉडल’ की चर्चा IIM अहमदाबाद जैसे संस्थानों में केस स्टडी के रूप में हुई.

            गरीब रथ ट्रेन की शुरुआत

              लालू यादव ने रेल मंत्री रहते हुए ‘गरीब रथ’ ट्रेन शुरू की, जो कम कीमत में एसी कोच में यात्रा की सुविधा प्रदान करती थी. इसने गरीब और मध्यम वर्ग के यात्रियों को सस्ती और आरामदायक रेल यात्रा का विकल्प दिया, जिससे रेलवे की लोकप्रियता बढ़ी.

              रेलवे में कुली (पोर्टर) सुधार

                रेलवे में कुलियों को लाइसेंसधारी पोर्टर का दर्जा दिया और उनकी सुविधाओं में सुधार किया, जैसे वर्दी और बैज प्रदान करना. इसने कुलियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार किया, जिससे उनकी गरिमा बढ़ी.

                पंचायती राज में पिछड़ों को आरक्षण

                  लालू ने बिहार में ‘पंचायती राज व्यवस्था’ में OBC और महिलाओं के लिए आरक्षण को बढ़ावा दिया. इसने ग्रामीण स्तर पर पिछड़े वर्गों और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई, जिससे स्थानीय शासन में समावेशिता आई.

                  बिहार में सामाजिक न्याय का एजेंडा

                    लालू ने सामाजिक न्याय के लिए ‘भूराबाल हटाओ’ (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, और कायस्थ) का नारा दिया, जिससे पिछड़े वर्गों को सशक्त करने पर जोर दिया गया.

                    इस नारे ने बिहार की सामाजिक संरचना में बदलाव लाया और हाशिए पर पड़े समुदायों को आत्मसम्मान दिया, लेकिन कुछ समुदायों में असंतोष भी पैदा किया.

                    रेलवे में खानपान सुधार

                      रेल मंत्री के रूप में लालू ने रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में खानपान सेवाओं को बेहतर किया, जैसे कि मिट्टी के कुल्हड़ में चाय और बेहतर गुणवत्ता वाले भोजन की शुरुआत. इस फैसले ने यात्रियों के अनुभव को बेहतर किया और स्थानीय कारीगरों को रोजगार के अवसर प्रदान किए.

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                      लालू से जुड़ा ‘जंगलराज’ का ठप्पा

                      लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल की उपलब्धियों के साथ-साथ विवाद और घोटाले भी जुड़े रहे. जैसे चारा घोटाला और बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति. ये वहीं दौर था जब साल 1997 में लालू यादव के बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए उनपर चारा घोटाले के आरोप लगे तो उनकी कुर्सी जाने की नौबत आ गई. लालू ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीएम की कुर्सी पर बैठाकर सबको चौंका दिया था. घर संभालने वालीं राबड़ी देवी के हाथ में अचानक पूरे बिहार की बागडोर आ गई.

                      उस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा सहाय ने पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की. इसमें उन्होंने पटना समेत पूरे बिहार में खराब हालात का जिक्र करते हुए अदालत से दखलअंदाजी की मांग की. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए 5 अगस्त 1997 को जस्टिस वीपी आनंद और जस्टिस धर्मपाल सिन्हा की बेंच ने टिप्पणी की. बेंच ने कहा कि बिहार में सरकार का नहीं बल्कि ‘जंगलराज’ चल रहा है. कोर्ट के आदेश की पालना नहीं हो रही है. सत्ता की कमान भ्रष्ट अफसरों के हाथों में है.

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