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पहले ‘संत पॉलिटिक्स’, अब PM मोदी का चुनावी शंखनाद…क्या शहाबुद्दीन के ‘गढ़’ और लालू के ‘दुर्ग’ को भेद पाएगी BJP?

Bihar Election 2025

बाबा बागेश्वर और पीएम मोदी

Bihar Election 2025: बिहार की सियासी पिच पर बैटिंग शुरू हो चुकी है. चुनावी गेंद भले ही अभी औपचारिक तौर पर फेंकी न गई हो, लेकिन सभी खिलाड़ी अपनी-अपनी चालें चलने में जुट गए हैं. इस बड़े खेल का आगाज करने खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार पहुंचे. उनका यह दौरा सिर्फ विकास का बंडल लेकर नहीं आया, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों की बिसात पर एक बड़ी चाल चलने जैसा है.  

20 जून 2025 को, दोपहर होते-होते पीएम मोदी ने बिहार के उस सिवान शहर में कदम रखा, जिसे कभी बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन का ‘अभेद किला’ माना जाता था. ये सिर्फ सिवान तक सीमित खेल नहीं है, बल्कि पीएम की निगाहें पूरे सारण प्रमंडल पर हैं, जिसमें सिवान के साथ-साथ सारण (छपरा) और गोपालगंज जिले भी शामिल हैं. असल सवाल तो ये है कि क्या भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव के इस सबसे मजबूत ‘दुर्ग’ में सेंध लगा पाएगी?  

पीएम मोदी का ‘मिशन बिहार’

यह साल 2025 में पीएम मोदी का पांचवां बिहार दौरा है और लोकसभा चुनावों के बाद तो यह उनका छठा और सिर्फ 20 दिनों में दूसरा दौरा है. इससे आप समझ सकते हैं कि बिहार, बीजेपी और एनडीए के लिए कितना महत्वपूर्ण है. अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए पीएम मोदी खुद मोर्चा संभाल रहे हैं.

खजाने से वोट साधने की तैयारी

पीएम मोदी ने बिहार के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि सिवान से ‘चुनावी’ शंखनाद किया. इस दौरे पर उन्होंने सिर्फ चुनावी भाषण नहीं दिया, बल्कि विकास की सौगातों की बौछार कर दी. वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने से लेकर ‘पीएम आवास योजना’ के तहत 53,600 से अधिक लाभार्थियों को पहली किस्त सौंपी गई. साथ ही, 6,684 शहरी गरीब परिवारों को उनके नए, पक्के मकानों की चाबियां सौंपी गई और ‘गृह प्रवेश’ करवाया गया. गरीबों को अपना घर मिलने से एक भावनात्मक जुड़ाव बनता है, जो वोट में बदल सकता है.

कुल मिलाकर, विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने बिहार के लिए अपने विकास का पिटारा खोल दिया है. यह दिखाता है कि बीजेपी कितनी गंभीरता से बिहार को देख रही है.  

बीजेपी कैसे करेगी सेंधमारी?

विकास की सौगातें एक तरफ, लेकिन पीएम मोदी की सिवान रैली का असली मक़सद सियासी है. सिवान जिले के जसोली गांव में होने वाली उनकी विशाल जनसभा का लक्ष्य सिर्फ सिवान नहीं, बल्कि पूरे सारण प्रमंडल को साधना है. सारण प्रप्रमंडल में तीन जिले आते हैं, सारण (छपरा), सिवान और गोपालगंज. यह इलाका दशकों से लालू प्रसाद यादव और आरजेडी का ‘अभेद्य किला’ रहा है. हालांकि, नीतीश की राजनीति ने एनडीए को इन इलाकों में बढ़त दिलाई है.

यहां गौर करने वाली एक बात और है. बिहार के सारण प्रमंडल में हाल के समय में राजनीतिक रैलियों के साथ-साथ कई आध्यात्मिक और सामाजिक हस्तियों के आगमन का गवाह रहा है. पीएम मोदी के दौरे से पहले, बाबा बागेश्वर (धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री), मोहन भागवत (आरएसएस प्रमुख) और श्री श्री रविशंकर जैसे प्रमुख व्यक्तियों का यहां पहुंचना महज संयोग नहीं, बल्कि इसके गहरे सियासी मायने हैं. बाबा बागेश्वर की सभाएं हिंदुत्व के एजेंडे को मज़बूत करती हैं, युवाओं को आकर्षित करती हैं और अप्रत्यक्ष रूप से ध्रुवीकरण की कोशिश करती हैं, जिससे बीजेपी आरजेडी के मजबूत एम-वाई समीकरण को चुनौती दे सके.

वहीं, मोहन भागवत का दौरा आरएसएस के जमीनी संगठन को सक्रिय करता है और बीजेपी की राष्ट्रवादी विचारधारा को ग्रामीण स्तर तक पहुंचाने का काम करता है, भले ही वे सीधे राजनीति पर बात न करें. श्री-श्री रविशंकर जैसे वैश्विक शांति दूतों की उपस्थिति समाज के विभिन्न वर्गों, खासकर मध्यम वर्ग में एक सकारात्मक छवि बनाने और एक बड़ा सामाजिक आधार तैयार करने में मदद करती है, जो अंततः सियासी दलों के लिए अनुकूल माहौल बनाती है. इन सभी दौरों का सामूहिक लक्ष्य सारण प्रमंडलमें एक ऐसा माहौल बनाना है जो आरजेडी के पारंपरिक प्रभाव को कम कर सके और बीजेपी व एनडीए के लिए नया जनाधार तैयार कर सके, खासकर आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए.

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सिवान क्यों है आरजेडी का गढ़

2020 के बिहार विधानसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि सारण प्रमंडल में आरजेडी और महागठबंधन का कितना दबदबा है. इस प्रमंडल में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से 16 सीटों पर महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट) ने जीत दर्ज की थी. जबकि, एनडीए (बीजेपी और जेडीयू) को सिर्फ 8 सीटों से संतोष करना पड़ा था. आइए, ज़िलावार स्थिति देखें.

सिवान (8 सीटें): यहां महागठबंधन ने 6 सीटें जीती थीं (आरजेडी 3, सीपीआई-माले 2, कांग्रेस 1). बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें मिली थीं.

सिवान को दिवंगत मोहम्मद शहाबुद्दीन का गढ़ माना जाता है. यहां मुस्लिम आबादी लगभग 25% है और यादव वोटर भी अच्छी संख्या में हैं. ये दोनों समुदाय पारंपरिक रूप से आरजेडी के मजबूत वोट बैंक रहे हैं, जिसे ‘एम-वाई समीकरण’ कहा जाता है. शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा के आरजेडी में शामिल होने से पार्टी की पकड़ यहां और भी मजबूत हुई है.

गोपालगंज (6 सीटें): यहां मुकाबला थोड़ा बराबरी का रहा था. महागठबंधन ने 3 सीटें जीती थीं और एनडीए ने भी 3 सीटें जीती थीं. हालांकि, यहां यादवों की संख्या सारण और सिवान जितनी नहीं है, फिर भी आरजेडी का एक मजबूत जनाधार रहा है.

सारण (10 सीटें): यह लालू प्रसाद यादव का अपना संसदीय क्षेत्र रहा है, जहां से वे खुद चुनाव जीत चुके हैं. 2020 में भी महागठबंधन ने यहां 7 सीटें जीती थीं, जबकि एनडीए को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. सारण में यादव और राजपूत मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. लालू यादव ने इन दोनों समुदायों के बीच अपना वर्चस्व कायम रखा है.

बीजेपी की रणनीति

बीजेपी जानती है कि बिहार की सत्ता पर काबिज रहने के लिए उसे इन आरजेडी के गढ़ों में सेंध लगानी होगी. इसीलिए, पीएम मोदी की सिवान में जनसभा की रूपरेखा बनाई गई. पीएम मोदी विकास परियोजनाओं की सौगात देकर यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि केंद्र सरकार बिहार के विकास के लिए प्रतिबद्ध है.

बीजेपी, पीएम मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व और लोकप्रियता का इस्तेमाल कर रही है ताकि पारंपरिक एम-वाई समीकरण को कमजोर किया जा सके और दूसरे वर्गों के वोट खींचे जा सकें. यह पूरा इलाका भोजपुरी भाषी है. भले ही ये तीनों जिले अलग हों, लेकिन इनकी संस्कृति और भाषा एक है, जिससे एक जिले का प्रभाव दूसरे पर भी पड़ता है. बीजेपी इस सांस्कृतिक जुड़ाव का फायदा उठाना चाहती है.

बीजेपी ने सिवान, गोपालगंज और सारण के 24 विधानसभा क्षेत्रों के एनडीए नेताओं को पीएम की रैली को सफल बनाने की बड़ी जिम्मेदारी दी है. इसका मक़सद ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना और जनसमर्थन जुटाना है.

क्या टूटेगा शहाबुद्दीन का सियासी ‘तिलिस्म’?

सिवान में शहाबुद्दीन का जो सियासी तिलिस्म था, उसे तोड़ना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है. उसकी विरासत अभी भी वहां के मुस्लिम और यादव वोटरों पर गहरा असर रखती है. लेकिन, बीजेपी को उम्मीद है कि पीएम मोदी का दौरा न केवल एनडीए को नई ऊर्जा देगा, बल्कि महागठबंधन के गढ़ में भी सेंध लगाने में कामयाब होगा.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पीएम की यह रैली सिर्फ एक सभा नहीं, बल्कि एनडीए के लिए सियासी माहौल बदलने और जनसमर्थन जुटाने की एक बड़ी और सोची-समझी रणनीति है. अब देखना ये होगा कि क्या पीएम मोदी की ‘हुंकार’ लालू के ‘दुर्ग’ में वाकई सेंध लगा पाएगी और सारण प्रमंडलकी सियासी तस्वीर को बदल पाएगी? बिहार के आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए यह लड़ाई काफी दिलचस्प होने वाली है.

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