Maha Shivratri 2025: श्रीमरामचरित मानस के बालकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी.” हमारे शिव भी वैसे ही हैं. एक ही सत्य, एक ही शिव, एक ही सुंदर… लेकिन, मान्यताओं, दर्शन और वैज्ञानिक नज़रिया भिन्न-भिन्न है. भगवान शिव भारत भूमि के लिए सिर्फ़ एक देवता या दर्शन ही नहीं बल्कि यहाँ के ज्ञान परंपरा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का एक अद्भुत संगम भी हैं. भक्तों के लिए शिव योगी भी हैं और संहारक भी. वैज्ञानिक और मनीषियों के लिए शिव मानव चेतना (Human Consciousness), क्वांटम फिजिक्स, कॉस्मिक डांस और संतुलन भी हैं. हम आपको महादेव से जुड़ी पांच बातों की एक व्याख्या रखने जा रहे हैं, जिसके जरिए आप समझ सकते हैं कि शिव का दर्शन कितना विराट और चेतना के स्तर पर गहरा है. इन बातों के जरिए आप समझ सकते हैं कि भारतीय विज्ञान और महान ऋषियों की समझ किस आला दर्जे की रही है.
आदि योगी और मानव चेतना का विज्ञान
शिव को ‘आदि योगी’ कहा जाता है, यानी वे पहले योगी हैं जिन्होंने ध्यान और योग की परंपरा को जन्म दिया. आधुनिक विज्ञान भी अब स्वीकार करता है कि ध्यान (Meditation) और योग (Yoga) न केवल मानसिक शांति देते हैं, बल्कि मस्तिष्क और शरीर के कार्य करने की क्षमता को भी बढ़ाते हैं. प्राचीन ऋषियों ने ध्यान और प्राणायाम को मानव मस्तिष्क के उच्चतम स्तर पर पहुंचने का माध्यम बताया. बताया जाता है कि इस ज्ञान को सबसे पहले शिव ने ही अपने सप्तऋषियों को सिखाया था.
आपने देखा होगा हमारे तमाम प्रतीक चिन्हों में शिव को अक्सर ध्यान मुद्रा में दिखाया जाता है. इसके ज़रिए यह दर्शाने की कोशिश होती है कि ध्यान के जरिए मानसिक शांति, एकाग्रता और भीतरी ज्ञान को हासिल करके शिव की भाँति बना जा सकता है. आज तमाम वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि ध्यान करने से बीटा और गामा वेव्स सक्रिय होती हैं, जिससे मानसिक स्पष्टता (Mental Clarity) और सोचने की क्षमता बढ़ती है. 2010 में MIT और हार्वर्ड विश्वविद्यालय का अध्ययन काफ़ी चर्चा में रहा. क्रिस्टोफ़र मूर (Christopher Moore) और उनकी टीम ने अपने शोध में पाया कि ध्यान (Meditation) के दौरान गामा वेव्स की तीव्रता बढ़ जाती है. इससे दिमाग़ के न्यूरोप्लास्टी और कॉग्निटव फ़ंक्शन में सुधार होता है.
शिव का त्रिनेत्र और क्वांटम फिजिक्स
भगवान शिव की तीसरी आंख (त्रिनेत्र) की मान्यता भारतीय दर्शन और विज्ञान दोनों से जुड़ी हुई है. कहने का मतलब ये है कि यह सिर्फ पौराणिक कथा नहीं, बल्कि गहरी वैज्ञानिक और आध्यात्मिक समझ का प्रतीक है. अब हम इसको थोड़ा और गहराई से समझते हैं. शिव के तीन नेत्रों में बाईं आँख से मतलब भावनात्मक (Emotion) और अंतर्ज्ञान (Intuition) से है. दाया नेत्र तर्क (Logic) और यथार्थ (Rationality) को दर्शाता है. जबकि तीसरी आंख को ज्ञान और बुद्ध होने की दशा को दर्शाता है.
इसका मतलब है कि शिव की दृष्टि केवल भौतिक संसार तक सीमित नहीं है, बल्कि वे अदृश्य ऊर्जा और चेतना को भी देख सकते हैं. यह ठीक उसी तरह है जैसे क्वांटम भौतिकी (Quantum Physics) कहती है कि हमारा ब्रह्मांड केवल वही नहीं है जो दिखता है, बल्कि उससे परे भी एक अदृश्य ऊर्जा क्षेत्र (Quantum Field) मौजूद है. आधुनिक विज्ञान में क्वांटम फील्ड थ्योरी (Quantum Field Theory) यह साबित करती है कि हमारे चारों ओर दिखने वाली ठोस वस्तुएं वास्तव में ऊर्जा के कंपन से बनी हैं.
क्वांटम फिजिक्स यह कहती है कि किसी भी कण (Particle) की स्थिति और वेग को एक साथ सटीक रूप से मापा नहीं जा सकता. इसी तरह, शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान की वह अवस्था दर्शाता है, जहां भौतिक सीमाओं से परे देखा जाता है. क्वांटम यांत्रिकी में ‘Schrödinger’s Cat’ का सिद्धांत बताता है कि एक कण एक साथ दो अवस्थाओं में हो सकता है. शिव का तीसरा नेत्र भी यही दर्शाता है कि यथार्थ (Reality) एक ही समय में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर अस्तित्व में हो सकता है.
इसके अलावा आधुनिक न्यूरोसाइंस (Neuroscience) में पीनियल ग्लैंड को “थर्ड आई” भी कहा जाता है, जो मानव चेतना और आध्यात्मिक अनुभवों से जुड़ी होती है. शोध करने वालों ने यह साबित किया है कि पीनियल ग्लैंड मेलाटोनिन (Melatonin) हार्मोन का उत्पादन करती है, जो जागरूकता और गहरी नींद को नियंत्रित करता है. गौर करने वाली बात ये है कि योग और ध्यान के अभ्यास से पीनियल ग्लैंड सक्रिय होती है, जिससे उच्च मानसिक चेतना (Higher Consciousness) जाग्रत होती है. भारतीय योगी और मनीषी मानते हैं कि जब तीसरा नेत्र (पीनियल ग्लैंड) पूरी तरह सक्रिय हो जाता है, तो व्यक्ति भीतरी ज्ञान (Intuitive Knowledge) प्राप्त कर सकता है.
तांडव और कॉस्मिक डांस
भारतीय दर्शनों में शिव का तांडव केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि यह पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति, संरक्षण और संहार का प्रतीक है. आधुनिक वैज्ञानिक, विशेष रूप से भौतिक विज्ञानी नील्स बोहर और फ्रिट्ज़ॉफ काप्रा, शिव के नृत्य की तुलना क्वांटम यांत्रिकी में इलेक्ट्रॉनों की गति से करते हैं. नटराज की मूर्ति CERN (यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च) में भी स्थापित है, जो यह दर्शाती है कि शिव का नृत्य ऊर्जा और पदार्थ के सतत परिवर्तन का प्रतीक है. CERN में लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC), जो सबसे बड़ा पार्टिकल एक्सेलेरेटर है, उसमें कणों के टकराने से नए कणों का निर्माण और विनाश होता है. यही सृजन और संहार (Creation & Destruction) है, जो शिव के तांडव से मेल खाता है.
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अमृत और विष – द्वैत का संतुलन
समुद्र मंथन की कथा में शिव का हलाहल विष को अपने कंठ में धारण करना सिर्फ़ एक पौराणिक घटना से जोड़ना सही नहीं होगा. यह कथा वैज्ञानिक और दार्शनिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है. यह दर्शाता है कि हर चीज़ में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू होते हैं. आधुनिक विज्ञान में भी “एंटीमेटर” और “डार्क एनर्जी” की अवधारणा को दर्शाती है. शिव इन दोनों में संतुलन के प्रतीक हैं. वे विनाश के देवता होते हुए भी सृजन के आधार हैं. “Entropic Balance” सिद्धांत के मुताबिक, किसी भी सिस्टम में अगर संतुलन (Equilibrium) बनाए रखना है, तो उस अवांछित ऊर्जा (Unwanted Energy) को कंट्रोल करना होगा. शिव के नीलकंठ वाला स्वरूप इसी बात की ओर इशारा करता है कि हर सृजन के साथ आने वाली नकारात्मकता को कैसे संभाला जाए.
