Malegaon Blast Case: महाराष्ट्र के मालेगांव ब्लास्ट मामले में 17 साल बाद एनआईए की स्पेशल कोर्ट का फैसला आया है. कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए साध्वी प्रज्ञा समेत सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया. मालेगांव ब्लास्ट केस में एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की इजाजत नहीं देता. कोर्ट ने माना कि आरोपियों के खिलाफ विश्वसनीय सबूत नहीं थे. इस फैसले के बाद आरोपी पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकर धर द्विवेदी समेत सभी आरोपी बरी हो गए हैं. ये ऐसा केस था जिसको लेकर देश में ‘हिंदू आतंकवाद’, ‘भगवा आतंकवाद’ और ‘संघी आतंकवाद’ की बहस छिड़ गई थी. कांग्रेस के कुछ बड़े नेता लगातार ये साबित करने में जुटे थे कि ये भगवा आतंकवाद है.
मालेगांव ब्लास्ट और ‘भगवा आतंकवाद’ की मनगढ़ंत थ्योरी
साल था 2008 का जब, देश में यूपीए का शासन था और मालेगांव ब्लास्ट के बाद ‘हिंदू आतंकवाद’ की थ्योरी गढ़ी जाने लगी थी. इसी थ्योरी को लेकर कांग्रेस के तीन बड़े नेता पी चिदंबरम, दिग्विजय सिंह और सुशील शिंदे फ्रंटफुट पर बैटिंग करते नजर आ रहे थे. इनके बयानों के बाद ‘हिंदू आतंकवाद’, ‘भगवा आतंकवाद’ और ‘संघी आतंकवाद’ पर कांग्रेस और बीजेपी-आरएसएस के बीच सियासी बयानबाजी तो चल ही रही थी, लेकिन इन आरोपों में मुस्लिम तुष्टिकरण की झलक भी साफ देखी जा सकती थी. इसकी वजह थी कि ब्लास्ट में जान गंवाने वालों में फरहीन, शेख मुश्ताक यूसुफ, शेख रफीक मुस्तफा, इरफान जियाउल्लाह खान, सैयद अजहर सैयद निसार और हारून शाह शामिल थे.
चिदंबरम का ‘भगवा आतंकवाद’ पर बयान
‘भगवा आतंकवाद’ का इस्तेमाल पी. चिदंबरम ने 25 अगस्त 2010 में DGP और IG की एक कॉन्फ्रेंस में किया था. तब चिदंबरम ने कहा था, “भारत में युवक-युवतियों को कट्टरपंथी बनाने की कोशिशें कम नहीं हो रही हैं. इसके अलावा, हाल ही में ‘भगवा आतंकवाद’ की घटना भी सामने आई है, जिसकी पूर्व में हुए कई बम विस्फोटों में भूमिका रही है.”
साध्वी से लेकर ‘अभिनव भारत’ तक पर आरोप
मालेगांव ब्लास्ट केस में साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित का नाम आने के बाद ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द को जोर-शोर से उछाला जाने लगा था. ब्लास्ट वाली बाइक को साध्वी प्रज्ञा का बताया गया था, जबकि उनका कहना था कि उसे उन्होंने बेच दिया था. बम बनाने का आरोप कर्नल पुरोहित पर लगा था. लेकिन दोनों पर ही ये आरोप कोर्ट में साबित नहीं हो सके. वहीं एटीएस ने अजय राहिरकर को अभिनव भारत संगठन का कोषाध्यक्ष बताया था. आरोप था कि अजय के निर्देशों पर पूरी साज़िश रची गई थी. वहीं विस्फोट के लिए माल जुटाने के लिए पैसा बांटने का आरोप, संगठित अपराध का आरोप लगा था, जिसे आज कोर्ट ने खारिज कर दिया. इसी तरह कोर्ट ने विश्वसनीय सबूतों के अभाव में सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया और इसके साथ ही भगवा आतंकवाद की एक और मनगढ़ंत थ्योरी फुस्स हो गई, जिसके जरिए कांग्रेस के कई नेता लगातार साध्वी प्रज्ञा के बहाने बीजेपी-आरएसएस को घेरते रहे थे.
इस बीच, ये भी बता दें कि ‘भगवा आतंकवाद’ का आरोप लगाने वाले दिग्विजय के खिलाफ ही 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भोपाल से साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाया था और उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की थी. ऐसे में साध्वी के बरी होने के बाद भाजपा ने भी राहत की सांस जरूर ली होगी.
हेमंत करकरे को लेकर दिग्विजय का बयान
इस मामले को लेकर 2010 में दिग्विजय के एक बयान पर भी बवाल मच गया था, जब उन्होंने दावा किया था कि महाराष्ट्र ATS के प्रमुख रहे हेमंत करकरे की मौत में RSS का हाथ था. कांग्रेस नेता ने दावा किया था 26/11 के मुंबई हमले के कुछ घंटे पहले करकरे ने उनसे बात की थी और बताया था कि मालेगांव विस्फोट केस में हिंदू चरमपंथियों को गिरफ्तार करने के बाद उन्हें मौत की धमकियां मिल रही थीं. दिग्विजय ने करकरे की मौत के लिए संघ को जिम्मेदार ठहराया था.
बता दें कि 29 सितंबर 2008 को हुए मालेगांव ब्लास्ट में 6 लोगों की जान गई थी जबकि 101 लोग घायल हुए थे. हालांकि, कोर्ट ने मेडिकल सर्टिफिकेट में हेरफेर की बात कहते हुए 95 लोगों को घायल माना. साथ ही कोर्ट ने ब्लास्ट में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को 2 लाख रुपये और घायलों को 50 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी दिया है.
26/11 मुंबई हमले पर दिग्विजय के आरोप
मालेगांव ब्लास्ट केस की तरह ही, 26/11 के मुंबई हमलों के दौरान भी ‘हिंदू आतंकवाद’ की थ्योरी गढ़ने की कोशिश की गई थी. एक साजिश तो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने, जिसका खुलासा मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर रहे राकेश मारिया ने किया था और कहा था कि आतंकी अजमल कसाब ने हिंदू दिखने के लिए हाथों में कलावा पहन लोगों पर गोलियां बरसाई थीं ताकि हिंदू आतंकवाद की थ्योरी गढ़ी जा सके.
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जबकि, दिग्विजय सिंह ने भी ‘मुंबई हमले को RSS’ की साजिश बताने की कोशिश की थी. अजीज बर्नी की लिखी किताब ’26/11 आरएसएस की साजिश?’ के विमोचन में दिग्विजय सिंह ने मुंबई हमले के पीछे आरएसएस और ‘हिंदू आतंकवाद’ का हाथ बताने की कोशिश की थी. अगर कसाब न पकड़ा जाता तो उस फर्जी थ्योरी के चिथड़े भी न उड़ते. हालांकि, आरोपों पर बाद में दिग्विजय ने कहा था कि उन्होंने कभी भगवा आतंकवाद शब्द का कभी इस्तेमाल नहीं किया है, बल्कि संघी आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल किया है.
समझौता ब्लास्ट केस को ‘भगवा आतंकवाद’ का रंग देने की कोशिश
कांग्रेस नेता और पूर्व गृह मंत्री शिंदे ने भी ‘भगवा आतंकवाद’ का जिक्र किया था. कांग्रेस के चिंतन शिविर में उन्होंने कहा था कि गृह मंत्रालय की जांच में पता चला है कि कुछ भगवा संगठन आतंकवाद फैलाने के लिए प्रशिक्षण शिविर चला रहे हैं. शिंदे ने कहा था कि जांच के दौरान रिपोर्ट आई है कि बीजेपी-आरएसएस आतंकवाद फैलाने के लिए आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाते हैं. उन्होंने आगे कहा था कि समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद में बम लगाए गए थे और मालेगांव में विस्फोट किया गया था.
बाद में शिंदे ने मांगी माफी
हालांकि, बाद में भगवा आतंकवाद वाले बयान पर शिंदे ने अफसोस जताया था और माफी भी मांगी थी. एक पॉडकास्ट में सुशील कुमार शिंदे ने कहा था, “उस समय रिकॉर्ड पर जो आया था, उन्होंने वही कहा था. ये पार्टी ने उन्हें बताया था कि भगवा आतंकवाद हो रहा है. अपने बयान में आतंकवाद शब्द लगाया, यह गलत था. भगवा टेररिस्ट, ऐसा नहीं बोलना चाहिए था.” इसके पहले, एक अन्य कार्यक्रम में भी उन्होंने माफी मांगते हुए कहा था, “अगर मेरे बयान से किसी की भावना को ठेस पहुंची है तो मैं इसके लिए खेद प्रकट करता हूं, मेरा मकसद आतंक को किसी धर्म से जोड़ने का नहीं था.”
बता दें कि 2007 में समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में आरोपी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को अदालत ने बरी कर दिया था. इस ब्लास्ट में 68 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 12 लोग घायल हो गए थे.
