Haryana News: हरियाणा में धान की सरकारी खरीद प्रक्रिया शुरू हुए 14 दिन हो चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की भाजपा सरकार के तमाम वादों और दावों के बावजूद किसानों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. मंडियों में न तो खरीद व्यवस्था सुचारू है और न ही किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल रहा है. सच्चाई यह है कि भाजपा सरकार ने हरियाणा के अन्नदाताओं को मंडियों में दलालों और बिचौलियों के हवाले कर दिया है.
आम आदमी पार्टी ने सरकार पर साधा निशाना
इसी को लेकर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनुराग ढांडा ने रविवार को बयान जारी कर हरियाणा की बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा तय धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2389 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन हरियाणा के अधिकांश जिलों की मंडियों में किसानों को 1700 रुपये से 1900 रुपये तक ही दाम मिल रहे हैं. जिससे किसानों को प्रति क्विंटल 500 रुपये से 700 रुपये तक का सीधा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. भाजपा सरकार के झूठे आश्वासन और दिखावटी घोषणाएं अब किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रही हैं.
22 सितंबर से खरीद प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद 70 प्रतिशत मंडियों में हालात बेकाबू हैं. बारदाने की कमी, तौल कांटों की खराबी, नमी के नाम कटौती और प्रशासनिक लापरवाही ने किसानों को सड़कों और मंडियों में भटकने पर मजबूर कर दिया है. रोहतक, गोहाना, कैथल, सिरसा, फतेहाबाद, करनाल और पानीपत जैसे जिलों में हजारों क्विंटल धान खुले आसमान के नीचे पड़ा सड़ रहा है और सरकार की व्यवस्था कहीं दिखाई नहीं देती. किसान दिन-रात अपनी फसल की रखवाली में लगे हैं, जबकि भाजपा के मंत्री वातानुकूलित दफ्तरों में बैठकर किसानों की पीड़ा पर आंखें मूंदे हुए हैं.
झज्जर, चरखी दादरी और भिवानी समेत कई जिलों में अभी भी सही तरीके से बाजरे की सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई है. मजबूरी में किसानों को 1400 रुपये से 1600 रुपये प्रति क्विंटल तक बाजरा खुले बाजार में बेचना पड़ रहा है, जिससे हर बोरी पर 700 रुपये से 800 रुपये तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है. सरकार की इस विफलता ने किसानों को इतनी बुरी तरह तोड़ दिया है कि अब वे रबी फसलों की बुआई तक के लिए भी पूंजी नहीं जुटा पा रहे. यह सिर्फ आर्थिक संकट नहीं, बल्कि किसान की आत्मा को कुचलने का अपराध है.
खुले में पड़ी फसल भीगकर हो रही खराब
बारिश ने किसानों के दर्द को और बढ़ा दिया है. खुले में पड़ी फसल भीगकर खराब हो रही है, लेकिन सरकार ने उसके बचाव के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. नमी के नाम पर अब किसानों की मेहनत का मज़ाक उड़ाया जा रहा है, कोई 1900 रुपये में बेचने को मजबूर है तो कोई 1600 रुपये में. परिस्थितियों को देखते हुए नमी की सीमा कम से कम 25 प्रतिशत तक बढ़ाई जानी चाहिए थी, लेकिन सरकार अभी भी 17-18 प्रतिशत पर अड़ी है. किसानों की मांग है कि मंडियों में डिजिटल कांटे लगाए जाएं ताकि तौल में धांधली पर रोक लगे, लेकिन सरकार ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया. भाजपा सरकार किसानों की समस्याओं का समाधान करने के बजाय उनके दर्द को बढ़ाने का हर संभव तरीका खोज रही है.
बाढ़ और बारिश से बर्बाद फसलों का नहीं मिला मुआवजा
बाढ़ और बारिश से बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा भी अब तक नहीं दिया गया है. जिन किसानों की पूरी मेहनत और सालभर की कमाई पानी में बह गई, वे आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. राहत राशि की जगह उन्हें सिर्फ़ आश्वासन और औपचारिकताएं मिली हैं. भाजपा सरकार किसानों की तकलीफों पर आंखें मूंदे बैठी है, जैसे किसानों की पीड़ा इस सरकार के लिए कोई मायने ही नहीं रखती.
अनुराग ढांडा ने कहा कि भाजपा सरकार की यह असफलता महज लापरवाही नहीं, बल्कि किसानों के खिलाफ एक सोची-समझी साजिश है. सरकार जानबूझकर मंडियों में अफरातफरी फैलाती है ताकि किसान मजबूरी में अपनी उपज सस्ते दामों पर बेच दें. बाद में वही फसल बिचौलिए MSP पर सरकार को बेचकर करोड़ों का मुनाफा कमाते हैं. भाजपा की यह नीति किसानों की रीढ़ तोड़ने, उन्हें कर्ज़ और गरीबी में धकेलने और आर्थिक गुलामी में झोंकने की रणनीति है.
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उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि बाजरे की सरकारी खरीद तत्काल शुरू की जाए, नमी की सीमा को 25 प्रतिशत तक बढ़ाया जाए, सभी मंडियों में डिजिटल कांटे लगाए जाएं, भीगी फसल का पूरा मुआवजा दिया जाए और खरीद प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए.
अनुराग ढांडा ने चेतावनी दी कि अगर सरकार जल्द ही इन मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं करती, तो आम आदमी पार्टी किसानों के हक के लिए कोई आंदोलन करने से भी नहीं हिचकिचाएगी. उन्होंने कहा कि भाजपा ने किसानों को सिर्फ वोट बैंक समझ लिया है, इसलिए आज प्रदेश का किसान बीजेपी सरकार से परेशान हैं.
