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बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन पर सियासी दंगल, विपक्ष ने लगाया ‘वोटबंदी’ का आरोप, टेंशन में बीजेपी के सहयोगी भी

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वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन पर बिहार में मचा बवाल

Bihar News: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव 2025 से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए मतदाता सूची (Voter List Verification) के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है. विपक्षी दलों ने इसे ‘वोटबंदी’ करार देते हुए गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के मताधिकार छीनने की साजिश बताया है. वहीं, EC के इस कदम पर बीजेपी के सहयोगी दल भी इस प्रक्रिया के समय और तरीके को लेकर टेंशन में हैं

विपक्ष ने लगाए ‘वोटबंदी’ का आरोप

विपक्षी गठबंधन INDI ब्लॉक ने 2 जुलाई को चुनाव आयोग से मुलाकात कर इस प्रक्रिया पर गंभीर आपत्ति जताई. विपक्ष ने इस कदम पर सवाल उठाया है कि वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन का जो काम पिछले 22 सालों में नहीं हुआ उसे अब क्यों किया जा रहा है? विपक्ष का कहना है कि जिस तरह के डॉक्यूमेंट्स लोगों से मांगे गए हैं. चुनाव में अब जब कुछ ही महीने का समय है, ऐसे में लोगों को उन डॉक्यूमेंट्स को देने में मुश्किल होगी और इससे बिहार में 2 से 3 करोड़ वोटर वोट नहीं डाल पाएंगे. इस प्रक्रिया से प्रभावित खासकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, प्रवासी और गरीब समुदाय हो सकते हैं.

RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे ‘संदिग्ध और चिंताजनक’ बताते हुए कहा कि बीजेपी और RSS इस सत्यापन के बहाने गरीबों के वोटिंग अधिकार छीनना चाहते हैं. उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग बीजेपी के इशारे पर काम कर रहा है. वहीं, कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाकर 2.94 करोड़ मतदाताओं को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने होंगे, जो कि एक छोटे समय में असंभव है. उन्होंने इसे ‘नोटबंदी’ की तर्ज पर ‘वोटबंदी’ करार दिया.

RJD, TMC, और AIMIM जैसे दलों ने इस प्रक्रिया को ‘बैकडोर NRC’ बताते हुए कहा कि यह दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों को मतदाता सूची से हटाने की साजिश है.

बीजेपी और NDA का पक्ष

बीजेपी ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह सत्यापन प्रक्रिया अवैध मतदाताओं, विशेष रूप से नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों को हटाने के लिए जरूरी है. बीजेपी नेता और मंत्री नितिन नबीन ने कहा कि विपक्ष फर्जी वोटों के जरिए सत्ता हासिल करना चाहता है. उन्होंने इस प्रक्रिया को ‘चुनावी ऑडिट’ करार देते हुए इसे पारदर्शिता के लिए जरूरी बताया.

‘प्रक्रिया संवैधानिक’- चुनाव आयोग

आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया संवैधानिक है और इसका उद्देश्य केवल योग्य भारतीय नागरिकों को वोट देने का अधिकार सुनिश्चित करना है. 4.96 करोड़ मतदाता, जो 2003 की सूची में हैं, उन्हें केवल सत्यापन फॉर्म भरना होगा, जबकि बाकी को नागरिकता के दस्तावेज जमा करने होंगे.

टेंशन में बीजेपी के सहयोगी दल

हालांकि एनडीए के सहयोगी दलों ने सार्वजनिक रूप से इस प्रक्रिया का समर्थन किया है, लेकिन कुछ नेता निजी तौर पर चिंतित हैं. उनकी चिंता है कि यह प्रक्रिया समय की कमी के कारण कई वास्तविक मतदाताओं को प्रभावित कर सकती है. एक बीजेपी नेता ने कहा कि बिहार में जन्म प्रमाणपत्रों का रिकॉर्ड ऐतिहासिक रूप से खराब रहा है, जिसके कारण कई लोग दस्तावेज जमा करने में असमर्थ हो सकते हैं.

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चुनाव आयोग का निर्देश

चुनाव आयोग ने 25 जून से 26 जुलाई 2025 तक सत्यापन प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें 78,000 बूथ-स्तरीय अधिकारी (BLOs) और 1.5 लाख बूथ-स्तरीय एजेंट (BLAs) शामिल हैं. 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाया गया है, और उसमें शामिल नहीं होने वाले 2.94 करोड़ मतदाताओं को जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, जाति प्रमाणपत्र या शैक्षिक प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज जमा करने होंगे.

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