G7 Summit: क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया के 7 सबसे ताकतवर देश जब एक साथ बैठते हैं, तो क्या बातें होती हैं? और भारत, जो इस ‘खास क्लब’ का हिस्सा नहीं है, फिर भी वहां क्यों पहुंच जाता है? इस बार भी कनाडा में होने वाली G-7 समिट में पीएम मोदी को आमंत्रित किया गया है. लेकिन हर किसी के जहन में यही सवाल है कि भारत जैसा शक्तिशाली देश इस ग्रुप का हिस्सा क्यों नहीं है? आइए, सबकुछ आसान भाषा में विस्तार से बताते हैं.
G-7 क्या है, और इसकी कहानी क्या है?
1970 के दशक की बात है. तेल के बढ़ते दामों ने दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं में भूचाल ला दिया था. ऐसे में 1975 में अमेरिका, फ्रांस, इटली, जापान, ब्रिटेन और पश्चिमी जर्मनी ने सोचा, “चलो मिलकर इस आर्थिक चुनौती से निपटते हैं.” बस, यहीं से जन्म हुआ G-6 का. एक साल बाद कनाडा भी इसमें शामिल हो गया, और बन गया ‘ग्रुप ऑफ सेवन’.
ये कोई बड़ा दफ्तर वाला संगठन नहीं है, न ही इनके पास कोई कानून बनाने की शक्ति है. ये तो बस दुनिया की 7 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का एक अनौपचारिक ‘क्लब’ है, जो हर साल बारी-बारी से बैठक की मेजबानी करते हैं. इनका मकसद है वैश्विक व्यापार और आर्थिक स्थिरता पर चर्चा करना, और बड़े मुद्दों पर एक साथ खड़े होना. पहले रूस भी इसका हिस्सा था, लेकिन 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
भारत G-7 का सदस्य क्यों नहीं?
अब आप सोच रहे होंगे, भारत तो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, तो फिर G-7 का हिस्सा क्यों नहीं? इसकी कहानी थोड़ी पुरानी है. जब G-7 बना, तब भारत एक विकासशील देश था, जो गरीबी और सीमित विदेशी निवेश जैसी चुनौतियों से जूझ रहा था. G-7 उन विकसित देशों के लिए बना था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक स्तर पर मजबूत थीं. उस समय भारत इस मानदंड पर खरा नहीं उतरता था.
और आज? G-7 अब अपने समूह का विस्तार नहीं करता है, यानी नए सदस्यों को जोड़ता नहीं है. यही वजह है कि भारत इसका औपचारिक हिस्सा नहीं है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारत की कोई अहमियत नहीं.
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तो फिर G-7 समिट में मोदी क्यों हैं खास मेहमान?
यहीं पर आती है भारत की बढ़ती ‘धाक’ की बात. G-7 की मेजबानी करने वाला देश अपनी मर्जी से कुछ अन्य देशों को आमंत्रित करता है जो समूह का हिस्सा नहीं होते. 2019 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल बतौर मेहमान G-7 देशों की बैठक में हिस्सा लेते आए हैं. यह दिखाता है कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भी भारत के साथ चर्चा करने, उसके दृष्टिकोण को समझने और वैश्विक मुद्दों पर उसके सहयोग को कितना महत्व देती हैं.
इस साल भी कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क जे. कॉर्नी ने पीएम मोदी को G-7 शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया है. यह निमंत्रण भारत के बढ़ते वैश्विक कद और उसकी बढ़ती आर्थिक शक्ति का प्रमाण है.
G-7 समिट क्यों है जरूरी?
भले ही G-7 देशों के पास कोई कानून बनाने की शक्ति न हो, लेकिन इनकी बैठकें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. साल भर, इन देशों के मंत्री और अधिकारी मिलते रहते हैं, समझौते करते हैं और वैश्विक घटनाओं पर अपना रुख स्पष्ट करते हैं.
समिट इसलिए भी खास होती है क्योंकि हर साल नए मुद्दे सामने आते हैं, जिनका समाधान ढूंढना G-7 देशों के लिए ज़रूरी होता है ताकि उनकी अर्थव्यवस्थाएं और अन्य वैश्विक मामलों में वे पीछे न रहें. इस बार की बैठक में भी वैश्विक आर्थिक स्थिरता, विकास, डिजिटल बदलाव और कई अन्य चुनौतियों पर चर्चा होने की उम्मीद है. संक्षेप में कहें तो, G-7 दुनिया के सबसे प्रभावशाली देशों का एक मंच है, और इसमें भारत की नियमित उपस्थिति यह दर्शाती है कि वैश्विक मंच पर उसकी आवाज कितनी मायने रखती है.
