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रूसी तेल पर अमेरिका का ‘सीक्रेट प्लान’… क्या भारत का ‘साइलेंट मूव’ पलटेगा पासा?

NATO Warns India

रूस से तेल खरीदने वालों को नाटो की धमकी

NATO Warns India: यूक्रेन युद्ध के चलते रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव गहराता जा रहा है. अमेरिका और NATO ने रूस से तेल खरीदने वाले देशों को कड़ी चेतावनी दी है. कहा जा रहा है कि अगर रूस यूक्रेन के साथ शांति समझौता नहीं करता है, तो उससे तेल खरीदने वाले देशों पर भारी टैक्स (100% टैरिफ) लगाया जाएगा. इस चेतावनी से भारत, चीन और ब्राजील जैसे बड़े तेल खरीदारों की चिंता बढ़ गई है.

क्यों बढ़ी भारत की टेंशन?

दरअसल, 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए और उससे तेल खरीदना बंद कर दिया. भारत ने इस मौके का फायदा उठाया और रूस से भारी छूट पर कच्चा तेल खरीदना शुरू कर दिया. इस सस्ते तेल ने भारत को वैश्विक महंगाई और आर्थिक उथल-पुथल के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में बहुत मदद की. आपको बता दें कि भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का 85% से भी ज़्यादा आयात करता है, और पिछले तीन सालों से रूस भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर बन गया है. अब यही सस्ता रूसी तेल भारत के लिए खतरे में पड़ सकता है.

भारत क्यों नहीं घबरा रहा?

अब सवाल ये उठता है कि क्या इन धमकियों के बाद भी भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा? इस पर भारत के पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि भारत इन अमेरिकी धमकियों से घबराया नहीं है. उन्होंने इसे अमेरिका और NATO की “बातचीत की रणनीति” भी बताया. पुरी का मानना है कि इस समय तेल बाजार में अच्छी सप्लाई है और आने वाले समय में कीमतें और कम हो सकती हैं.

पेट्रोलियम मंत्री ने साफ शब्दों में कहा है कि अगर तेल की कीमतें काबू में रखनी हैं, तो दुनिया को 10% कम तेल का इस्तेमाल करना होगा, जो संभव नहीं है. या फिर बाकी 90% सप्लायर से ज़्यादा तेल खरीदना पड़ेगा, जिससे कीमतें बहुत बढ़ जाएंगी. उन्होंने यह भी कहा कि रूस के पास दुनिया के कुल तेल उत्पादन का लगभग 10% हिस्सा है. अगर रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया जाए, तो तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं. उन्होंने यह भी बताया कि तुर्की, चीन, ब्राजील और कई यूरोपीय देश भी अभी भी रूस से तेल और गैस खरीद रहे हैं.

पुरी ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारत के रूस से लगातार तेल खरीदने की वजह से ही दुनिया में तेल की कीमतें स्थिर हैं. अगर भारत ऐसा करना बंद कर दे, तो कच्चे तेल की कीमतें 120 से 130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं. उन्होंने आत्मविश्वास से कहा, “मुझे कोई चिंता नहीं है, अगर कुछ भी हुआ तो हम उससे निपट लेंगे.” एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, रूस पर प्रतिबंधों का समर्थन करने वाले कई यूरोपीय देश भी अब भी तीसरे देशों के जरिए रूस का तेल खरीद रहे हैं.

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रूस के तेल के बिना कैसे मैनेज करेगा भारत?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर ट्रंप और NATO की सेकेंडरी सैंक्शन की धमकियां सच साबित होती हैं, तो भारत रूसी तेल के बिना अपनी जरूरतों को कैसे पूरा करेगा? आज भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 33% से भी ज़्यादा हो गई है.

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के मुताबिक, रूस पर प्रतिबंध लगने के बाद चीन ने रूस के 47% कच्चे तेल का आयात किया है, उसके बाद भारत ने 38% खरीदा है. वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत के तेल आयात में रूस का हिस्सा सिर्फ 2.1% था, लेकिन वित्तीय वर्ष 2024-25 में यह बढ़कर चौंकाने वाले 35.1% तक पहुंच गया है. यह दिखाता है कि भारत रूसी तेल पर कितना निर्भर हो गया है.

क्या ये सिर्फ ट्रंप की एक चाल है?

ET की एक रिपोर्ट में जानकारों ने बताया है कि यह “टैक्स वाला खेल” रूस को शांति समझौते के लिए दबाव बनाने का ट्रंप का एक तरीका हो सकता है. उनकी चेतावनी सिर्फ एक चाल है, ताकि रूस के साथ बातचीत को गंभीरता से लिया जा सके. वहीं, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी एक दोहरी रणनीति अपना रहे हैं, एक तरफ ट्रंप से फोन पर शांति समझौते की बात करते हैं और दूसरी तरफ यूक्रेन पर हमले जारी रख रहे हैं.

इसके अलावा, अगर भारत और चीन को रूसी तेल खरीदने पर 100% टैक्स का सामना करना पड़ता है, तो इन देशों से अमेरिका को आयात करने की लागत बढ़ जाएगी. इस अतिरिक्त बोझ का खामियाजा अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा, जिससे ट्रंप के लिए राजनीतिक रूप से मुश्किल स्थिति बन जाएगी.

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