Indus Waters Treaty: पहलगाम आतंकी हमले के बाद मोदी सरकार पकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठा रही है. मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ 65 साल पुराना सिंधु जल संधि को रोक दिया है. भारत सरकार अपनों के खून के बदले पाकिस्तान को पानी नहीं देगा। केंद्र सरकार का ये फैसला ऐतिहासिक है. क्योंकि पूर्व में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के बाद भी सिंधु जल संधि को नहीं रोका गया था. मगर अब आतंक की खेती करने वाले पाकिस्तान को भारत पानी नहीं देगा. इस संधि के रुकने से पकिस्तान पानी बूंद-बूंद के लिए तो तरसेगा ही इसके साथ ही वो भूख से भी तड़पेगा. तो चलिए जानते हैं केंद्र सरकार के इस ऐतिहासिक कदम का पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा…
क्या अब पाकिस्तान नहीं जाएगा भारत का पानी ?
इसे आप ऐसे समझिए कि सिंधु जल संधि रोक कर भारत ने पाकिस्तान की आर्थिक कमर पर प्रहार किया है. दरअसल समझौता स्थगित होने का यह अर्थ नहीं है कि पाकिस्तान को तत्काल सिंधु नदी का पानी नहीं मिलेगा बल्कि इसके तहत भारत पर से अब यह बाध्यता खत्म हो जाएगी कि वह पाकिस्तान को सिंधु के पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करे। भारत भविष्य में सिंधु नदी पर बांध बनाकर पानी रोकने के लिए स्वतंत्र होगा. भविष्य में भारत अगर ऐसा करता है तो पाकिस्तान के लिए तब ऐसा संकट पैदा होगा कि वहां के लोग पानी के लिए तरसेंगे.
पकिस्तान की लाइफलाइन पर चोट
पाकिस्तान के साथ साल 1960 में हुए सिंधु जल समझौता को बुधवार की CCS के बैठक में तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया गया है. सिंधु जल समझौता पकिस्तान की लाइफ लाइन कही जाती है. मगर अब इसपर सिर्फ सिंधु और सहायक नदियों के पानी पर हिंदुस्तान का नियंत्रण होगा. सिंधु और सहायक नदियां चार देशों से गुजरती हैं. इतना ही नहीं 21 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या की जल जरूरतों की पूर्ति इन्हीं नदियों पर निर्भर करती है.
आतंक की खेती करने वाले अब फसलों ढूंढेंगे पानी
बता दें कि पाकिस्तान इन दिनों गरीबी से जूझ रहा है. पकिस्तान की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर करता है. खेती के लिए पानी की जरुरत के लिए वह सिंधु नदी बेसिन के पानी पर सबसे ज्यादा निर्भर है. भारत और पाकिस्तान के बीच जल समझौते के तहत पाकिस्तान को सिंधु नदी और उसकी पश्चिमी सहायक झेलम नदी और चिनाब नदी का पानी आवंटित किया गया है. भारत यदि इन नदियों के प्रवाह को मोड़ देता है तो पाकिस्तान का बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में आ जाएगा. मतलब ये हुआ कि जो देश पहले से ही भूखा है उसके पेट पर एक और मार पड़ी है.
पकिस्तान में पानी की कमी से सिंचाई में गेहूं, चावल, गन्ना और कपास जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार पर गंभीर असर दिखेगा. यह पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा और निर्यात के लिए महत्वपूर्ण हैं. पाकिस्तान की 80 फीसदी खेती योग्य भूमि लगभग 16 मिलियन हेक्टेयर सिंधु नदी प्रणाली के पानी पर निर्भर है. इस पानी का 93 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसके बिना खेती असंभव है.
ना-पाक पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर भारत का वार
सिंधु जल से 237 मिलियन से अधिक लोगों का भरण-पोषण होता है. इसमें पाकिस्तान की सिंधु बेसिन की 61 फीसदी आबादी शामिल है. सिंधु और उसकी सहायक नदियों से पाकिस्तान के प्रमुख शहर कराची, लाहौर, मुल्तान निर्भर रहते हैं. पाकिस्तान के तरबेला और मंगला जैसे पॉवर प्रोजेक्ट इस नदी पर निर्भर करते हैं. सिंधु जल समझौते के स्थगित होने पर पाकिस्तान में खाद्य उत्पादन में गिरावट आ सकती है, जिससे लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है.
यह भी पढ़ें: Pahalgam Attack:आतंकी हमले में मारे गए सुशील नथानियल का शव इंदौर लाया गया, CM मोहन यादव ने दी श्रद्धांजलि
इतना ही नहीं पाकिस्तान की शहरी जल आपूर्ति भी इस समझौते पर निर्भर करती है. जिससे वहां अशांति फैल जाएगी. बिजली उत्पादन ठप हो जाएगा, जिससे उद्योग और शहरी इलाकों में अंधेरा छा जाएगा. 65 साल पहले हुई सिंधु जल समझौते के तहत पाकिस्तान को करीब 80 फीसदी पानी मिलता है. साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी को 6 नदियों में विभाजित करते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.
