VP Election 2025: देश के अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव का बिगुल बज चुका है और सियासी अखाड़े में हलचल तेज हो गई है. 9 सितंबर को होने वाले इस चुनाव में एक तरफ NDA अपनी मजबूत स्थिति को लेकर आश्वस्त है, तो दूसरी तरफ विपक्ष ने भी हार मानने से इनकार कर दिया है. विपक्ष का गणित भले ही कमजोर हो, लेकिन उनकी रणनीति बेहद दिलचस्प है.
NDA की राह आसान, पर विपक्ष कर रहा परेशान!
संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में NDA के पास कुल 418 सांसद हैं, जो जीत के लिए जरूरी 392 के जादुई आंकड़े से कहीं ज्यादा है. यानी, साफ तौर पर पलड़ा NDA का ही भारी दिख रहा है. लेकिन, विपक्ष इस चुनाव को सिर्फ हार-जीत तक सीमित नहीं रखना चाहता.
कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष की योजना सिर्फ एक उम्मीदवार उतारना नहीं, बल्कि NDA के ही कुछ बड़े साथियों में खलबली मचाना है. रिपोर्ट्स के अनुसार, विपक्षी दल बिहार या आंध्र प्रदेश से किसी कद्दावर नेता को अपना उम्मीदवार बना सकते हैं.
अगर उम्मीदवार बिहार से हुआ, तो NDA के सहयोगी जैसे जेडीयू और एलजेपी धर्म संकट में फंस सकते हैं. इसी तरह, अगर उम्मीदवार आंध्र प्रदेश से आया, तो टीडीपी और जनसेना के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. यह विपक्ष की ऐसी चाल है, जिससे NDA को अपने कुनबे को एकजुट रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी.
एक तीर से दो निशाने
विपक्ष इस चुनाव को अपनी ताकत दिखाने के लिए नहीं, बल्कि अपने वोटर्स को एक खास संदेश देने के लिए इस्तेमाल कर रहा है. कमजोर संख्या बल होने के बावजूद विपक्ष एक ऐसा चेहरा सामने लाना चाहता है, जो पिछड़े, अल्पसंख्यक, किसान और हाशिये पर रहने वाले समुदायों का प्रतिनिधित्व करे. इस रणनीति के जरिए विपक्ष इन वर्गों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है.
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चुनाव की तारीखें
7 अगस्त: चुनाव की आधिकारिक घोषणा
21 अगस्त: नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख
9 सितंबर: मतदान और उसी दिन परिणाम की घोषणा
इस चुनाव में कौन जीतता है, यह तो 9 सितंबर को पता चलेगा, लेकिन यह तो तय है कि विपक्ष ने NDA के लिए जीत की राह को थोड़ा मुश्किल जरूर बना दिया है.
धनखड़ ने अचानक दे दिया था इस्तीफा
बताते चलें कि पिछले दिनों जगदीप धनखड़ ने अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह ‘स्वास्थ्य कारणों’ को बताया, लेकिन इस अप्रत्याशित कदम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. विपक्ष ने भी उनके इस्तीफे के पीछे कुछ और ‘गहरे कारण’ होने का दावा किया है.
जगदीप धनखड़ का कार्यकाल पूरा होने में अभी लगभग दो साल बाकी थे. उनका इस्तीफा ऐसे समय में आया, जब संसद का मानसून सत्र चल रहा था. यह एक दुर्लभ मध्य-अवधि की रिक्ति है, जिसके बाद चुनाव आयोग ने अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव की घोषणा की है. उनके इस्तीफे ने एक ऐसी बहस को जन्म दिया है कि आखिर किस वजह से उन्होंने यह फैसला लिया, जिसके चलते देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद के लिए अब फिर से चुनाव हो रहे हैं.
