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ईरान-इजरायल के बीच कुछ भी हो जाए, सीधे जंग में नहीं कूदेगा अमेरिका? जानिए ट्रंप की तबाही वाली रणनीति

Iran Israel War

डोनाल्ड ट्रंप की क्या है रणनीति?

Iran Israel War: ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव ने पूरी दुनिया की चिंता बढ़ा दी है. इजरायल और ईरान के बीच 13 जून से शुरू हुआ युद्ध छठे दिन भी जारी है. इजराइल ने ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ के तहत ईरान पर हवाई हमले किए, जिसमें ईरानी सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए. ईरान ने तेल अवीव और हाइफा जैसे इजरायली शहरों पर मिसाइल हमले कर जवाब दिया. रिपोर्टों के अनुसार, ईरान ने अब तक लगभग 400 मिसाइल और 100 ड्रोन से हमले किए हैं, जबकि इजरायल ने भी एयर स्ट्राइक किए हैं. अब हर कोई यही सोच रहा है कि अगर हालात और बिगड़े तो क्या अमेरिका इस जंग में सीधा कूदेगा? खासकर जब डोनाल्ड ट्रंप जैसा नेता सत्ता में हो, तो यह सवाल और भी अहम हो जाता है. आइए, जानते हैं कि ट्रंप का रुख क्या होगा.  

मौजूदा हालात

फिलहाल, अमेरिका इजरायल का सबसे बड़ा समर्थक है और उसे सैन्य व आर्थिक मदद देता रहा है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम और उसकी क्षेत्रीय गतिविधियों को लेकर अमेरिका हमेशा से सख्त रहा है. जब भी ईरान और इजरायल के बीच तनाव बढ़ा है, अमेरिका ने इजरायल का साथ दिया है.
अगर ईरान और इजरायल के बीच सीधी सैन्य भिड़ंत होती है, तो अमेरिका के लिए तटस्थ रहना मुश्किल होगा. इजरायल के साथ उसका दशकों पुराना गठबंधन उसे सीधे तौर पर इसमें खींच सकता है.

वैश्विक राजनीति को समझने वाले लोगों के मुताबिक, इसकी संभावना कम है कि अमेरिका सीधे अपनी सेना ईरान के खिलाफ भेजेगा, खासकर शुरुआती दौर में. अमेरिका के पास पहले से ही मध्य पूर्व में अपनी सैन्य मौजूदगी है, लेकिन बड़े पैमाने पर सेना भेजना एक बहुत बड़ा और जोखिम भरा कदम होगा. अमेरिका शायद इजरायल को सैन्य सहायता, खुफिया जानकारी और लॉजिस्टिक्स सपोर्ट देकर ही मदद करेगा. इसमें उन्नत हथियारों की सप्लाई, मिसाइल डिफेंस सिस्टम और अन्य तकनीकी सहायता शामिल हो सकती है.

ट्रंप का रुख और उनकी प्लानिंग

डोनाल्ड ट्रंप अपने ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के लिए जाने जाते हैं. उनके पिछले कार्यकाल में उन्होंने ईरान पर अधिकतम दबाव बनाने की कोशिश की थी, जिसमें परमाणु समझौते से बाहर निकलना और कड़े प्रतिबंध लगाना शामिल था. ट्रंप ने हमेशा अमेरिकी सैनिकों को विदेशी युद्धों से दूर रखने की बात कही है. वे सीधी सैन्य लड़ाई से बचने की कोशिश करेंगे, जब तक कि अमेरिकी हितों को गंभीर खतरा न हो.

ट्रंप इजरायल के बहुत बड़े समर्थक रहे हैं. वे इजरायल को हर संभव मदद देंगे, लेकिन इसकी पूरी कोशिश करेंगे कि अमेरिका सीधे तौर पर युद्ध में न फंसे. वे इजरायल को खुद को बचाने के लिए सशक्त करेंगे. ट्रंप अपने कार्यकाल में ‘तलवार और ढाल’ की रणनीति अपनाते रहे हैं. वे एक तरफ ईरान को धमकी दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ पर्दे के पीछे से कूटनीति के रास्ते भी तलाश सकते हैं.

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अमेरिका की संभावित प्लानिंग

जानकारों का कहना है कि अमेरिका की ओर से ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध और कूटनीतिक दबाव बनाए रखा जाएगा ताकि वह अपने परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय गतिविधियों से बाज आए. अमेरिका अपनी सेना को सीधे युद्ध में भेजने से बचेगा, जब तक कि कोई बड़ा खतरा न हो. अमेरिका की कोशिश होगी कि यह संघर्ष पूरे क्षेत्र में न फैले. अमेरिका ईरान-इजरायल संघर्ष में इजरायल का मजबूत समर्थन करेगा, लेकिन ट्रंप के नेतृत्व में सीधी सैन्य भागीदारी से बचने की पूरी कोशिश करेगा. वे मुख्य रूप से आर्थिक दबाव, कूटनीति और इजरायल को सशक्त करने की रणनीति पर काम करेंगे.

ईरान में सत्ता परिवर्तन कराना अमेरिका का एजेंडा!

ईरान में सत्ता परिवर्तन कराना अमेरिका का एक पुराना एजेंडा रहा है, जिसकी मुख्य वजहें ईरान का परमाणु कार्यक्रम, मध्य पूर्व में उसका बढ़ता क्षेत्रीय प्रभाव और मानवाधिकारों की स्थिति हैं. अमेरिका इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आमतौर पर आर्थिक प्रतिबंधों को मुख्य हथियार बनाता है, ताकि ईरान की अर्थव्यवस्था कमजोर हो और जनता में असंतोष बढ़े. इसके अलावा, वह खुफिया अभियानों, कूटनीतिक दबाव और साइबर हमलों का भी इस्तेमाल कर सकता है. हालांकि, सीधे तौर पर सैन्य हस्तक्षेप या बड़े पैमाने पर तख्तापलट की संभावना कम है, क्योंकि इराक और अफगानिस्तान जैसे देशों में ऐसे प्रयासों के नकारात्मक अनुभव रहे हैं और इससे पूरे क्षेत्र में अस्थिरता फैलने का गंभीर खतरा है.

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