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शिक्षा, खेती और अनुसंधान…भारत के सपनों का ‘शिल्पकार’ थे पंडित नेहरू, देश के लिए लुटाई सारी दौलत

Jawaharlal Nehru Death Anniversary

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू

Jawaharlal Nehru Death Anniversary: आज भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की 61वीं पुण्यतिथि है. कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी ने नेहरू के योगदान को सलाम करते हुए उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता बताया. नेहरू के नेतृत्व में भारत ने आजादी के बाद मजबूत नींव पाई, जिसका असर आज भी देश की प्रगति में दिखता है.

नेहरू के परपोते और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “पंडित जवाहरलाल नेहरू ने न सिर्फ आजाद भारत का सपना देखा, बल्कि उसे हकीकत में बदला. शिक्षा, संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के लिए उनका योगदान हमेशा प्रेरणा देता रहेगा.”

भले ही नेहरू के विचारों से कुछ लोग प्रभावित नहीं होते. लेकिन नेहरू का विजन आज भी भारत के लिए प्रासंगिक है. उनके द्वारा शुरू की गई नीतियों ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए. चाहे ‘पंचशील’ का सिद्धांत हो या नॉन-एलाइनमेंट मूवमेंट, नेहरू ने वैश्विक मंच पर भारत को एक मजबूत पहचान दी. पंडित जवाहरलाल नेहरू वो व्यक्ति थे, जिन्होंने देश के लिए अपनी सारी दौलत दान कर दी. आइए आज चाचा नेहरू को क्यों भारत के सपनों का शिल्पकार कहा जाता है…पूरी कहानी विस्तार से जानते हैं.

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीतियों पर लोग बहस कर सकते हैं, लेकिन कोई यह नहीं नकार सकता कि नेहरू का दिल सिर्फ भारत के लिए धड़का. उन्होंने अपनी दौलत, समय और सपनों को इस देश की मिट्टी में मिला दिया.

अमीर परिवार से देश की सेवा तक

जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में एक रईस और रसूखदार परिवार में हुआ. उनके पिता मोतीलाल नेहरू उस जमाने के नामी वकील थे, जिनकी कमाई से परिवार के पास दो शानदार हवेलियां थीं, आनंद भवन और स्वराज भवन. ये संपत्तियां उस समय लाखों रुपये की थीं, जो आज के हिसाब से करोड़ों में होंगी. आनंद भवन में यूरोप और चीन से लाया गया कीमती फर्नीचर और अनमोल वस्तुएं थीं, जो नेहरू परिवार की शान बयां करती थीं.

लेकिन नेहरू ने इस दौलत को अपने लिए नहीं रखा. जब देश को आजादी की जरूरत पड़ी, तो उन्होंने और उनके पिता ने अपनी सारी संपत्ति स्वतंत्रता संग्राम और देश के विकास के लिए दान कर दी. इतिहासकारों के मुताबिक, 1947 में उनकी कुल संपत्ति करीब 200 करोड़ रुपये थी, जिसमें से 98% हिस्सा उन्होंने देश को सौंप दिया.

कठिन हालात में बेमिसाल बलिदान

1920 का दशक था. भारत अंग्रेजों की गुलामी में जकड़ा था. स्वतंत्रता संग्राम जोरों पर था, और कांग्रेस को पैसों की सख्त जरूरत थी. रैलियां, सभाएं और कार्यकर्ताओं की मदद के लिए फंड चाहिए था. ऐसे में मोतीलाल नेहरू ने अपनी शानदार हवेली, स्वराज भवन को कांग्रेस का मुख्यालय बना दिया. इस हवेली की कीमत उस समय 20,000 रुपये थी, जो आज के हिसाब से करोड़ों में होगी. यहीं से असहयोग आंदोलन (1920-22) जैसी बड़ी लड़ाइयों की शुरुआत हुई.

जवाहरलाल ने अपने पिता के इस बलिदान को और बढ़ाया. उन्होंने आनंद भवन को भी देश को समर्पित कर दिया, जो बाद में संग्रहालय बना. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जवाहरलाल 9 साल जेल में रहे. इस दौरान उनकी सेहत और परिवार को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. उनकी किताबें, जैसे ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ और ‘ग्लिम्प्स ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ से होने वाली कमाई भी देश के काम आई.

1947 में आजादी के बाद, जब देश को नई नींव की जरूरत थी. नेहरू ने अपनी संपत्ति का 98% हिस्सा देश के विकास के लिए दान कर दिया. उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने बाद में आनंद भवन को 1970 में एक ट्रस्ट बनाकर देश को सौंप दिया. नेहरू की सादगी ऐसी थी कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे साधारण कपड़े पहनते थे और अपने निजी खर्चों को बेहद सीमित रखते थे.

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नेहरू की दौलत का क्या-क्या हुआ?

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: स्वराज भवन और दूसरी संपत्तियों से मिले पैसे कांग्रेस के आंदोलनों में लगे. नमक सत्याग्रह (1930), भारत छोड़ो आंदोलन (1942), और कार्यकर्ताओं की मदद के लिए इस दौलत का बड़ा योगदान रहा.


शिक्षा और विज्ञान की नींव:
आजादी के बाद नेहरू ने देश को आधुनिक बनाने के लिए शिक्षा और विज्ञान पर जोर दिया. उनकी संपत्ति का हिस्सा इनके लिए फंडिंग में मददगार रहा. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), जवाहर नवोदय विद्यालय, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और आईआईटी जैसे संस्थान उनकी दूरदर्शिता का नतीजा हैं.

सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा: आनंद भवन और स्वराज भवन को संग्रहालय बनाकर नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम की यादों को सहेजा. आज ये जगहें लाखों लोगों को भारत की आजादी की कहानी बताती हैं.

नेहरू के नाम पर कितने संस्थान?

नेहरू की दूरदर्शिता ने देश में कई संस्थानों को जन्म दिया. एक आरटीआई के मुताबिक, देश में नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर 450 से ज्यादा योजनाएं, इमारतें और संस्थान हैं. इनमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), दिल्ली, देश भर में बच्चों की शिक्षा के लिएजवाहर नवोदय विद्यालय, मेडिकल रिसर्च का गढ़, जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन,
जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलुरु, वैज्ञानिक अनुसंधान का केंद्र. जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर प्रमुख हैं. इन संस्थानों ने भारत को शिक्षा, विज्ञान, और तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने में बड़ी भूमिका निभाई.

जब मतभेदों के बीच भी बजी तालियां

नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच मतभेद की बातें अक्सर होती हैं, लेकिन सरदार पटेल ने नेहरू के बलिदान की खुले दिल से तारीफ की थी. उन्होंने कहा था, “स्वतंत्रता संग्राम में नेहरू से बड़ा बलिदान किसी ने नहीं दिया. उनके परिवार ने सबसे ज्यादा कष्ट सहे. मोतीलाल ने अपनी हवेली और आजीविका छोड़ दी, और जवाहरलाल ने सब कुछ देश को समर्पित कर दिया.”

सपनों से सजा भारत

नेहरू की पुण्यतिथि हमें याद दिलाता है कि सच्चा नेतृत्व वही है, जो अपने लिए नहीं, बल्कि देश के लिए जिए. उन्होंने न सिर्फ अपनी दौलत, बल्कि अपने सपनों को भी भारत के लिए समर्पित किया. उनकी नीतियों ने भारत को आधुनिक, वैज्ञानिक, और एकजुट बनाया. चाहे वह “विविधता में एकता” का नारा हो या बांधों को “आधुनिक भारत के मंदिर” कहना, नेहरू की सोच आज भी प्रासंगिक है.


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