Kashmir Terrorist Attack: अक्सर देखा गया है कि जब भी कोई बड़ा विदेशी मेहमान दिल्ली आता है, कश्मीर की घाटी में आतंकियों के हमले तेज़ हो जाते हैं. कई मर्तबा दुनिया में अपने आतंक का डंका बजाने के लिए आतंकी बेरहमी की इंतहा को पार कर जाते हैं. आज एक बार फिर जब भारत दौरे पर आए अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का स्वागत हो रहा था, तो मंगलवार दोपहर को कश्मीर के पहलगाम में आतंकी सैलानियों पर गोलीबारी कर रहे थे. इस घटना ने उन पुरानी तारीख़ों के ज़ख़्मों को भी हरा कर दिया है, जब विदेशी मेहमानों के आगमन पर कश्मीर में आतंकियों ने जमकर रक्तपात किया. ऐसा ही साल था सन् 2000. इसी वर्ष 20 मार्च को अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिटंन भारत के ऐतिहासिक दौर पर आए थे. यह दौरा कई मायनों में ख़ास था. माना जाता है कि भारत और अमेरिकी संबंधों के बीच जमी बर्फ़ यहीं से पिघलनी शुरू हुई. उस दौरान परमाणु परीक्षण से झल्लाए अमेरिका ने हमारे ऊपर कई प्रतिबंध लादे थे. लेकिन, क्लिंटन के दौरे ने संबंधों का एक नया आम लिख दिया.
जब आतंकियों ने की 35 सिखों की हत्या
एक ओर 20 मार्च को जहां देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन का भव्य स्वागत कर रहे थे. उसी दिन कश्मीर के छत्तीसिंहपोरा गाँव में आतंकी सिख समुदाय के लोगों के बेरहमी से हत्या कर रहे थे. आतंकियों ने एक साथ 35 सिखों की यहाँ हत्या कर डाली. इस हत्याकांड ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी. अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत में होने के चलते दुनिया भर के तमाम बड़े से छोटे अख़बारों में यह ख़बर प्रमुखता से छपी और फिर कश्मीर के इंटरनेशनल प्रोपगैंडा को हवा मिलनी शुरू हो गई. हालाँकि, भारत ने हर मंच पर इस वारदात को पाकिस्तान समर्थित आतंकियों की कारस्तानी और भारत के ख़िलाफ़ एक सोची-समझी रणनीति के तहत हिंसा फैलाने की कोशिश करार दिया गया. बिल क्लिंटन ने भी इस घटना को “मानवता के ख़िलाफ़ अपराध” बताया था।
जब भी कोई मेहमान भारत आए, आतंकी हमले बढ़े
भारत में जब भी कोई ताकतवर देश का राष्ट्राध्यक्ष या विश्व नेता आता है, तो आतंकी गतिविधियों में तेज़ी देखी जाती है. आतंकी वारदातों में तेज़ी ख़ासतौर पर अमेरिका, ब्रिटेन या यूरीपीय देशों से आए राष्ट्राध्यक्षों के दौरान काफ़ी देखने को मिली है. माना जाता है कि आतंकी संगठन और उनके पीछे खड़ी ताकतें अंतरराष्ट्रीय ध्यान बटोरने के लिए इस तरह के हमलों को अंजाम देती हैं. मसलन,
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून का भारत दौरा (2010): इस दौरे के दौरान कश्मीर में पत्थरबाज़ी और सुरक्षाबलों से झड़पें तेज़ हो गईं. अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह मुद्दा प्रमुखता से उठा. ज़ाहिर करने की कोशिश की गई कि भारत बंदूक़ के दम पर कश्मीर को अपने पाले में किए हुए है.
जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल का भारत दौरा (2015): मर्केल भी तत्कालीन दौर में एक प्रभावी वैश्विक नेता थीं. उनके भी भारत आसमान के दौरान कश्मीर में आतंकी हमले हुए और एलओसी पर संघर्ष विराम का उल्लंघन देखने को मिला.
यूएन महासचिव बान की मून का दौरा (2008): इस दौरे से ठीक पहले भी कश्मीर में एक आतंकी हमला हुआ और दौरे के दौरान भी घाटी में सुरक्षाबल और आतंकियों में बड़ी मुठभेड़ हुई थी. इस दौरान भी आतंकियों के आंकाओं को यह दिखाने की ज़िद थी कि कश्मीर में शांति नहीं है. और जो लोग बंदूक़ उठाकर लड़ रहे हैं, वे फ़्रीडम-फाइटर हैं, जो कश्मीर की आज़ादी चाहते हैं.
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पहलगाम में हुए हमले का मतलब
आम तौर पर पहलगाम एक ऐसा टूरिस्ट प्लेस है, जहां आतंकी वारदात विरले ही देखने को मिली हो. अनंतनाग ज़िले में होने के बावजूद यहाँ पर आतंकवादी घटनाएँ नहीं देखने को मिली थीं. लेकिन, आतंकियों ने न सिर्फ़ यहाँ हमला किया बल्कि सैलानियों पर सीधे गोली मारी. ज़ाहिर है कि आतंकी भारत सरकार के उन दावों से चिढ़े हुए हैं, जिसमें कश्मीर में शांति बहाली और टूरिज़्म की बात की जाती रही है. हालाँकि, वैसे भी घाटी में हाल के वर्षों में शांति के चलते जिस तरह से टूरिज़्म का व्यापार बढ़ा है, स्थानीय नागरिक भी इस अमन-चैन को स्वीकार करते हैं और मानते हैं कि उनके जीवन में एक बड़ा बेहतर बदलाव आया है.
लेकिन, आतंकियों के आंकाओं को कश्मीर की शांति रास नहीं आ रही है. उन्हें यह रास नहीं आ रहा कि वैश्विक समाज भी मानने लगा है कि कश्मीर घाटी के लोग भारतीय व्यवस्था को बेस्ट मान रहे हैं और अपने जीवन को ख़ुशहाली देने में जुटे हैं. यही वजह है कि मंगलवार को आतंकियों का यह कायराना हमला भारत की वैश्विक इमेज को ख़राब करने के साथ-साथ, घाटी में अस्थिरता वाले माहौल को प्रचारित करने की है.
