Kathua Cloudburst: जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में 17 अगस्त 2025 को एक बार फिर प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखाया. कठुआ के जोड़ घाटी इलाके में बादल फटने से भारी तबाही मची, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और छह अन्य घायल हो गए. कई घर मलबे में दब गए, जम्मू-पठानकोट नेशनल हाईवे को नुकसान पहुंचा, और गांवों का संपर्क बाकी इलाकों से टूट गया. इससे पहले जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें कई लोगों की जान गई और भारी नुकसान हुआ. आखिर पहाड़ों में बार-बार बादल क्यों फट रहे हैं? आइए, सबकुछ आसान भाषा में समझते हैं.
कैसे फटता है बादल?
बादल फटने के दौरान बहुत कम समय में एक छोटे से क्षेत्र में भारी बारिश होती है. अगर एक घंटे में 100 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश, वह भी 1-2 किलोमीटर के दायरे में हो, तो इसे बादल फटना कहते हैं. आसान शब्दों में, यह ऐसा है जैसे आसमान से एक टब पानी एकदम से उड़ेल दिया जाए. इससे अचानक बाढ़, भूस्खलन और भारी तबाही होती है.
पहाड़ों में क्यों फटते हैं बादल?
पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाएं ज्यादा होती हैं. बादल फटने का मुख्य कारण नमी से भरे भारी बादल हैं. जब ये बादल पहाड़ों या ठंडी हवा वाले क्षेत्र से टकराते हैं, तो उनमें मौजूद नमी तेजी से पानी की बूंदों में बदल जाती है. यह मूसलाधार बारिश का कारण बनती है. पहाड़ी इलाकों में हवा का प्रवाह और ऊंचाई इस प्रक्रिया को और तेज कर देती है.
जलवायु परिवर्तन का असर
जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पैटर्न अनियमित हो गया है. ग्लोबल वॉर्मिंग से वातावरण में नमी की मात्रा बढ़ रही है, जिससे भारी बारिश और बादल फटने की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं. मानसून के महीनों (जून से सितंबर) में यह खतरा और बढ़ जाता है.
पहाड़ी क्षेत्रों में अंधाधुंध निर्माण भी एक वजह
पहाड़ी क्षेत्रों में अंधाधुंध निर्माण, पेड़ों की कटाई और सड़क बनाने जैसे मानवीय हस्तक्षेप से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है. इससे मिट्टी का कटाव बढ़ता है और भूस्खलन का खतरा ज्यादा हो जाता है. कंक्रीट के जंगल पानी की निकासी को रोकते हैं, जिससे बाढ़ की स्थिति और खराब हो जाती है. वहीं, हिमालयी क्षेत्र जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि यहां बादल आसानी से फंस जाते हैं. ऊंचे पहाड़ों के बीच हवा का दबाव बदलने से बारिश तेज हो जाती है.
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कठुआ में क्या हुआ?
17 अगस्त 2025 की रात कठुआ के राजबाग इलाके में जोड़ घाटी गांव में बादल फटने से अचानक सैलाब आ गया. इस आपदा ने कई घरों को मलबे में दबा दिया, जम्मू-पठानकोट हाईवे का एक हिस्सा बह गया, और यातायात ठप हो गया. उझ नदी का जलस्तर खतरे के निशान तक पहुंच गया. पुलिस और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की टीमें तुरंत मौके पर पहुंची और राहत-बचाव कार्य शुरू किया. प्रशासन ने लोगों से नदी-नालों से दूर रहने और सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने की अपील की है.
पहले कहां-कहां हुई ऐसी घटनाएं?
किश्तवाड़ (जम्मू-कश्मीर): हाल ही में किश्तवाड़ के चसोटी में बादल फटने से करीब 65 लोगों की जान चली गई थी. वहीं 200 से ज्यादा लोग अब भी लापता हैं.
उत्तराखंड: 5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने से पांच लोगों की मौत हुई और भारी तबाही मची.
हिमाचल प्रदेश: मानसून के दौरान हिमाचल में भी बादल फटने की कई घटनाएं सामने आईं, जिनमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ.
केदारनाथ त्रासदी (2013): यह बादल फटने की सबसे भयावह घटना थी, जिसमें 6000 से ज्यादा लोग मारे गए थे.
बादल फटने की घटनाएं बिना किसी चेतावनी के होती हैं, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है. सड़कें, पुल और घर तबाह हो जाते हैं. भूस्खलन और बाढ़ से गांव बाकी दुनिया से कट जाते हैं. कठुआ में भी यही देखने को मिला, जहां गांवों का संपर्क टूट गया और कई लोग मलबे में फंस गए.
कैसे बचें?
- मौसम विभाग के अलर्ट पर ध्यान दें. हालांकि बादल फटने की सटीक भविष्यवाणी मुश्किल है, लेकिन भारी बारिश के अलर्ट को गंभीरता से लें.
- बारिश के दौरान नदियों और नालों के पास न जाएं.
- अगर बारिश तेज हो रही है, तो ऊंचे और सुरक्षित स्थान पर शरण लें.
- आपात स्थिति में हेल्पलाइन नंबरों पर संपर्क करें और अफवाहों से बचें.
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं. यह प्रकृति का इशारा है कि हमें पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ कम करनी होगी. टिकाऊ विकास, जंगल बचाने, और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है.
