Kheer Bhawani Mela: खीर भवानी मेलायूं तो देशभर में कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं, जो भक्तों की आस्था का केंद्र है. जहां दर्शन के लिए देश के साथ-साथ विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं. देश के अलग-अलग इलाकों में स्थित इन मंदिरों से जुड़ी न केवल कई धार्मिक मान्यताएं हैं, बल्कि कई ऐसे मंदिर हैं, जिन्होंने अपने अंदर कई रहस्य समेट रखे हैं. जिनके रहस्य के बारे में जानकर आप दंग रह जाएंगे. इन्हीं में से एक है जम्मू-कश्मीर का खीर भवानी (क्षीर भवानी) मंदिर.
जून में लगेगा खीर भवानी मेला
जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले के तुलमुला में स्थित है मां राग्या देवी को समर्पित खीर भवानी मंदिर. ये मंदिर श्रीनगर से 25 किलोमीटर दूर है. इस मंदिर में हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मेले का आयोजन किया जाता है, जो खीर भवानी मेला के नाम से मशहूर है. हर साल लगने वाले इस मेले में देश के साथ-साथ विदेशों से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. इस साल ये मेला 3 जून को लगने जा रहा है. 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद ये पहला खीर भवानी मेला है. ऐसे में भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बावजूद तीर्थयात्रियों का उत्साह बरकरार है. श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरे क्षेत्र में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं.
कश्मीरी पंडितों की श्रद्धा का केंद्र
यूं तो देवी राग्या में हिंदुओं की आस्था काफी गहरी है. विशेष रूप से मां खीर भवानी कश्मीरी पंडितों के लिए सबसे अधिक पूजनीय हैं. ऐसे में कश्मीरी पंडित इस ऐतिहासिक राग्या देवी मंदिर में अपने सबसे प्रतिष्ठित त्योहारों में से एक को मनाने की तैयारी में जुट गए हैं. साल 1990 के पलायन के बाद भी विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों की आस्था इस मंदिर के प्रति बरकार है. कश्मीरी पंडित इस मंदिर में जन्माष्टमी, खीर भवानी का मेला समेत कई प्रमुख त्योहारों पर विशेष आयोजन करते हैं. खीर भवानी मंदिर कश्मीरी पंडितों की सांस्कृतिक पहचान और आस्था का प्रतीक है. कश्मीरी पंडितों के लिए ये मंदिर एक तीर्थस्थल है, और यहां लगने वाला मेला उनके सामाजिक पुनर्मिलन का एक अवसर.
खीर भवानी नाम के पीछे की आस्था
इस मंदिर की परंपरा रही है कि हर वर्ष वसंत ऋतु में माता को खीर यानी दूध और चावल की मिठाई का भोग लगाया जाता है, इसलिए इस मंदिर का नाम ‘खीर भवानी’ है. इस मंदिर को महारज्ञा देवी के नाम से भी जाना जाता है. खीर भवानी देवी की पूजा मां दुर्गा या मां पार्वती के रूप में की जाती है. मंदिर परिसर में एक जल कुंड है, जिसके जल का रंग अलग-अलग अवसरों पर बदलता रहता है. मान्यता है कि ये एक चमत्कारी कुंड है, जिसका रंग भविष्य के शुभ-अशुभ घटनाओं का संकेत देता है. किसी प्राकृतिक आपदा के आने से पहले ही मंदिर के कुण्ड का पानी काला पड़ जाता है, जबकि कुछ शुभ होने पर खीर भवानी मंदिर के जलकुंड में जल का रंग नीले या हरे रंग का हो जाता है.
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मंदिर को लेकर क्या है पौराणिक मान्यता?
कहा जाता है कि रावण भगवान शिव के साथ-साथ महारज्ञा देवी का भी बहुत बड़ा भक्त था. मां रावण की आस्था से प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हुई और अपनी एक छवि देकर चली गईं. जिसे रावण ने लंका में स्थापित किया था। लेकिन माता सीता के हरण के बाद मां रावण से रुष्ट हो गई. माता ने हनुमान जी को उन्हें लंका से बाहर ले जाने का आदेश दिया। माता की आज्ञा मानकर हनुमान जी मां को लंका से निकालकर श्रीनगर ले आए, और यहां उनकी स्थापना कर दी. मान्यता है तभी से मां यहां विराजमान हैं। जम्मू-कश्मीर के महाराजा प्रताप सिंह और महाराजा हरि सिंह ने मंदिर निर्माण और जीर्णोद्धार में अपना योगदान दिया था.
मंदिर से चलती है मुस्लिमों की रोजी-रोटी?
खास बात ये है कि माता खीर भवानी के मंदिर के साथ हजारों मुस्लिमों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है. यहां खीर भवानी मेले में चढ़ाई जाने वाली तकरीबन सभी चीजें मुस्लिम समुदाय द्वारा ही बनाई जाती हैं। मेले के दौरान दूध, चावल, फल, फूल, अगरबत्ती समेत माता को चढ़ाई जाने वाली पूजा की सभी सामग्री श्रद्धालु स्थानीय मुस्लिम समुदाय से ही खरीदते हैं. मंदिर में जलाए जाने वाले मिट्टी के दीपक भी स्थानीय मुस्लिम ही तैयार करते हैं. मंदिर के आसपास जितनी भी छोटी-बड़ी दुकानें हैं, उनमें 95 फीसदी स्थानीय मुस्लिम की हैं. इसलिए इस मंदिर को भारत की एकता और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक माना जाता है.
