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लोकपाल कार्यालय को चाहिए 7 लग्जरी BMW कारें, भ्रष्टाचार विरोधी संस्था पर उठे सवाल!

Lokpal BMW Cars Tender

प्रतीकात्मक तस्वीर

Lokpal BMW Cars Tender: देश की भ्रष्टाचार विरोधी संस्था लोकपाल एक बार फिर विवादों में घिर गई है. इस बार मामला है सात लग्जरी BMW 330 Li कारों की खरीद का, जिनकी कीमत 60 लाख रुपये प्रति कार से ज्यादा है. 16 अक्टूबर को जारी एक सार्वजनिक टेंडर ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है, जहां लोग इस खर्च को अनुचित और लोकपाल के मिशन के खिलाफ बता रहे हैं.

क्या है पूरा मामला?

लोकपाल ने 16 अक्टूबर को सेंट्रल पब्लिक प्रोक्योरमेंट पोर्टल पर एक टेंडर जारी किया, जिसमें सात BMW 3 सीरीज Li कारों की आपूर्ति के लिए बोली मांगी गई है. टेंडर के मुताबिक, बोली जमा करने की प्रक्रिया 17 अक्टूबर से शुरू हो चुकी है और 6 नवंबर को दोपहर 3 बजे तक चलेगी. 7 नवंबर से बोली की जांच शुरू होगी. इन कारों की डिलीवरी सप्लाई ऑर्डर मिलने के 30 दिनों के भीतर और अगर संभव हो तो दो हफ्तों में करनी होगी. टेंडर में साफ कहा गया है कि डिलीवरी में देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

लोकपाल ने यह भी शर्त रखी है कि चुनी गई कंपनी को ड्राइवरों और स्टाफ के लिए सात दिन का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना होगा. इसमें क्लासरूम और ऑन-रोड प्रशिक्षण शामिल होगा. इतना ही नहीं, यह 15 दिनों के भीतर पूरा करना होगा. हैरानी की बात यह है कि प्रशिक्षण का सारा खर्च, जिसमें ट्रेनर की फीस, यात्रा, ठहरने, ईंधन और अन्य चीजें शामिल हैं, कंपनी को ही उठाना होगा.

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सोशल मीडिया पर हंगामा

इस टेंडर ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी है. सामाजिक कार्यकर्ता और वकील प्रशांत भूषण ने इसे लोकपाल की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वाला कदम बताया. उन्होंने X पर लिखा, “मोदी सरकार ने लोकपाल को खोखला कर दिया है. पहले इसे सालों तक खाली रखा, फिर आज्ञाकारी सदस्य नियुक्त किए, जो भ्रष्टाचार से बेपरवाह हैं और अब 70 लाख की BMW कारें खरीद रहे हैं.” कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने भी इस पर निशाना साधा. उन्होंने X पर लिखा, “लोकपाल 5 करोड़ रुपये की सात लग्जरी BMW कारें खरीदना चाहता है. यह वही संस्था है, जो ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन के बाद भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बनी थी, जिसे RSS ने समर्थन दिया था ताकि कांग्रेस सरकार को गिराया जाए.”

क्यों हो रहा है विरोध?

लोकपाल का मकसद भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करना है, लेकिन इतनी महंगी कारों की खरीद ने इसके इरादों पर सवाल खड़े किए हैं. लोग पूछ रहे हैं कि एक भ्रष्टाचार विरोधी संस्था को इतनी महंगी कारों की जरूरत क्यों है? क्या यह जनता के पैसे का दुरुपयोग नहीं है? यह विवाद तब और गहरा गया, जब यह सामने आया कि कुल खर्च 5 करोड़ रुपये से ज्यादा हो सकता है. लोकपाल की इस खरीद पर अब सबकी नजरें हैं. क्या यह टेंडर रद्द होगा या सरकार कोई सफाई देगी? आने वाले वक्त में इन सारे सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद है.

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