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“अब साथ रहने का क्या फायदा…”, अब BJP के साथ आना चाहते हैं उद्धव ठाकरे? MVA में पक रही खिचड़ी!

Uddhav Thackeray

उद्धव ठाकरे

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आया हुआ है. दरअसल, महाविकास आघाड़ी (MVA) गठबंधन में शिवसेना के भविष्य पर अब खुद उद्धव ठाकरे ने सवाल खड़े कर दिए हैं. लगता है, अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. अटकलें तो यहां तक हैं कि शिवसेना (यूबीटी) फिर से बीजेपी के करीब आ सकती है, खासकर जब से देवेंद्र फडणवीस ने सुलह का ऑफर दिया है.

विधानसभा में क्यों हारी MVA?

उद्धव ठाकरे ने अपनी पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ को दिए एक इंटरव्यू में MVA के प्रदर्शन पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि अगर सीट बंटवारे और उम्मीदवारों के चुनाव में वही गलतियां बार-बार होंगी, जो 2024 के विधानसभा चुनावों में हुई थीं, तो फिर इस गठबंधन का फायदा ही क्या है?

याद कीजिए, लोकसभा चुनाव में MVA ने महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटें जीतकर कमाल कर दिया था. कार्यकर्ताओं का जोश हाई था, माहौल बना हुआ था. लेकिन विधानसभा चुनाव में ये सारा उत्साह कहां गायब हो गया? उद्धव का मानना है कि ये व्यक्तिगत अहंकार और सिर्फ अपनी सीट जीतने की होड़ में बदल गया, जिसका नतीजा हार के रूप में सामने आया.

गलतियां जो महंगी पड़ीं

ठाकरे ने बताया कि कैसे MVA ने लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसी सीटें अपने सहयोगियों को दे दीं, जिन्हें उनकी पार्टी (शिवसेना) पहले कई बार जीत चुकी थी. यह बात उन्हें आज भी अखरती है. विधानसभा चुनाव के दौरान तो सीट बंटवारे पर आखिरी दम तक खींचतान चलती रही. इससे जनता के बीच एक गलत संदेश गया, और कई सीटों पर तो उम्मीदवार ही तय नहीं हो पाए. उद्धव ने इसे एक बड़ी गलती माना है, जिसे सुधारना बहुत जरूरी है. अगर ये सिलसिला चलता रहा, तो उनके मुताबिक, ‘साथ रहने का कोई मतलब नहीं है.’

उन्होंने ये भी कहा कि विधानसभा चुनाव के दौरान रियायतों की घोषणा करने की होड़ ने भी गठबंधन को नुकसान पहुंचाया. ‘लाडकी बहिन’ जैसी योजनाओं को उन्होंने भ्रामक बताया, जिसने चुनावी नतीजों पर असर डाला. हालांकि, उद्धव ने यह भी स्वीकार किया कि अपनी गलतियों को मानने में हिचकिचाना ठीक नहीं है.

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‘ठाकरे’ नाम सिर्फ ब्रांड नहीं, पहचान है!

उद्धव ठाकरे ने इस दौरान बीजेपी और चुनाव आयोग पर भी जमकर निशाना साधा. उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि ‘ठाकरे’ नाम सिर्फ एक राजनीतिक ब्रांड नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के इतिहास से जुड़ी एक सांस्कृतिक पहचान है. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग भले ही एकनाथ शिंदे गुट को मूल शिवसेना का नाम और चिन्ह दे दे, लेकिन उनके पिता और दादा ने जो नाम बनाया है, उसे कोई छीन नहीं सकता. ‘हमारी विरासत की जड़ें मराठी मिट्टी में गहरी हैं. ‘

उन्होंने RSS और बीजेपी पर ‘ठाकरे ब्रांड’ को हथियाने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया. ये बयान MVA की विधानसभा चुनाव में निराशाजनक हार के लगभग आठ महीने बाद आए हैं.

MVA कहां पिछड़ा?

MVA ने महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटें जीतीं.

2024 विधानसभा चुनाव

महायुति गठबंधन: MVA पर भारी पड़ा.

BJP: 132 सीटें

एकनाथ शिंदे की शिवसेना: 57 सीटें

अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी : 41 सीटें

MVA (शिवसेना यूबीटी, शरद पवार की एनसीपी, कांग्रेस): कुल मिलाकर सिर्फ 46 सीटें

इन आंकड़ों से साफ है कि लोकसभा में मिली शानदार जीत के बाद भी विधानसभा में MVA का प्रदर्शन उम्मीदों से कहीं कम रहा. अब उद्धव ठाकरे के इस बयान ने MVA के भविष्य को लेकर सियासी गलियारों में नई बहस छेड़ दी है. क्या यह गठबंधन एकजुट रह पाएगा, या महाराष्ट्र की राजनीति में कोई नया समीकरण बनने वाला है? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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