Vistaar NEWS

गीत से ‘गद्दी’ तक का सफर तय करने के लिए तैयार मैथिली ठाकुर, BJP में हुईं शामिल, टिकट मिलने से पहले ही अलीनगर में विरोध शुरू!

Bihar Election 2025

अलीनगर में चुनावी दम भरने वाले नेता

Bihar Election 2025: बिहार की धरती पर एक नया सियासी तमाशा शुरू हो चुका है और इस बार मंच की मलिका मैथिली ठाकुर (Maithili Thakur) सुर्खियों में हैं. जी हां, वही मैथिली, जिनके हिंदी, भोजपुरी और मैथिली लोकगीतों ने लाखों दिलों को झंकृत किया, अब वोटों की धुन पर नाचने को तैयार हैं.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में दरभंगा जिले की अलीनगर सीट से उनके बीजेपी टिकट की चर्चा ने सियासी गलियारों में आग लगा दी है. लेकिन, टिकट मिलने से पहले ही अलीनगर में बवाल मच गया है. स्थानीय नेताओं की नाराजगी, पुराने कार्यकर्ताओं का गुस्सा और विपक्ष का दबदबा, ये सब मिलकर मैथिली के रास्ते में कांटे बिछा रहे हैं. आइए, इस सियासी ड्रामे को स्टेज-बाय-स्टेज समझते हैं.

कौन हैं मैथिली ठाकुर?

25 साल की मैथिली ठाकुर मधुबनी के बेनीपट्टी की बेटी हैं. बचपन से ही संगीत उनकी रग-रग में बसा है. चाहे मैथिली लोकगीत हों या शास्त्रीय संगीत, मैथिली ने हर जगह अपनी मखमली आवाज का जादू बिखेरा है. 2021 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी का युवा पुरस्कार मिला और बिहार चुनाव आयोग ने उन्हें ‘स्टेट आइकॉन’ बनाकर सम्मानित किया. यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर उनके लाखों फॉलोअर्स हैं, जो उनके गीतों पर थिरकते हैं. ‘बिहार की बेटी’ का खिताब पाने वाली मैथिली अब सिर्फ मंच पर नहीं, बल्कि सियासत के मैदान में भी अपनी धमक दिखाने को तैयार हैं. पिछले हफ्ते दिल्ली में बीजेपी के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और केंद्रीय राज्य मंत्री नित्यानंद राय से उनकी मुलाकात ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी.

तावड़े ने ट्वीट कर बताया कि 1995 में लालू राज के दौरान मैथिली का परिवार बिहार छोड़कर चला गया था, लेकिन अब “बदलते बिहार” की बयार उन्हें वापस खींच लाई है. मैथिली ने खुद कहा, “मैं अपनी मिट्टी की सेवा करना चाहती हूं.” अब मैथिली ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. बीजेपी को लगता है कि मैथिली की स्टारडम और युवा अपील वोटों की फसल लाएगी. खासकर मिथिला क्षेत्र के मैथिल ब्राह्मण और युवा वोटरों के बीच उनकी लोकप्रियता पार्टी के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती है. लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया, जब अलीनगर में स्थानीय नेताओं ने बगावत का बिगुल बजा दिया.

सियासत का पुराना रंगमंच अलीनगर

अलीनगर कोई नई सीट नहीं है. 2008 में बहेड़ा विधानसभा से अलग होकर बनी इस सीट पर मैथिल ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम वोटरों का मिश्रण है. करीब 2.6 लाख वोटरों वाली इस सीट पर सड़क, बिजली, और सिंचाई जैसे बुनियादी मुद्दे हमेशा चर्चा में रहते हैं. 2020 में VIP के मिश्रीलाल यादव ने यहां से जीत हासिल की थी, मिश्रीलाल को 61082 वोट और राजद प्रत्याशी को 57981 मत मिले थे. लेकिन अब खबर है कि उनका टिकट कटना लगभग तय है. मिश्रीलाल ने तो पहले ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया है.

2015 में आरजेडी के अब्दुल बारी सिद्दीकी ने भाजपा के मिश्रीलाल यादव को हराया था और 13,460 वोटों से मात दी थी. उससे पहले 2010 में यहां पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे. उस चुनाव में भी राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी ही जीते थे. 2008 में परिसीमन के बाद अलीनगर विधानसभा अस्तित्व में आई. अभी तक के विधानसभा चुनाव में राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी और एक बार वीआईपी के खाते में सीट गई थी.

अलीनगर में बीजेपी अब नया चेहरा लाना चाहती है और मैथिली का नाम सबसे आगे है. लेकिन विपक्ष भी चुप नहीं बैठा. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने इस सीट पर पूरी ताकत झोंक दी है. उनके कद्दावर नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी का अलीनगर और बेनीपुर में पुराना रुतबा है. सिद्दीकी 8 बार विधायक रह चुके हैं, और उनका दबदबा अभी भी कायम है. इस बार आरजेडी विनोद बिहार को टिकट दे सकती है, जो 2020 में बेहद कम अंतर से हारे थे. आरजेडी ‘मुस्लिम-यादव’ समीकरण के दम पर अलीनगर को फिर से अपने पाले में लाने की जुगत में है.

यह भी पढ़ें: IPS अधिकारी के सुसाइड केस में बड़ा मोड़, रोहतक में अब ASI ने खुद को मारी गोली, VIDEO नोट में लगाए कई गंभीर आरोप

बीजेपी में घर का झगड़ा

अब आते हैं ड्रामे के सबसे मसालेदार हिस्से पर. बीजेपी के अंदर ही बवंडर मच गया है. अलीनगर में बीजेपी के स्थानीय नेता संजय सिंह उर्फ पप्पू सिंह पिछले पांच साल से दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. गांव-गांव घूमकर, बूथ मजबूत करके और कार्यकर्ताओं को जोड़कर अपने लिए सियासी जमीन तैयार की है.

इससे पहले साल 2020 में उन्होंने लालू यादव से टिकट की मांग की लेकिन निराशा हाथ लगी. फिर विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव की पार्टी से मैदान में ताल ठोक दिया. नतीजा? महज 9 हजार वोट मिले. इसके बाद पप्पू सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया. अब उन्हें उम्मीद है कि पार्टी इस बार टिकट देगी.

लेकिन अब मैथिली के नाम की चर्चा ने पप्पू सिंह के समर्थकों का खून खौला दिया है. स्थानीय कार्यकर्ता खुलेआम नाराजगी जता रहे हैं. सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ आ गई है और स्थानीय मीटिंग्स में “बाहरी भगाओ, अलीनगर बचाओ” के नारे गूंज रहे हैं. पप्पू सिंह के समर्थकों का कहना है कि मैथिली और उनका परिवार बिहार की जमीनी हकीकत से कट चुका है. कुछ तो मैथिली के पिता पर घमंड का इल्जाम लगा रहे हैं.

एक कार्यकर्ता ने तो फुसफुसाते हुए कहा, “सितारे बन गए तो क्या, सियासत मेहनत से जीती जाती है, स्टेज की चमक से नहीं.” खबर ये भी है कि अगर मैथिली को टिकट मिला, तो पप्पू सिंह निर्दलीय मैदान में उतर सकते हैं. अगर ऐसा हुआ, तो बीजेपी का वोट बैंक बंट सकता है और आरजेडी को इसका सीधा फायदा मिल सकता है. बीजेपी आलाकमान अब इस आग को बुझाने की कोशिश में जुटा है, लेकिन कार्यकर्ताओं का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा.

सियासत की धुन पर मैथिली की थिरकन!

बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें तय हैं. पहले चरण में 6 नवंबर, दूसरे में 11 नवंबर को वोटिंग होगी, और 14 नवंबर को नतीजों का बिगुल बजेगा. अगर मैथिली अलीनगर से मैदान में उतरीं, तो उनकी लोकप्रियता और मिथिला की सांस्कृतिक पहचान उन्हें युवा और मैथिल ब्राह्मण वोटरों का बड़ा समर्थन दिला सकती है. उनकी फैन फॉलोइंग बीजेपी के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकती है. लेकिन पप्पू सिंह जैसे पुराने सिपाहियों की नाराजगी पार्टी के लिए सिरदर्द बन सकती है. अगर वोट बंटा, तो आरजेडी के लिए जीत की राह आसान हो सकती है.

क्या होगा अलीनगर का भविष्य?

मैथिली का सियासी डेब्यू बिहार की सियासत में एक नया रंग ला सकता है. उनके गीतों की तरह उनकी सियासी पारी भी मीठी हो सकती है, लेकिन अलीनगर का रण तीखे तेवरों वाला है. स्थानीय नेताओं की बगावत, विपक्ष का दबदबा और वोटों का समीकरण, ये सब मिलकर इस सियासी मेले को और रोमांचक बना रहे हैं. क्या मैथिली अपनी मखमली आवाज और स्टारडम से अलीनगर को झुमा पाएंगी या पप्पू सिंह और आरजेडी की चाल सब बिगाड़ देगी? आने वाले दिनों में ये देखने वाली बात होगी.

Exit mobile version