Vistaar NEWS

बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस ने दी इस्तीफे की धमकी, अंतरिम सरकार पर जनता का दबाव या सेना का?

Bangladesh Political Crisis

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस

Bangladesh Political Crisis: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस के इस्तीफे की खबरों ने राजनीतिक तापमान एक बार फिर बढ़ा दिया है. गुरुवार को यूनुस ने अपने करीबी मंत्रियों के सामने साफ शब्दों में कहा कि अगर वह स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते, तो पद पर बने रहना व्यर्थ है. इसके बाद से उनके इस्तीफे की अटकलों ने जोर पकड़ लिया.

जानकारी के मुताबिक, यूनुस के इस बयान के बाद नेशनल सिटिजन्स पार्टी (NCP) के संयोजक नाहिद इस्लाम और दूसरे सलाहकार महफुज आलम के अलावा आसिफ महमूद भुंइया शाम को उनके सरकारी आवास ‘जमुना’ पहुंचे और उन्हें मनाने की कोशिश की. लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यूनुस ने कहा कि वे हालात से बेहद निराश हैं और इस्तीफा देने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं.

राजनीतिक दबाव या कुछ और?

बांग्लादेश में छात्र को आगे कर कट्टरपंथियों के आंदोलन ने पिछले साल वहां कि प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को सत्ता के साथ-साथ देश छोड़ने पर मजबूर किया. इसके बाद अगस्त, 2024 में मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार की कमान सौंपी गई. तब यूनुस ने वादा किया था कि 2026 तक देश में आम चुनाव कराए जाएंगे. लेकिन ख़ालिदा जिया की मुख्य विपक्षी पार्टी BNP इस समयसीमा को खारिज करते हुए तुरंत चुनाव की तारीख घोषित करने की मांग कर रही है.

BNP नेता खंडकार मोशर्रफ हुसैन ने साफ कहा है, “अगर सरकार जनभावनाओं को नहीं समझती, तो पार्टी अपना समर्थन वापस ले सकती है.” इसके अलावा BNP ने आरोप लगाया है कि 2020 के ढाका मेयर चुनाव में उनके उम्मीदवार इशराक हुसैन की जीत को तत्कालीन हसीना सरकार ने अवैध तरीके से रोक दिया था और आज की तारीख़ में युसूफ की अंतरिम सरकार भी अब उस फैसले को पलटने में विफल रही है.

युसूफ और सेना में अधिकारों को लेकर टकराव

यूनुस की मुश्किलें केवल राजनीतिक दलों तक सीमित नहीं हैं. उनकी सबसे बड़ी दिक़्क़त सेना अध्यक्ष से है. बांग्लादेश की कमान संभालने के दौरान ही सेना प्रमुख वकार-उज-जमान के साथ युसूफ के तनानती की ख़बरें बाहर आने लगी थीं. अब ये रिश्ते और ज़्यादा तनावपूर्ण होने लगे हैं. जनरल ज़मान चाहते हैं कि चुनाव इसी साल दिसंबर तक हो जाएं, लेकिन यूनुस का रुख इसके विपरीत है. इसके अलावा, म्यांमार के रखाइन प्रांत में राहत सामग्री भेजने के लिए प्रस्तावित ‘ह्यूमैनिटेरियन कॉरिडोर’ पर भी दोनों के बीच जबरदस्त मतभेद है. सेना इसका विरोध कर रही है, जबकि यूनुस इसे मानवीय जिम्मेदारी मानते हैं. इसके अलावा यूनुस बग़ैर देश के सभी स्टेकहोल्डर से मशवरा किए बग़ैर लगातार चीन के प्रति अपना झुखाव दिखा रहे हैं. अभी भी बांग्लादेश की सेना में कुछ अधिकारी इस हरकत से नाखुश हैं, उन्हें लगता है कि बांग्लादेश चीन का कठपुतली बनता जा रहा है.

यह भी पढ़ें: हिलने लगी यूनुस की कुर्सी, इन 4 ने डुबोई नैया…बांग्लादेश में होने वाले तख्तापलट की असली कहानी!

इस्तीफ़े का डर, यूनुस का नया पैंतरा

विश्लेषकों की राय है कि यूनुस का इस्तीफे का बयान एक भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि गहरी रणनीति का हिस्सा है. इससे वे सेना और विपक्ष दोनों पर दबाव बनाना चाह रहे हैं ताकि उन्हें खुले हाथ से शासन चलाने की छूट मिल सके. बहरहाल, ये सब ऐसे हालात में हो रहा है जब बांग्लादेश पहले से ही आर्थिक मंदी, राजनीतिक अस्थिरता और भारत से रिश्तों में कड़वाहट का सामना कर रहा है. ऐसे में अगर यूनुस का इस्तीफा आता है, तो यह देश को एक और संवैधानिक संकट में धकेल सकता है.

हालांकि, यूनुस की हरकतें दिखाती हैं कि वह इस लड़ाई में अकेले नहीं हैं. ज़रूर एक स्ट्रॉन्ग बैकिंग उन्हें मिली हुई है, तभी सेना से लेकर मुख्य राजनीतिक दलों को भी हड़काने से बाज नहीं आ रहे. ऐसे में यह और ज़्यादा विश्लेषण का मुद्दा है कि आख़िर वह कौन सी पावर है जो 84 साल के युसूफ को इतनी साहस दे रही है कि वह सेना और राजनीतिक दलों से भिड़ते रहें.

Exit mobile version