Mossad: इजरायल और ईरान के बीच चल रही तनातनी में एक नाम खूब चर्चा में है – मोसाद. ये इजरायल की वो खुफिया एजेंसी है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि इसने ईरान के टॉप 8 अफसरों की हत्या में बड़ी मदद की है. यहां तक कि ईरान के कुछ परमाणु ठिकानों पर हुए हमलों में भी मोसाद के जासूसों का हाथ माना जा रहा है. सोचिए, ये कितनी दमदार एजेंसी होगी कि दुनिया भर में इसके चर्चे हैं.
मोसाद सिर्फ एक खुफिया एजेंसी नहीं, बल्कि विरोधियों के लिए किसी ‘किलिंग मशीन’ से कम नहीं. ये अपने खतरनाक ऑपरेशनों, बड़े-बड़े टारगेट को खत्म करने और शानदार नेटवर्किंग के लिए जानी जाती है. सबसे खास बात ये है कि ये सीधे इजरायल के प्रधानमंत्री के दफ्तर के अंडर काम करती है और इसका मुखिया सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है.
कब बनी ये ‘खतरनाक’ एजेंसी?
इजरायल को हमेशा अपने दुश्मन देशों से खतरा रहता था. ऐसे में उसे एक मजबूत खुफिया एजेंसी की सख्त जरूरत थी. बस, इसी सोच के साथ इजरायल बनने के तुरंत बाद 13 दिसंबर 1949 को मोसाद की नींव रखी गई. पहले इसे ‘हग्गाना’ कहते थे, फिर इसका नाम ‘सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी’ रखा गया, जिसे आज हम मोसाद के नाम से जानते हैं. 1951 में इसे प्रधानमंत्री कार्यालय का हिस्सा बना दिया गया. मोसाद को ‘किलिंग मशीन’ इसलिए भी कहते हैं क्योंकि ये इजरायल के दुश्मनों को दुनिया के किसी भी कोने से ढूंढ निकालती है.
कैसे काम करती है मोसाद?
मोसाद कोई आम खुफिया एजेंसी नहीं है, इसका काम करने का तरीका भी बड़ा निराला है.मोसाद का सबसे बड़ा हथियार उसका दुनियाभर में फैला जासूसों का जाल है. ये जासूस अलग-अलग देशों में आम नागरिक, कारोबारी, पत्रकार, स्टूडेंट या डिप्लोमैट बनकर रहते हैं. मोसाद इन्हें झूठ बोलने, जासूसी के औजार इस्तेमाल करने और मुश्किल में खुद को बचाने की ज़बरदस्त ट्रेनिंग देती है.
मोसाद के पास ‘मेट्जादा’ नाम की एक खास यूनिट है, जो इजरायल विरोधी खतरनाक लोगों को ठिकाने लगाने का काम करती है. ये ऑपरेशन इतने गुपचुप होते हैं कि अक्सर दूसरे देशों की ज़मीन पर भी अंजाम दिए जाते हैं, और उस देश को भनक तक नहीं लगती. इतना ही नहीं, खुफिया जानकारी निकलवाने, फाइलें चुराने या टारगेट को ब्लैकमेल करने के लिए मोसाद हनीट्रैप का भी इस्तेमाल करती है. भले ही कई एजेंसियां इसे अपनाती हों, लेकिन मोसाद इसमें माहिर मानी जाती है.
टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
हाल के सालों में मोसाद ने साइबर इंटेलिजेंस और हैकिंग में भी महारत हासिल कर ली है. कुछ समय पहले लेबनान में हिजबुल्लाह के आतंकियों को मारने के लिए पेजर में बड़े धमाके करवाए गए थे, जिसका श्रेय मोसाद को ही दिया गया. यहां तक कि 2020 में ईरान के वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादे की हत्या में भी मोसाद ने रिमोट कंट्रोल मशीनगन का इस्तेमाल किया था.
मोसाद के कुछ हैरतअंगेज कारनामे
मोसाद ने अपनी शुरुआत से ही ऐसे-ऐसे ऑपरेशन किए हैं कि पूरी दुनिया हैरान रह गई है. इजरायल के घोषित दुश्मन हमेशा मोसाद से डरते हैं. आइए जानते हैं इसके कुछ बड़े ऑपरेशनों के बारे में.
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एडॉल्फ आइश्मैन का अपहरण
एडॉल्फ आइश्मैन नाजी का वो खूंखार अपराधी था, जिसे यहूदियों की हत्या के लिए इजरायल जिम्मेदार मानता था. वो अर्जेंटीना में छिपा था. साल 1960 में मोसाद उसे गुपचुप तरीके से पकड़कर इजराइल ले आई और वहां मुकदमा चलाकर उसे फांसी दी गई. ये ऑपरेशन दिखाता है कि मोसाद कितनी दूर तक जाकर अपने टारगेट को पकड़ सकती है.
म्यूनिख ओलंपिक का बदला
1972 के म्यूनिख ओलंपिक में फिलिस्तीनी संगठन ‘ब्लैक सेप्टेंबर’ ने 11 इजरायली खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी. मोसाद ने इस हत्याकांड का बदला लेने के लिए ‘ऑपरेशन रॉथ ऑफ गॉड’ नाम से एक मिशन चलाया. मोसाद ने हत्या करने वाले एक-एक सदस्य को सालों तक ढूंढ-ढूंढकर मारा. ये अभियान 20 साल तक चला और इसे सबसे लंबा बदले का ऑपरेशन माना जाता है.
ओसिराक परमाणु रिएक्टर की तबाही
1981 में इराक की राजधानी बगदाद से 18 किमी दूर एक परमाणु रिएक्टर था, जिसका नाम ओसिराक था. इजरायल को डर था कि अगर इराक परमाणु बम बना लेता है तो उसका पहला निशाना इजरायल ही होगा. मोसाद की मदद से इजरायल के जेट बिना किसी विदेशी मदद के रडार से बचते हुए इराक पहुंचे और 2 मिनट से भी कम समय में रिएक्टर को पूरी तरह तबाह कर दिया.
ईरान से परमाणु दस्तावेज की चोरी
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि इजरायल ने ईरान में युद्ध की स्क्रिप्ट जनवरी 2018 में ही लिख दी थी. जनवरी की एक रात मोसाद के जासूसों ने तेहरान के बाहर एक खुफिया गोदाम में घुसकर ईरान के परमाणु दस्तावेज चुरा लिए थे. ये दस्तावेज एक बड़े कमरे में रखी 32 विशालकाय तिजोरियों में बंद थे, जिनकी ऊंचाई 2.7 मीटर थी. ये तिजोरियां बोल्ट, दो मोटी लोहे की परतों वाले दरवाजे, अलार्म सिस्टम और कैमरों से लैस थीं.
लेकिन मोसाद के जासूसों ने कैमरे और अलार्म को चुपचाप बंद कर दिया और इन तिजोरियों से सारे फोल्डर, सीडी, डीवीडी और कंप्यूटर डिस्क उड़ा लिए. रात में घुसे मोसाद के एजेंट सुबह 5 बजे तक सारे दस्तावेज लेकर गोदाम से निकल भी चुके थे. जो दस्तावेज चुराए गए थे, उनमें 114 फोल्डरों में 55 हजार से ज्यादा पन्ने थे. जब इजरायल ने फारसी में लिखे इन दस्तावेजों का अनुवाद करवाया, तो पता चला कि ईरान सालों से एक गुप्त परमाणु परियोजना पर काम कर रहा था.
