Punjab Politics: दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा है. 2020 में जहां आप ने 62 सीटों पर विजय प्राप्त की थी, वहीं इस बार केवल 22 सीटों पर ही सफलता मिल पाई. इस हार का पंजाब की राजनीति पर गहरा असर पड़ने वाला है, और अब इस बात को लेकर अटकलें लग रही हैं कि यहां पार्टी के भीतर बड़े फेरबदल हो सकते हैं. पंजाब की मौजूदा सरकार को इस संकट से उबरने और जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता बहाल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. इस बीच, आज मंगलवार को केजरीवाल पंजाब के सभी विधायकों के साथ एक अहम बैठक करने जा रहे हैं, जिसे पंजाब की राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
क्या पंजाब में भी हो सकता है सत्ता परिवर्तन?
पंजाब में आप की सरकार चल रही है, लेकिन दिल्ली की हार के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या पंजाब में भी कुछ बड़ा बदलाव हो सकता है? इस मीटिंग को लेकर तमाम सियासी अटकलें लगाई जा रही हैं. खासकर कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं का कहना है कि सीएम भगवंत मान की सरकार की विफलताओं को आधार बनाकर पंजाब में सत्ता परिवर्तन किया जा सकता है. कई मुद्दों पर मान सरकार की असफलता, जैसे महिलाओं के खातों में पैसे ना आना, राज्य की कानून व्यवस्था की खस्ता हालत, और ड्रग माफिया का बढ़ता प्रभाव—इन सभी कारणों से सीएम भगवंत मान के खिलाफ जनता में नाराजगी बढ़ रही है. वहीं, कुछ जानकारों का मानना है कि पार्टी को संकट से उबारने के लिए केजरीवाल पंजाब में अपनी भूमिका को और सक्रिय कर सकते हैं.
चुनावी वादों का पूरा न होना
पंजाब में मान सरकार ने अपनी सत्ता में आने से पहले कई वादे किए थे, जिनमें से कुछ बड़े वादे अब तक पूरे नहीं हो पाए हैं. इनमें सबसे प्रमुख वादा महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये की आर्थिक सहायता देने का था. इस वादे को पूरा करने का दावा तो किया गया था, लेकिन तीन सालों में यह वादा सरकार के लिए एक सपना ही बना रहा.
यह वादा पंजाब की महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता था, क्योंकि राज्य में महिला सशक्तिकरण और उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए इसे एक बड़ा कदम माना गया था. लेकिन सरकार इसे लागू करने में नाकाम रही, और इसका असर अब जनता में दिखने लगा है.
राज्य का बढ़ता कर्ज
सिर्फ वादों का पूरा न होना ही नहीं, बल्कि पंजाब के राज्य का कर्ज भी लगातार बढ़ रहा है. आम आदमी पार्टी की सरकार ने जो वित्तीय प्रबंधन का वादा किया था, वह भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया. इसके चलते राज्य का कर्ज अब एक गंभीर समस्या बन चुका है. फिलहाल, पंजाब पर कर्ज का बोझ बढ़ने के कारण सरकार की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो गई है, और इससे राज्य में विकास कार्यों में भी रुकावटें आ रही हैं.
कर्ज का बढ़ना न सिर्फ सरकार के लिए, बल्कि आम जनता के लिए भी चिंता का विषय बन चुका है. यह सवाल उठने लगा है कि क्या सरकार के पास इस बढ़ते कर्ज से उबरने का कोई ठोस समाधान है, या फिर इसे और बढ़ाया जाएगा?
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मान सरकार को अपनी छवि सुधारने का मौका
अब मान सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अपनी छवि को सुधारने के लिए क्या कदम उठाती है. अगर पार्टी अपने चुनावी वादों को जल्दी पूरा नहीं करती है और राज्य की वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं होता, तो इसका असर अगले चुनावों में पार्टी की संभावना पर पड़ सकता है.
इसलिए, अब यह देखना होगा कि क्या पंजाब सरकार आने वाले समय में अपनी चुनावी वादों को निभाने में सक्षम होगी, या फिर यहां जल्द ही बड़े फेरबदल देखने को मिलेंगे. अगर पार्टी को जनता का विश्वास वापस पाना है, तो उसे अपने वादों को पूरा करना होगा और राज्य के कर्ज को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे.
बड़े फेरबदल की संभावना
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी को पंजाब में अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा, और अगर समय रहते कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ तो पार्टी को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. पंजाब में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं. राज्य में एससी वोटरों की बड़ी आबादी है, अगर इस तबके को फिर से साधना है तो किसी भी हाल में वादे पूरे करने होंगे. शायद केजरीवाल को दिल्ली के बाद पंजाब में यही डर सता रहा है.
क्या केजरीवाल का रास्ता राज्यसभा से होकर जाएगा?
अब सवाल यह भी है कि क्या केजरीवाल राज्यसभा की तरफ रुख करेंगे? पंजाब और दिल्ली दोनों राज्यों में राज्यसभा चुनाव आने वाले हैं—पंजाब में 2027 में और दिल्ली में 2030 में. हालांकि, केजरीवाल के लिए यह रास्ता लंबा हो सकता है, और राजनीति में इतने लंबे समय तक सक्रिय नहीं रह पाना उनकी मंशा के खिलाफ हो सकता है. ऐसे में वह सक्रिय राजनीति से दूर रहने का फैसला नहीं कर सकते. यही कारण है कि पंजाब की राजनीति में उनकी भूमिका को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.
लुधियाना सीट पर उठ रहे सवाल
अभी लुधियाना सीट खाली पड़ी है, और इस सीट को लेकर चर्चा है कि क्या अरविंद केजरीवाल वहां से चुनाव लड़ेंगे? अगर वह लुधियाना से चुनाव जीतते हैं, तो इससे यह स्पष्ट हो सकता है कि वह पंजाब की राजनीति में सक्रिय होने जा रहे हैं. इसके बाद वह दिल्ली के बजाय पंजाब से आम आदमी पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं.
क्या केजरीवाल पंजाब में विधायकों को साथ रख पाएंगे?
अरविंद केजरीवाल की प्राथमिकता इस वक्त पंजाब में पार्टी को एकजुट रखना है. राज्य में पार्टी के भीतर टूट की खबरें भी आ रही हैं, और इस स्थिति को सुधारने के लिए केजरीवाल अपने विधायकों से बातचीत कर रहे हैं. उनके लिए यह एक बड़ा राजनीतिक परीक्षण होगा, क्योंकि अगर पंजाब में पार्टी टूटती है तो उसका सीधा असर आम आदमी पार्टी की साख पर पड़ेगा. केजरीवाल के सामने चुनौती यह भी है कि वे पंजाब की जनता को समझा सकें कि उनके द्वारा किए गए चुनावी वादे और सरकार के कदम असल में उनके फायदे के लिए हैं.
क्या पंजाब में केजरीवाल का राजनीतिक कदम दिल्ली जैसा साबित होगा?
यह कहना तो मुश्किल है कि पंजाब में क्या होने वाला है, लेकिन दिल्ली की सियासत जिस तरह से बदल चुकी है, उसे देखते हुए पंजाब में भी कुछ बड़ा बदलाव हो सकता है. अगर पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार फिर से खड़ी रहती है, तो केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी को नई दिशा मिल सकती है. हालांकि, यह सब सिर्फ अटकलें हैं, लेकिन राजनीतिक माहौल जिस तरह से बदल रहा है, उसे देखते हुए कुछ भी नकारा नहीं जा सकता.
पंजाब में अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या यहां भी वही स्थिति पैदा होगी, जो दिल्ली में बनी, या फिर अरविंद केजरीवाल पंजाब में खुद को एक नया राजनीतिक चेहरा बना सकते हैं?
दलित मतदाता बने पंजाब की सत्ता की चाबी
पंजाब में 32 फ़ीसदी दलित मतदाता हैं, जिनके लिए राज्य की 117 विधानसभा सीटों में से 34 सीटें आरक्षित की गई हैं. पंजाब में दलित जाति में सबसे बड़ा रविदासिया समाज है. इसके अलावा भगत बिरादरी, बाल्मीकि भाईचारा, मजहबी सिक्ख का खासा प्रभाव माना जाता है. चरणजीत सिंह चन्नी भी दलित बिरादरी के रविदासिया समाज से आते हैं. इसी वजह से विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दलित मुख्यमंत्री को सीएम का चेहरा बनाकर दलित वोट को अपने पक्ष में करने की भरपूर कोशिश की थी. हालांकि, दलितों ने आम आदमी पार्टी पर ही भरोसा जताया.
आग में हाथ जलाने का जोखिम नहीं लेंगे केजरीवाल
पंजाब के मुख्यमंत्री बनने का सवाल अरविंद केजरीवाल के सामने इस समय एक बड़ा राजनीतिक दांव है, लेकिन यह माना जा रहा है कि वह आग में हाथ जलाने की जोखिम नहीं लेंगे. पंजाब की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, जहां कानून व्यवस्था, ड्रग माफिया और महिला कल्याण जैसे मुद्दे पार्टी के लिए सिरदर्द बन चुके हैं, केजरीवाल के लिए पंजाब की कमान संभालना कोई आसान काम नहीं होगा. अगर वह सीएम पद की ओर बढ़ते हैं, तो उन्हें न केवल सत्ता की जिम्मेदारी संभालनी होगी, बल्कि हर मोर्चे पर जनता के भरोसे को भी फिर से जीतना होगा. ऐसे में यह संभावना कम है कि वह पंजाब के मुख्यमंत्री बनने का खतरा उठाएंगे, खासकर जब उनके पास दिल्ली में खुद को साबित करने का मौका हो.
आने वाले दिनों में क्या हो सकता है?
पंजाब में आम आदमी पार्टी के लिए अब एक कठिन दौर है. अगर उसे सत्ता में बने रहना है तो उसे हर मोर्चे पर जनता को विश्वास में लेना होगा. उसे अपने अधूरे वादों को पूरा करना होगा, राज्य के बढ़ते कर्ज को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने होंगे और अपनी छवि को फिर से सुधारने के लिए सख्त फैसले लेने होंगे. अब सवाल यह है कि क्या पंजाब की मान सरकार यह सब करने में सफल हो पाएगी, या फिर पार्टी को अपने इस कार्यकाल में बड़े बदलाव करने होंगे? वक्त ही बताएगा कि आम आदमी पार्टी पंजाब में अपनी सियासत को कैसे संजीवनी देती है.
