PM Modi Putin Summit: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 4 और 5 दिसंबर को हुई दो दिवसीय भारत यात्रा कई वजहों से महत्वपूर्ण रही. सबसे ज़्यादा चर्चा इस बात को लेकर हुई कि क्या इस यात्रा के दौरान कोई बड़ी रक्षा डील, खासकर परमाणु पनडुब्बियों, S-400 की अतिरिक्त खेप या Su-57 जैसे उन्नत लड़ाकू विमानों को अंतिम रूप दिया गया? बड़े रक्षा सौदों को लेकर सवाल हर तरफ़ पूछे जा रहे हैं क्योंकि पुतिन के साथ उनकी टोली में रूस की सरकारी हथियार निर्यात एजेंसी “Rosoboronexport” के प्रमुख अधिकारी शामिल थे.
ऐसे में यह किसी के गले नहीं उतर रही है कि सरकारी हथियार निर्यात एजेंसी Rosoboronexport के अधिकारियों के होते हुए भी डील नहीं हुई. लेकिन, ज़ाहिर है यदि धुआं उठ रहा है, तो आग भी इसी के इर्द-गिर्द होगी. कुल मिलाकर दोनों देशों के आधिकारिक बयानों में किसी नई “बड़ी हथियार खरीद” की पुष्टि नहीं की गई. जो संकेत मिले, वे बताते हैं कि भारत-रूस रक्षा साझेदारी एक नए ढांचे की ओर बढ़ रही है. और यही इस पूरी द्विपक्षीय वार्ता का कैच है.
रूसी तकनीक, भारत में निर्माण
सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान में साफ कहा गया कि दोनों देश रक्षा-सहयोग के “स्ट्रक्चरल मॉडल” को बदलने पर सहमत हुए हैं. इसमें “Make in India” के तहत रूसी हथियारों और रक्षा उपकरणों के स्पेयर पार्ट्स, कंपोनेंट्स और एग्ग्रीगेट्स के भारत में संयुक्त निर्माण पर जोर दिया गया है. इसका अर्थ यह है कि भारत अब केवल हथियार खरीदार नहीं रहेगा, बल्कि रक्षा उत्पादन में एक साझेदार की भूमिका निभाएगा. इस कदम को भारत के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है. क्योंकि, अभी तक मामला पैसा दो और सामान लो तक सीमित था, लेकिन अब भारत में हथियारों के निर्माण से न सिर्फ आगामी दिनों में बड़े हथियारों के अपग्रेडेशन बल्कि नई खेप के भी निर्माण का रास्ता साफ हो जाएगा
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने खुलकर स्वीकार किया कि भारत-रूस सैन्य-तकनीकी सहयोग “पिछले 50 वर्षों से लगातार मजबूत रहा है” और रूस भारतीय सशस्त्र बलों को वायु रक्षा, एविएशन और नौसेना क्षमताओं के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण समर्थन देता आया है. वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक तौर पर रक्षा (Defence) पर कोई नई घोषणा नहीं की, जिससे यह समझा जा सकता है कि इस बार बातचीत गहरी थी, लेकिन उसका स्वरूप तकनीकी सहयोग और आपूर्ति-श्रृंखला सुधार की दिशा में था.
रूसी हथियार निर्यात एजेंसी की मौजूदगी का मतलब
यात्रा के दौरान एक और महत्वपूर्ण पहलू यह रहा है कि पुतिन के साथ रूस की सरकारी हथियार निर्यात एजेंसी Rosoboronexport के शीर्ष अधिकारी भी मौजूद थे. यह स्वयं एक संकेत देता है कि बातचीत का फोकस रक्षा उपकरणों की सप्लाई, लॉजिस्टिक सपोर्ट और भविष्य की संयुक्त परियोजनाओं पर रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार, Rosoboronexport की मौजूदगी यह दिखाती है कि रूस भारत के साथ लंबी अवधि के रक्षा उत्पादन मॉडल विशेष रूप से “स्पेयर-पार्ट्स इंडिपेंडेंस” के लिए नए प्रारूप पर काम करना चाहता है. हालांकि, कुछ स्त्रोतों से जानकारी यह भी मिल रही है कि भारत और रूस के बीच न्यूक्लियर अटैक सब-मरीन का लीज भी भारत को मिलने वाला है. पिछले महीने परमाणु-अटैक वाली पनडुब्बी के लीज की खबरें कुछ अखबारों में छपी थीं, और दुनिया के सनसनी भी फैली थी. बताया गया था कि यह डील भारत ने 2 बिलियन डॉलर में पक्की कर ली है. बहरहाल, अभी तक इसको लेकर औपचारिक घोषणा नहीं हुई है.
वैसे भी दिल्ली में इस यात्रा से पहले 26–28 नवंबर के बीच एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ पैनल की बैठक भी हुई थी. इसमें दोनों देशों के रक्षा विशेषज्ञों ने पुराने रूसी हथियारों जैसे एसयू श्रेणी के फाइटर, MIG-29, T-90 टैंकों, BMP वाहनों और Kilo-श्रेणी की पनडुब्बियों के मेंटेनेंस और सप्लाई-चेन सुधार पर विस्तृत रोडमैप तैयार किया था. रूस-निर्मित हथियारों पर भारत की निर्भरता को देखते हुए यह कदम बेहद महत्वपूर्ण माना गया.
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कुल मिलाकर, प्रत्यक्ष तौर पर पुतिन-मोदी की मुलाकात में रक्षा क्षेत्र में “बड़ी खरीद” की बात सामने नहीं आई है, लेकिन “बड़े संरचनात्मक बदलाव” की नींव जरूर रखी गई है. यह मॉडल भारत को रक्षा उत्पादन में स्वावलंबी बनाने, रूस-निर्मित हथियारों की सप्लाई-चेन मजबूत करने और भविष्य की संयुक्त हाई-टेक परियोजनाओं का दरवाजा खोलने की दिशा में इशारा करता है. यह कहना गलत नहीं होगा कि यह यात्रा भारत-रूस रक्षा सहयोग को एक नए युग में प्रवेश करवाने की शुरुआत बन सकती है.
