Voter Adhikar Yatra: बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले ही पारा चढ़ गया है. चुनावी हवा अभी से ही गरम होने लगी है और इस गर्मी को और बढ़ा दिया है कांग्रेस नेता राहुल गांधी और RJD के युवा तुर्क तेजस्वी यादव ने. दोनों ने मिलकर 17 अगस्त 2025 से एक नई और बड़ी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरू करने की ठानी है, जिसने पूरे राज्य में एक नई राजनीतिक हलचल मचा दी है. यह सिर्फ एक राजनीतिक यात्रा नहीं है, बल्कि महागठबंधन (RJD-Congress-Left Parties) का एक बड़ा सियासी दांव है, जिसका मकसद बीजेपी-जेडीयू के सत्ताधारी गठबंधन को सीधे चुनौती देना है.
यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक मानी जा रही है. पहली बार बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के दो सबसे बड़े नेता एक साथ, कंधे से कंधा मिलाकर इतने लंबे समय तक सड़क पर रहेंगे. यह यात्रा न केवल चुनावी समीकरणों को बदलने की कोशिश है, बल्कि एक बड़ा जन आंदोलन बनाने का प्रयास भी है, जिसका केंद्र बिंदु है ‘मतदाता सूची में कथित धांधली’ का मुद्दा.
‘वोटर अधिकार यात्रा’ की पूरी कहानी
राहुल और तेजस्वी की यह यात्रा 16 दिनों तक चलेगी, जिसमें वे मिलकर 23 से 25 जिलों और लगभग 1300 किलोमीटर का सफर तय करेंगे. इसकी शुरुआत 17 अगस्त 2025 को रोहतास जिले के सासाराम से हो रही है, इसका समापन 1 सितंबर 2025 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में एक विशाल रैली के साथ होगा. इस रैली में इंडिया गठबंधन के राष्ट्रीय स्तर के कई बड़े नेता शामिल होंगे, जो बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता का एक बड़ा संदेश देंगे.
यात्रा का रूट मैप भी बेहद सोच-समझकर तैयार किया गया है. यह यात्रा बिहार के लगभग हर क्षेत्र को कवर करेगी, जिसमें मगध, शाहाबाद, अंगिका, मिथिलांचल और चंपारण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं. इसका उद्देश्य उन सभी जिलों में पहुंचना है जहां महागठबंधन को मजबूती मिल सकती है या जहां उसका जनाधार कमजोर है.
शुरुआत (17-19 अगस्त): यात्रा की शुरुआत सासाराम से हो रही है, जो शाहाबाद क्षेत्र का हिस्सा है. यहां से यह औरंगाबाद, गया और नवादा होते हुए नालंदा और शेखपुरा पहुंचेगी. यह इलाका पारंपरिक रूप से आरजेडी और कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण रहा है.
मध्य चरण (21-29 अगस्त): यात्रा शेखपुरा से शुरू होकर लखीसराय, मुंगेर, भागलपुर और कटिहार जैसे पूर्वी बिहार के क्षेत्रों में जाएगी. इसके बाद यह पूर्णिया, अररिया, सुपौल और मधुबनी जैसे सीमांचल , मिथिलांचल और कोसी क्षेत्रों को कवर करेगी, जहां मुस्लिम और यादव वोट बैंक का दबदबा है. फिर यह दरभंगा, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और चंपारण (मोतिहारी-बेतिया) जैसे उत्तरी बिहार के महत्वपूर्ण जिलों से होकर गुजरेगी.
समापन (30 अगस्त-1 सितंबर): यात्रा का अंतिम चरण सारण (छपरा), आरा और पटना में होगा. छपरा और आरा लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक गढ़ माने जाते हैं, जबकि पटना की रैली बिहार की राजनीति के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है.
कांग्रेस और आरजेडी का ये मास्टरस्ट्रोक क्यों?
इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और एक विशिष्ट मुद्दे पर जनमत तैयार करना है. यह यात्रा न केवल एक राजनीतिक अभियान है, बल्कि एक जन आंदोलन के रूप में पेश की जा रही है.
‘वोट चोरी’ का बड़ा आरोप
यात्रा का सबसे बड़ा मुद्दा है ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) प्रक्रिया, जिसे मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया में सत्तारूढ़ एनडीए और चुनाव आयोग की मिलीभगत से बिहार में लाखों मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं.
राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाया कि बीजेपी और उसके सहयोगी दल चुनाव को प्रभावित करने के लिए ‘फर्जी नाम जोड़कर’ और ‘EVM हैकिंग’ के साथ-साथ वोटर लिस्ट में भी हेराफेरी कर रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि बिहार में 65 लाख से अधिक मतदाताओं की सूची में हेराफेरी हुई है. वहीं, तेजस्वी यादव ने गुजरात के बीजेपी नेता भिखु भाई दिलशानिया का नाम पटना के बांकीपुर विधानसभा की मतदाता सूची में शामिल होने का उदाहरण देकर अपने आरोपों को पुष्ट किया.
इस यात्रा के माध्यम से राहुल और तेजस्वी मतदाताओं को यह बताना चाहते हैं कि उनका वोट का अधिकार खतरे में है और उन्हें इसके लिए जागरूक होना होगा. यह रणनीति सीधे तौर पर दलित, पिछड़े, अति पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के वोटरों को लक्षित कर रही है, क्योंकि विपक्ष का दावा है कि इन्हीं समुदायों के वोट सबसे ज्यादा हटाए गए हैं.
महागठबंधन की एकजुटता का प्रदर्शन
यह यात्रा इंडिया गठबंधन की एकजुटता का सबसे बड़ा संदेश है. 1 सितंबर को पटना में होने वाली रैली में गठबंधन के राष्ट्रीय स्तर के नेता शामिल होंगे, जो बीजेपी-एनडीए के खिलाफ विपक्षी एकता को मजबूत करेगा.
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बिहार में कांग्रेस की कमजोर स्थिति
बिहार में कांग्रेस का जनाधार पिछले कुछ वर्षों से कमजोर रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर लड़कर भी पार्टी सिर्फ 19 सीटें जीत पाई थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को सिर्फ 3 सीटें ही मिलीं. राहुल गांधी की लगातार बिहार यात्राएं (पिछले 5 महीनों में 4 बार) और अब यह लंबी यात्रा कांग्रेस को दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और युवा वोटरों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने का मौका देगी.
कांग्रेस इस यात्रा के जरिए ‘जातिगत जनगणना’ और ‘आरक्षण’ जैसे मुद्दों को भी जोर-शोर से उठा रही है, जो बिहार में हमेशा से ही राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहे हैं.
बीजेपी-एनडीए पर दबाव बनाना
महागठबंधन इस यात्रा के जरिए बीजेपी-एनडीए गठबंधन पर लगातार दबाव बनाना चाहता है. वे विकास और सुशासन के एनडीए के दावों को वोटर लिस्ट की धांधली और लोकतंत्र को कमजोर करने के आरोपों से काटने की कोशिश कर रहे हैं.
कांग्रेस को ये सब करने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां हैं, जिसके कारण यह यात्रा जरूरी हो गई है.
महागठबंधन में छोटे भाई की भूमिका: बिहार में महागठबंधन की ड्राइविंग सीट हमेशा आरजेडी के पास रही है. कांग्रेस को हमेशा ‘छोटे भाई’ की तरह देखा जाता है. यह यात्रा कांग्रेस को अपनी स्थिति मजबूत करने और सीट बंटवारे में आरजेडी पर दबाव डालने का मौका देगी.
खराब प्रदर्शन का दबाव: 2020 के चुनाव में कांग्रेस का खराब प्रदर्शन महागठबंधन की हार का एक बड़ा कारण बना था. इस बार पार्टी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती.
युवा और दलित वोटरों पर फोकस: बिहार में 18-39 आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या बढ़ रही है. राहुल और तेजस्वी दोनों ही युवा वोटरों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं.
चुनाव आयोग पर दबाव: राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर खुले तौर पर आरोप लगाए हैं. इस यात्रा के जरिए कांग्रेस और आरजेडी चुनाव आयोग पर पारदर्शी मतदाता सूची बनाने का दबाव बनाना चाहते हैं.
महागठबंधन के सामने चुनौतियां क्या हैं?
सीट बंटवारे पर तनाव: आरजेडी और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर अभी भी तनाव है. कांग्रेस 70 सीटों पर अड़ी है, जबकि आरजेडी वाम दलों को भी ज्यादा सीटें देना चाहती है.
जनसुराज पार्टी का उभार: प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी बिहार में एक नया विकल्प बनकर उभर रही है. जनसुराज युवाओं और मध्यम वर्ग के वोटरों को आकर्षित कर रही है, जो महागठबंधन के लिए एक बड़ा खतरा है.
बीजेपी-जेडीयू का मजबूत गठबंधन: एनडीए (बीजेपी-जेडीयू) अपने विकास के एजेंडे पर कायम है. नीतीश कुमार का लंबा शासन और अनुभव भी एक बड़ा कारक है.
वोटर लिस्ट विवाद का जोखिम: अगर यह मुद्दा जनता के बीच नहीं चल पाया, तो यात्रा का असर कम हो सकता है.
कुल मिलाकर, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यह यात्रा बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू करने जा रही है. इसका मकसद सिर्फ चुनाव जीतना नहीं है, बल्कि बिहार की सियासी हवा को अपने पक्ष में मोड़ना है. यह यात्रा यह भी तय करेगी कि क्या विपक्ष ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को जनता के बीच एक बड़ा आंदोलन बना पाएगा या नहीं.
