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AAP तूसी ग्रेट हो! विपक्ष को हौंकने का रास्ता खुद ही दिखाया, अब दिल्ली में ‘रिवेंज पॉलिटिक्स’ पर हाय-तौबा

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पुलिस ने आप विधायकों को रोका

दिल्ली विधानसभा में हंगामा और हलचल अनुमान के मुताबिक दिखाई दे रही है. इस विधानसभा के भीतर बीते 10 सालों में आम आदमी पार्टी (AAP) ने जो लकीर खींची है, ज़ाहिर है उससे बड़ी लकीर खींचने के लिए बीजेपी विधायक भी बेचैन दिखाई दे रहे हैं. ख़ास तौर पर स्पीकर की कुर्सी पर बैठे विजेंदर गुप्ता. क्योंकि, बाक़ी विधायक बीते दो कार्यकाल में सदन का हिस्सा रहे हो या न रहे हों, विजेंद्र गुप्ता बतौर विधायक AAP सरकार में ढेरों रुसवाइयां झेल चुके हैं.

गुरुवार को विधानसभा स्पीकर के निर्देश पर AAP के विधायकों को विधानसभा परिसर में घुसने तक की अनुमति नहीं दी गई. कई सारे वीडियो वायरल हुए जिसमें पूर्व सीएम और AAP की विधायक आतिशी गार्ड के साथ बहस करती दिखाई दीं. बाद में AAP विधायकों ने गेट पर ही धरना दे दिया और यह धरना-प्रदर्शन 7 घंटे तक चला.

AAP विधायक आतिशी ने आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी की सरकार तमाम लोकतांत्रिक मर्यादओं को ताक पर रखकर विपक्ष को उसके अधिकार से वंचित कर रही है. क्या नेता प्रतिपक्ष अपने ऑफिस भी नहीं जा सकता? इस बाबत अतिशी ने राष्ट्रपति को एक पत्र लिखकर मिलने का वक़्त माँगा है. उन्होंने अपने पत्र में बीजेपी सरकार पर तानाशाही करने और विपक्ष की आवाज़ को दबाने का आरोप लगाया है. अपने पत्र में आतिशी ने भीमराव अंबेडकर और भगत सिंह की तस्वीर हटाने की शिकायत की है.

अपने 7 घंटे के विरोध प्रदर्शन के दौरान AAP के अधिकांश विधायक ‘जय भीम’ और भीमराव आंबेडकर की तस्वीर वाली तख्तियां लिए नारेबाज़ी करते रहे. इस दौरान इन्होंने कहा कि स्पीकर द्वारा उन्हें परिसर के बाहर रखना संसदीय परंपरा के ख़िलाफ है और 7 दशक में ऐसा पहली बार हुआ है जब विपक्ष को इस तरह से उसके अधिकारों से वंचित रखा गया है. ग़ौरतलब है कि विगत 10 सालों के आँकड़ों पर ग़ौर करेंगे तो इस तरह की सियासत और विपक्ष को धत्ता बताते हुए तमाम बिल पारित करने की कला में AAP सरकार भी कम नहीं रही है.

AAP के पहले कार्यकाल में दिखा मार्शलों की ताक़त

2016 में AAP के पास प्रचंड बहुमत था. 70 में से पार्टी को 67 सीटें मिली थीं और विपक्ष के नाम पर बीजेपी के खाते में सिर्फ़ 3 सीटें थीं. आज जैसे ही हालात कमोवेश उस दौरान ही थे. तब हाय-तौबा बीजेपी मचा रही थी. बीजेपी ने उस कार्यकाल के दौरान कई बार वहीं आरोप लगाए जो आज आम आदमी पार्टी के विधायक लगा रहे हैं.

बीजेपी विधायकों ने कई मर्तबा आरोप लगाए कि उनके साथ सदन में दुर्व्यवहार किया गया. न्यूनतम चर्चा के साथ हर बिल को पारित कर दिया गया. इसी वर्ष में बजट सेशन के दौरान बीजेपी के विधायकों को मार्शल से ज़बरदस्ती सदन के बाहर करा दिया गया. तब बीजेपी विधायकों पर सदन की कार्यवाही में बाधा पहुँचाने का आरोप लगा था.

अब ऐसा लग रहा है कि बीजेपी पुराने दिनों की कार्यशैली AAP को सूद समेत वापस भेज रही है. हालाँकि, लोकतंत्र में ‘रिवेंज’ का कोई स्थान नहीं होता. लेकिन, जो दिख रहा है उसे रिवेंज पॉलिटिक्स ही कहा जा सकता है. क्योंकि, यहाँ तो बीजेपी के शासन काल में विपक्ष को सदन के बाहर छोड़िए, सीधे-सीधे परिसर से ही बेदख़ल कर दिया.

कॉन्फ़िडेंस मोशन और नई प्रथा

2020 से 2024 के दौरान अरविंद केजरीवाल ने अपनी ही सरकार को लेकर विधानसभा में तीन बार विश्वास प्रस्ताव लाए. तीनों प्रस्तावों के चरित्र पर गौर किया जा सकता है. जब अगले के पास 62 विधायक हों. सदन में दमदार मौजूदगी हो. विपक्ष की ताक़त ढेला बराबर भी न हो तो ऐसे में केजरीवाल किस डर से विश्वास प्रस्ताव लेकर आ रहे थे. जब ईडी लगातार केजरीवाल को समन पर समन भेज रही थी, उस दौरान भी उन्होंने विश्वास प्रस्ताव का दांव चला.

फरवरी, 2024 में अरविंद केजरीवाल ने सदन में विश्वास प्रस्ताव मूव कर दिया. सभी हैरान थे कि आख़िर इसकी इन्हें क्या ज़रूरत है. क्योंकि, उसी सत्र में विपक्ष के 8 विधायकों में से 7 को सस्पेंड कर दिया गया था. एक मात्र बचे रामवीर सिंह विधूड़ी ही सदन में मौजूद थे. ऐसे में विपक्ष का इकलौता विधायक भला क्या कर लेता. लेकिन, सियासत में इस तरह की नई लकीर अरविंद केजरीवाल ही लिख रहे थे.

केजरीवाल के विश्वास प्रस्ताव पर तब बीजेपी विधायक रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा था, “मुख्यमंत्री ने कोर्ट में पेश होने से बचने के लिए इस दिन भी सदन की बैठक रखवा दी है. आबकारी घोटाले को लेकर ईडी द्वारा जारी समन की अनदेखी करते हुए केजरीवाल पूछताछ में शामिल नहीं हो रहे हैं. इस मामले में कोर्ट ने उन्हें 17 फरवरी को पेश होने का आदेश दिया था. इससे बचने के लिए उन्होंने विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है.”

पंजाब में भी दिखाया लेजिस्लेटिव मसल पावर

पंजाब विधानसभा के कार्यकाल के दौरान भी AAP की भगवंत मान की सरकार ने सदन के भीतर अपनी तूती जमकर बुलवाई है. जून, 2023 में AAP ने विशेष सत्र बुला लिया. यह सत्र विशेष कांग्रेस नेता और सदन में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा के ख़िलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव (Privilege Motion) को लेकर था. बाजवा पर आरोप था कि उन्होंने सरकार की बदनामी की है. यहाँ भी AAP की सरकार ने संसदीय मर्यादा के उलट व्यवहार किया. जबकि, अभी तक ऐसे मामले सदन के बाहर ही विपक्ष और सत्ता पक्ष मिल-बैठकर निपटा लेते थे.

हालाँकि, इसके उलट जब विपक्षी पार्टी SAD के मुखिया सुखबीर सिंह बादल ने विधानसभा में प्रिविलेज मोशनल लाया तो उस स्वीकार ही नहीं किया गया. दरअसल, AAP ने भारतीय जनता पार्टी पर अपने विधायकों को तोड़ने के लिए “ऑपरेशन लोटस” चलाने का आरोप लगाया और अप्रत्यक्ष रूप से शिरोमणि अकाली दल (SAD) जैसी विपक्षी पार्टियों को भी अस्थिरता फैलाने की रणनीति में शामिल बताया. तब 20 जून, 2022 को सुखबीर बादल ने विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पेश किया.

उन्होंने इसके पीछे यह तर्क दिया कि AAP विधायकों के निराधार आरोपों ने उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई और उनके विशेषाधिकारों का उल्लंघन किया. आम आदमी पार्टी की सरकार ने स्पीकर के माध्यम से इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि वह इस मुद्दे को विधानसभा बहस के बजाय BJP नेताओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर के माध्यम से सुलझा रही है. नतीजतन, बादल के प्रस्ताव को दरकिनार कर दिया गया और विपक्ष को सदन में अपनी प्रतिक्रिया देने का कोई मौका नहीं दिया गया.

विपक्ष की आवाज को दबाने की कला

बात संसद की हो या विधानसभाओं की, सत्ता में बैठी हर पार्टी पर विपक्षी सदस्यों के साथ खेला करने के आरोप लगते रहे हैं. AAP तो इससे बिल्कुल अछूती नहीं रही है. 2015 से लेकर 2025 तक दिल्ली में AAP सरकार पर विपक्ष के साथ विधानसभा की कार्यवाही के पैटर्न और प्रोसिजर के ज़रिए भी विपक्ष की हदों को बांध दिया गया. यदि विपक्ष का विधायक सत्ताधारी दल के किसी विधायक के ख़िलाफ़ प्रिविलेज मोशन लाता, तो उसे इंटरटेन ही नहीं किया जाता.

उदाहरण के तौर पर बीजेपी विधायक विजेंदर गुप्ता ने जून 2016 में विजेंद्र गुप्ता ने एक विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव (Privilege Motion) पेश किया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी के मंत्रियों ने दिल्ली वॉटर टैंकर घोटाले से जुड़े तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया. यह घोटाला जल आपूर्ति ठेकों में कथित अनियमितताओं से जुड़ा था.

गुप्ता का दावा था कि जब उन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव रखा, तो AAP के स्पीकर राम निवास गोयल ने प्रक्रियात्मक कारणों का हवाला देकर इसे अस्वीकार कर दिया, जिससे उनके एक विधायक के रूप में विशेषाधिकार का उल्लंघन हुआ. इस प्रस्ताव को प्रभावी रूप से नजरअंदाज कर दिया गया, क्योंकि AAP ने अपनी बहुमत का उपयोग कर जांच से बचने की कोशिश की. बाद में, जब गुप्ता ने इस मुद्दे पर विरोध जताया, तो उन्हें विधानसभा सत्र के दौरान मार्शल के जरिए बाहर निकाल दिया गया. अब क्या यहाँ लोकतांत्रिक और संसदीय मर्यादा वाली बात थी?

(उपरोक्त आर्टिकल में लिखे गए दृष्टिकोण लेखक के निजी विचार हैं.)

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