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100 साल का हुआ RSS: संघ परिवार को कैसे मिलता है उनका मुखिया? दिलचस्प है कहानी

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फाइल इमेज

RSS 100 Years: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS अब 100 साल का हो गया है. साल 1923 में नागपुर में एक धार्मिक जुलूस को लेकर विवाद शुरू हुआ. नागपुर के तत्कालीन कलेक्टर ने मस्जिद के सामने से हिंदुओं की झांकी निकालने पर रोक लगा दी थी. इसके बाद दंगे भड़के और हिंसा हुई. डॉक्टर जी के नाम से मशहूर 34 साल के केशव बलिराम हेडगेवार, जो उस वक्त कांग्रेस पार्टी के नेता थे. उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस पार्टी हिंदुओं के अधिकार के लिए आवाज उठाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके बाद ही हेडगेवार के मन में हिंदुओं के लिए अलग संगठन तैयार करने का विचार आया.

कैसे हुई संघ की स्थापना?

उस वक्त देश में हिंदू महासभा का गठन हो चुका था. कुछ समय के लिए हेडगेवार हिंदू महासभा से जुड़े भी रहे, लेकिन ये संगठन उन्हें बहुत रास नहीं आया. इसके बाद ही हेडगेवार ने अलग संगठन बनाने का फैसला किया. नागपुर के महल इलाके में हेडगेवार ने पांच लोगों के साथ अपने घर में एक बैठक बुलाई और इसी बैठक के बाद संघ की नींव रखी गई.उस दिन तारीख थी 27 सितंबर और साल 1925 मतलब ठीक 100 साल पहले. उस दिन विजयदशमी थी. बस इसीलिए संघ हर साल हिंदू कैलेंडर के हिसाब से अपना स्थापना दिवस विजयदशमी को मनाता है. जिस वक्त इस संगठन की स्थापना हुई इसे सिर्फ संघ कहा था हेडगेवार ने. इसके बाद 17 अप्रैल 1926 को इस संगठन का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रखा गया.

100 साल का हुआ RSS

साल 1925 में नागपुर के एक कमरे से शुरू हुए संघ के सफर को अब 100 साल पूरे हो गए हैं. देश भर में संघ का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना को 100 साल पूरे होने पर 1 अक्टूबर को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्मारक डाक टिकट और चांदी का सिक्का जारी किया था.

संघ परिवार में अब तक कौन-कौन रहे मुखिया?

स्थापना से लेकर अब तक यानी 1925 से 2025 तक संघ के 6 प्रमुख हो चुके हैं, जिन्हें सरसंघचालक कहा जाता है. संघ की नींव रखने वाले केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 से 21 जून 1940 तक यानी 14 साल 268 दिन संघ की कमान संभाली. इसके बाद 21 जून 1940 को संघ की कमान माधव सदाशिव गोलवलकर ने संभाली. अपने निधन से पहले खुद हेडगेवार ने चिट्ठी में लिखकर गोलवोलकर को ये जिम्मेदारी सौंपी थी. 21 जून 1940 से 5 जून 1973 तक यानी 32 साल 349 दिन माधव सदाशिव गोलवलकर संघ प्रमुख रहे. इसी दौरान गांधी जी के हत्या के बाद संघ का नाम चर्चा में आया.

‘RSS पर प्रतिबंध’

1948 में तत्कालीन नेहरू सरकार ने RSS पर प्रतिबंध भी लगा दिया, लेकिन तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के 8 दिन बाद ही प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर ये बता दिया कि गांधी जी की हत्या में RSS की कोई भूमिका नहीं है. 1948 से 1949 के बीच गुरूजी को दो बार जेल भी भेजा गया, लेकिन 12 जुलाई 1949 को RSS से प्रतिबंध हटा दिया गया और उन्हें रिहा कर दिया गया. गुरुजी के करीब 33 साल के कार्यकाल में विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनसंघ, भारतीय मजदूर संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन और दल अस्तित्व में आए. 5 जून 1973 को गोलवलकर का निधन हुआ.

स्वयंसेवकों को भेजा जेल

गुरुजी के निधन के बाद 5 जून 1973 को मधुकर दत्तात्रेय देवरस संघ प्रमुख बने, जिन्हें बालासाहेब देवरस भी कहा जाता था. 5 जून 1973 से 11 मार्च 1994 तक यानी 20 साल 279 दिन तक मधुकर दत्तात्रेय देवरस ने संघ प्रमुख की जिम्मेदारी संभाली. इनके कार्यकाल के दौरान ही संघ ने इंदिरा सरकार की कई यातनाएं झेली. आपातकाल में स्वयंसेवकों को जेल में डाला गया. साल 1980 में बालासाहेब देवरस ने जनसंघ को भारतीय जनता पार्टी का रूप दिया.

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चौथे संघ प्रमुख प्रोफेसर राजेंद्र सिंह थे, जिन्हें रज्जू भैया भी कहा जाता था. इनका चुनाव दो मायने में अहम था. खराब स्वास्थ्य के कारण बालासाहेब देवरस ने अपने जीवनकाल में ही उत्तराधिकारी की घोषणा कर दी थी और राजेंद्र सिंह को 11 मार्च 1994 को ही संघ प्रमुख बना दिया. दूसरा ये रहा कि पहली बार नागपुर से बाहर का कोई संघ प्रमुख बना. राजेंद्र सिंह 11 मार्च 1994 से 10 मार्च 2000 तक यानी 5 साल 365 दिन संघ प्रमुख बने रहे. राजेंद्र सिंह के कार्यकाल में ही केंद्र में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री बने.

प्रोफेसर राजेंन्द्र सिंह के निधन के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक का उत्तरदायित्व कुपहल्ली सीतारमैया सुदर्शन के कंधों पर आया. के एस सुदर्शन 10 मार्च 2000 से 21 मार्च 2009 तक यानी 9 साल 11 दिन तक सरसंघचालक रहे. इसके बाद मौजूदा सरसंघचालक मोहन भागवत छठवें संघ प्रमुख बने और 21 मार्च 2009 से अब तक संघ प्रमुख की जिम्मेदारी निभा रहे हैं.

संघ परिवार को कैसे मिलता है उनका मुखिया?

संघ परिवार के मुखिया की एक दिलचस्प कहानी है. 100 साल पुराने RSS में केवल मौजूदा सरसंघचालक जानता है कि कौन बनेगा अगला संघ प्रमुख. RSS में सरसंघचालक कौन बनेगा ये तय करने का सर्वाधिकार मौजूदा संघ प्रमुख के पास ही सुरक्षित रखा गया है. कहा जाता है कि मौजूदा संघ प्रमुख अपना पद संभालते ही ये लिखकर सुरक्षित रख देते हैं कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा. मतलब अगला संघ प्रमुख कौन होगा. ये चिट्ठी में लिखकर रखा रहता है. ये व्यवस्था इसलिए है ताकि अगर सरसंघचालक दिवंगत हो जाते हैं तो उनका उत्तराधिकारी पहले से ही तय रहे. अपने जीवन काल में अगर उन्हें लगता है कि उत्तराधिकारी को बदला जाना चाहिए तो वह नाम बदलकर रख सकते हैं. मतलब जैसे समाज में परिवार का मुखिया तय करता है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, ऐसे ही संघ परिवार में भी संघ प्रमुख ही तय करते हैं कि उनके बाद उत्तराधिकारी कौन होगा.

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