RSS Expansion Under Modi Government: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का नाम सुनते ही एक संगठन की छवि उभरती है, जो देश के कोने-कोने में अपनी विचारधारा का परचम लहरा रहा है. 1925 में नागपुर के एक छोटे से कमरे में शुरू हुआ यह सफर आज 100 साल का हो चुका है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पिछले एक दशक में, खासकर मोदी सरकार के दौर में RSS ने अपने पंख इतने फैलाए कि हर दिन औसतन 10 नई शाखाएं खुल रही हैं? जी हां, यह कोई जादू नहीं, बल्कि एक सुनियोजित रणनीति का नतीजा है.
100 साल का शानदार सफर
1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने अपने पांच साथियों के साथ मिलकर RSS की नींव रखी थी. उस वक्त यह सिर्फ एक छोटा सा विचार था, जो देश को एकजुट करने और हिंदुत्व की भावना को बढ़ाने के लिए शुरू हुआ. लेकिन आज, 2025 में RSS की शाखाएं 83,129 तक पहुंच चुकी हैं. यह आंकड़ा चौंकाने वाला है, क्योंकि 2013 में यह संख्या सिर्फ 42,981 थी. यानी, 11 साल में शाखाओं की संख्या लगभग दोगुनी हो गई.
मोदी सरकार और RSS का ‘सुपरचार्ज्ड’ विस्तार
2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में BJP की सरकार बनी, तब RSS के लिए नए दरवाजे खुल गए. अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, आज RSS की 12,091 मंडलियां और 32,147 साप्ताहिक बैठकें देशभर में हो रही हैं. कुल मिलाकर, संघ अब 51,710 जगहों पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुका है. खास बात यह है कि केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी अब हजारों शाखाएं खुल चुकी हैं. उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 8,000 शाखाएं हैं, जबकि केरल में 5,142 और महाराष्ट्र में 4,000 शाखाएं सक्रिय हैं. मध्य प्रदेश और गुजरात भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं, जहां क्रमशः 1,453 और 1,000 शाखाएं चल रही हैं.
क्या है RSS के विस्तार का राज?
तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि RSS का विस्तार इतनी तेजी से हुआ? चलिए, कुछ कारणों पर नजर डालते हैं …
नया नैरेटिव, नई छवि: पहले RSS को लेकर कई गलत धारणाएं थीं, लेकिन 2013-14 के बाद संघ ने खुलकर अपनी बात रखनी शुरू की. बड़े पदाधिकारी मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचे. नतीजा? लोग RSS को समझने लगे और उससे जुड़ने लगे.
सोशल मीडिया का जादू: RSS ने डिजिटल दुनिया में भी अपनी धाक जमाई. 2013 में जहां सिर्फ 1,500 लोग ऑनलाइन RSS से जुड़े थे, वहीं 2025 में यह संख्या हजारों में पहुंच चुकी है. फेसबुक, X, और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स ने RSS को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई.
सुरक्षा का भरोसा: केरल जैसे राज्यों में RSS कार्यकर्ताओं को पहले हिंसा का सामना करना पड़ता था. लेकिन मोदी सरकार के बाद बेहतर सुरक्षा इंतजामों ने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया, जिससे विस्तार को रफ्तार मिली.
सबको साथ लेकर चलने की रणनीति: RSS ने दलित और आदिवासी समुदायों को जोड़ने के लिए खास अभियान चलाए. झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में हाई-लेवल मीटिंग्स और कार्यक्रमों ने संघ की पहुंच को और गहरा किया.
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पहले भी थी तेजी, लेकिन अब रफ्तार बुलेट ट्रेन जैसी!
1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी, तब RSS की शाखाएं 30,000 थीं. 2004 तक यह संख्या 39,000 तक पहुंची. लेकिन 2004 से 2013 तक, यानी यूपीए सरकार के दौर में विस्तार की रफ्तार धीमी रही और सिर्फ 3,000 नई शाखाएं ही जुड़ीं. इसके उलट, 2014 से 2025 तक RSS ने रॉकेट की स्पीड पकड़ी और 40,000 से ज्यादा नई शाखाएं खोलीं.
JNU में भी RSS का परचम!
हाल ही में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में RSS की शाखा शुरू हुई है. JNU, हमेशा से लेफ्ट विचारधारा का गढ़ माना जाता था, वहां RSS की मौजूदगी इस बात का सबूत है कि संघ अब हर तबके और हर जगह तक पहुंच रहा है. RSS की शाखाएं सिर्फ व्यायाम या सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सीमित नहीं हैं. ये शाखाएं लोगों को संघ की विचारधारा से जोड़ने का एक मजबूत जरिया हैं. चाहे गांव का मैदान हो या शहर का पार्क, RSS की शाखाएं हर जगह लोगों को एकजुट कर रही हैं.
RSS के इस विस्तार पर कुछ लोग इसे देश में हिंदुत्व की बढ़ती ताकत मानते हैं, तो कुछ इसे एक संगठन की रणनीतिक जीत के तौर पर देखते हैं. लेकिन एक बात तो साफ है कि RSS अब सिर्फ एक संगठन नहीं, बल्कि एक ऐसी ताकत बन चुका है, जो देश की सांस्कृतिक और सामाजिक तस्वीर को नए रंगों से सजा रहा है.
