Election Commission: चुनाव आयोग ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इसे अगले महीने से पूरे देश में लागू करने की योजना बनाई है. लगभग 30 साल बाद देशभर में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण होगा. जो अगस्त 2025 से शुरू हो सकता है. इसका उद्देश्य मतदाता सूची से गैर-पात्र व्यक्तियों, जैसे अवैध विदेशी प्रवासियों, को हटाना और सभी पात्र मतदाताओं को शामिल करना है. बिहार में शुरू हुए इस अभियान को अब राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की तैयारी है.
बिहार में SIR का अनुभव
बिहार में SIR अभियान 24 जून 2025 से शुरू हुआ, जिसमें 7.89 करोड़ मतदाताओं की जानकारी सत्यापित की जा रही है. इस दौरान 35.6 लाख नामों को हटाने की प्रक्रिया चल रही है. इनमें 12.5 लाख मृत मतदाता, 17.5 लाख स्थानांतरित मतदाता और 5.5 लाख डुप्लिकेट पंजीकरण वाले शामिल हैं. बिहार में 78,000 बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) और 20,000 अतिरिक्त कर्मचारी इस काम में लगे हैं. जबकि एक लाख से अधिक स्वयंसेवक कमजोर वर्गों, जैसे बुजुर्गों, बीमारों, और गरीबों की सहायता कर रहे हैं.
देशभर में SIR की तैयारी
चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों (CEO) को SIR के लिए तैयार रहने को कहा गया है. कई CEO ने अपनी वेबसाइट पर पिछली बार हुए रिवीजन की मतदाता सूची डालना भी शुरू कर दिया है. इससे मतदाता अपना नाम आसानी से देख सकेंगे.
जनवरी 2026 को क्वालिफाइंग तारीख मानते हुए, यह अभियान 18 वर्ष पूरे करने वाले सभी पात्र मतदाताओं को शामिल करने पर केंद्रित होगा. राज्यों के CEO ने वेबसाइट पर मतदाता सूची डालनी शुरू कर दी है. दिल्ली के CEO की वेबसाइट पर 2008 की मतदाता सूची है. उत्तराखंड ने 2006 की और हरियाणा CEO ने 2002 की मतदाता सूची डाली है. पंजाब CEO ने 2006 की फाइनल मतदाता सूची डाली है.
बिहार में 2003 की मतदाता सूची को आधार मानकर सत्यापन किया गया, और अन्य राज्यों में भी उनके अंतिम गहन पुनरीक्षण वर्ष को आधार बनाया जाएगा. ड्राफ्ट मतदाता सूची 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित होगी. दावे-आपत्तियां 1 सितंबर तक दर्ज की जा सकेंगी. अंतिम सूची 30 सितंबर 2025 को जारी होगी.
चुनौतियां और जनता से अपील
SIR को लागू करने में कई चुनौतियां हैं, जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी, दस्तावेजों की अनुपलब्धता, और प्रवासी मतदाताओं का सत्यापन. सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई कि दस्तावेजों की कमी के कारण गरीब और हाशिए पर मौजूद समुदाय प्रभावित हो सकते हैं. चुनाव आयोग ने इसके लिए नियमों में ढील दी है, जिसमें मतदाता बिना दस्तावेजों के भी प्रपत्र जमा कर सकते हैं, और स्थानीय जांच के आधार पर सत्यापन होगा. आयोग ने जनता से अपील की है कि वे इस प्रक्रिया में सहयोग करें ताकि 2025 और 2029 के चुनावों के लिए एक विश्वसनीय मतदाता सूची तैयार हो सके.
विपक्ष का ‘वोटबंदी’ का आरोप
विपक्षी दलों, खासकर INDIA ब्लॉक (कांग्रेस, RJD, TMC, और अन्य) ने SIR को ‘वोटबंदी’ करार देते हुए इसे गरीबों, दलितों, पिछड़ों, और अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश बताया. RJD नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया कि यह अभियान सत्तारूढ़ BJP की हार के डर से शुरू किया गया है. TMC सांसद डेरेक ओ’ब्रायन और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इसे ‘NRC का बैकडोर’ बताया. विपक्ष का कहना है कि बिहार में 37% प्रवासी मतदाता, जो केवल त्योहारों पर घर लौटते हैं, इस प्रक्रिया से बाहर हो सकते हैं. 11 विपक्षी दलों ने 3 जुलाई को चुनाव आयोग से मुलाकात कर अपनी आपत्तियां दर्ज कीं थी.
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सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में SIR की समयबद्धता और प्रक्रिया पर सवाल उठाए. 10 जुलाई 2025 को सुनवाई के दौरान, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाला बागची की बेंच ने कहा कि नागरिकता सत्यापन गृह मंत्रालय का क्षेत्र है और चुनाव आयोग को इस पर ध्यान देने की बजाय मतदाता सूची की शुद्धता पर फोकस करना चाहिए. कोर्ट ने आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को सत्यापन के लिए स्वीकार करने का सुझाव दिया, जिसे आयोग ने मान लिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि SIR का उद्देश्य ठीक है, लेकिन इसे चुनाव से पहले करने का समय संदिग्ध है.
