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Garhwali Bhasha Diwas: जब मुलायम की पुलिस की गोलियों की तडतड़ाहट से थर्रा उठी थी पहाड़ों की रानी ‘मसूरी’, 6 लोगों की गई थी जान

Garhwali Bhasha Diwas

गढ़वाली भाषा दिवस

Garhwali Bhasha Diwas: तारीख थी 2 सितम्बर 1994, जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहे आंदोलनकारियों पर पुलिस ने अंधाधुन फायरिंग कर दी. पहाड़ों की रानी मसूरी की फिजाओं में उस दिन मौत की चीखें गूंजी, जब प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस की फायरिंग ने 6 लोगों की जान ले ली थी. मसूरी गोलीकांड को आज 31 साल पूरे हो चुके हैं. उत्तराखंड राज्य की स्थापना के भी 25 वर्ष होने को है. मसूरी गोली कांड के याद में ही उत्तराखंड वासी प्रत्येक वर्ष 2 सितम्बर को गढ़वाली भाषा दिवस के रूप में भी मनाते हैं, जिसके माध्यम से शहीद हुए आंदोलनकारियों को याद करते हैं.

गढ़वाली भाषा दिवस

मसूरी गोलीकांड की बरसी को याद करने और गढ़वाली भाषा को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से लोग इसे मनाते हैं. चूंकि गढ़वाली कोई भाषा नहीं है. गढ़वाली एक बोली है जिसे उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्रों में बोली जाती है. लेकिन वहां के लोगों को इसपर आपत्ति है. क्योंकि जब किसी भाषा में साहित्यों की रचना हो जाती है वो बोली नहीं भाषा कहलाती है. वहीं गढ़वाली में साहित्य की लगभग सभी विधाओं में पुस्तकें छप चुकी हैं. गढ़वाली में कई फिल्में और एल्बम भी बन चुके हैं.

गढ़वाली के कई रूप

वैसे तो पूरे गढ़वाल में गढ़वाली बोली जाती है. लेकिन फिर भी अलग-अलग क्षेत्रों में बोली जाने वाली गढ़वाली में फर्क होता है, इसलिए इसके कई रूपों में बांटा गया है.

श्रीनगरी बोली
नागपुरिया बोली
दसौल्यीया बोली
बधाणी बोली
राठी
जाड़
मक्क
कुम्मैया
सलाणी
चौंदकोटि
टिहरियलवी

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जिस प्रकार उत्तराखंड की वादियां खूबसूरत हैं, उसी तरह वहां की भाषा में भी मिठास है. उत्तराखंड ने गढ़वाली के बाद मुख्य रूप से कुमाऊनी भाषा बोली जाती है. लेकिन पलायन, बेरोज़गारी, प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोग दूसरे राज्य जा रहे हैं. इसके कारण वर्तमान और आने वाली पीढ़ियां अपनी संस्कृति और भाषा भूल रही हैं. आज भी लोग गढ़वाली भाषा दिवस के माध्यम से अपनी भाषा को बचाने की पहल कर रहे हैं.

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