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Stock Market Fall: शेयर बाज़ार में ब्लड-बाथ! गोते लगाते मार्केट के पीछे क्या छिपा है संकेत?

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स्टॉक मार्केट में भारी गिरावट

Stock Market Fall: देश के शेयर बाजारों में शुक्रवार को भयंकर गिरावट देखी गई. दोपहर बाद की गिरावट ने तो निवेशकों को झकझोर कर रख दिया. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का सेंसेक्स करीब 800 अंक गिरकर 80,200 के नीचे बंद हुआ, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी भी 24,700 के स्तर से नीचे फिसल गया. इस गिरावट के चलते महज़ एक दिन में ही कुल निवेशकों की 4.2 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति घट गई. ग़ौरतलब है कि यह गिरावट सिर्फ घरेलू कारणों की वजह से नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य, अमेरिकी मौद्रिक नीति और निवेशकों की बदली हुई रणनीति का नतीजा है. लेकिन, यह गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने कुछ गंभीर सवाल भी छोड़ गई है, जिनका जवाब अब नीति-निर्माताओं को देना होगा.

बाज़ार पर अमेरिकी नीतियों का असर

बाज़ार में गिरावट की सबसे बड़ी वजह हाल के दिनों में बदली अमेरिकी नीतियां हैं. शुक्रवार को भी गिरावट का कारण अमेरिका ही रहा. अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने हाल ही में संकेत दिया है कि ब्याज दरों में कटौती की संभावना फिलहाल टल सकती है. इस फैसले के चलते इसका असर अमेरिकी शेयर बाज़ारों पर पड़ा, जहां डॉव जोंस, नैस्डैक और एसएंडपी 500 में गिरावट देखी गई. इससे वैश्विक निवेशकों का रुख जोखिम भरे बाजारों से हटने लगा और उन्होंने उभरते बाजारों, जिनमें भारत भी शामिल है, वहां से पैसा निकालना शुरू कर दिया.

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की इस भारी बिकवाली का असर भारतीय बाज़ारों पर भी पड़ा. ज्ञात हो कि सितंबर के तीसरे हफ्ते में ही एफपीआई ने करीब 12,000 करोड़ रुपये की निकासी कर ली. डॉलर इंडेक्स के मजबूत होने और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में उछाल ने इस रुझान को और बढ़ा दिया.

घरेलू अर्थव्यवस्था की तीन कमजोर कड़ियां

गिरावट की एक बड़ी वजह घरेलू आर्थिक इंडिकेटर्स में आई कमजोरी भी है. विकास की दर, रुपये में गिरावट, घरेलू मार्केट में भी बिकवाली का दबाव जैसे कारणों ने बाज़ार को हर दफ़ा घुटने टेकने पर मजबूर किया है. हाल ही में जारी औद्योगिक उत्पादन (IIP) और निर्यात के आंकड़े उम्मीद से कमजोर रहे हैं. औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि दर 4.8% तक सीमित रही, जबकि निर्यात में 7% की गिरावट दर्ज की गई. इससे निवेशकों में यह आशंका गहराई कि आर्थिक विकास की गति फिलहाल धीमी पड़ रही है.

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वहीं, डॉलर के मुकाबले रुपया 83.45 के स्तर तक कमजोर हुआ, जिससे विदेशी निवेशकों को रुपये में कम रिटर्न मिलने लगा. इसके अलावा घरेलू निवेशकों ने भी ऊंचे स्तरों पर मुनाफावसूली की, जिससे बिकवाली का दबाव और बढ़ गया.

वैश्विक अनिश्चितता और जियो-पॉलिटकल दबाव

बाज़ार के लिए एक और चुनौती दुनिया का बदला वर्ल्ड ऑडी है. जियो-पॉलिटिक्स का ऊंट कौन सा करवट लेगा, इसका अंदाज़ा लगाना कठिन हो गया है. दुनिया के तमाम देशों के बीच वैश्विक संबंध शंकाओं से घिरे हुए हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन-ताइवान विवाद के कारण निवेशकों की जोखिम लेने की क्षमता कम हो गई है. इसके साथ ही कच्चे तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी और पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव ने निवेशकों को अलर्ट कर दिया है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपूर्ति श्रृंखला में खलल, वैश्विक महंगाई में बढ़ोतरी और डॉलर की मजबूती ने भारतीय बाजारों को और ज़्यादा झुई-मुई बना दिया है.

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भारत को अब क्या करना चाहिए?

जो ग़लतियों को भांप ले वही बुद्धिमान और गलतियों पर जो काम कर ले वही वीर-बलवान. भारत के पास यह गिरावट एक चेतावनी के तौर पर आई है. कई विशेषज्ञों के लेख और उनके व्याख्यानों में बताया गया है कि अगर सही रणनीति अपनाई जाए, तो इसे अवसर में बदला जा सकता है. आर्थिक जानकारों के मुताबिक़ सरकार और रिज़र्व बैंक को अगले 6-12 महीनों का आर्थिक रोडमैप स्पष्ट रूप से सामने लाना होगा. ब्याज दर नीति, राजकोषीय घाटा और पूंजीगत व्यय जैसे मोर्चों पर ट्रांसपेरेंसी से निवेशकों को भरोसा मिलेगा. वहीं, बुनियादी ढांचे में निवेश, एमएसएमई क्षेत्र को प्रोत्साहन और ग्रामीण खपत में सुधार जैसे कदम अर्थव्यवस्था को टिकाऊ समर्थन देंगे.

हालांकि, केंद्र की सरकार इस दिशा में युद्ध स्तर पर काम भी कर रही है. साथ ही साथ जीएसटी के ज़रिए टैक्स रिफॉर्म की दिशा में भी काम हुआ है, शायद इसका नतीजा आने वाले कुछ दिनों में दिखाई भी दे. भारत रणनीतिक क्षेत्रों में निवेश, जैसे- सेमीकंडक्टर, रक्षा उत्पादन और हरित ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दे रहा है. बशर्ते इसमें और तेज़ी लाई जाए.

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