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सियासी घर वापसी चाहते हैं स्वामी प्रसाद मौर्य… क्या अपमान के बाद भी गले लगाएंगी मायावती? 2027 के ‘रण’ से पहले कयासों का दौर शुरू

Swami Prasad Maurya,Mayawati

बार-बार मायावती को ऑफर दे रहे हैं स्वामी प्रसाद मौर्य!

UP Politics: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2027 की सरगर्मी शुरू हो चुकी है. इस बीच एक नाम फिर से सुर्खियों में है. वो हैं स्वामी प्रसाद मौर्य. कभी बहुजन समाज पार्टी के दिग्गज नेता रहे मौर्य अब अपनी पुरानी पार्टी में वापसी की राह तलाशते दिख रहे हैं. लेकिन क्या बसपा सुप्रीमो मायावती उन्हें फिर से गले लगाएंगी?

‘यू-टर्न’ लेने की तैयारी में स्वामी प्रसाद मौर्य!

स्वामी प्रसाद मौर्य को कभी यूपी के ओबीसी (मौर्य-कुशवाहा) वोट बैंक का बड़ा चेहरा माना जाता था. लेकिन इन दिनों मौर्य अपनी सियासी जमीन बचाने की जुगत में हैं. बसपा से शुरू हुआ उनका सफर बीजेपी, फिर समाजवादी पार्टी तक गया और अब वे अपनी बनाई राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के सहारे मैदान में हैं. लेकिन हाल के बयानों से लगता है कि मौर्य का दिल फिर से बसपा की ओर खिंच रहा है. हाल ही में गाजीपुर की एक जनसभा में उन्होंने बीजेपी और सपा को जमकर कोसा, दोनों को ‘एक ही थाली के चट्टे-बट्टे’ बताया. लेकिन बसपा और मायावती के बारे में उनकी जुबान नरम रही.

इतना ही नहीं, उन्होंने मायावती को यूपी का अब तक का सबसे बेहतर मुख्यमंत्री तक बता डाला. स्वामी ने कहा, “मायावती के राज में कानून का डंका बजता था, जो पूरे देश में गूंजा.” अब इस तारीफ को सुनकर कोई भी समझ सकता है कि मौर्य बसपा की चौखट पर दस्तक देने को तैयार हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या मायावती पुरानी कड़वाहट भुलाकर उन्हें वापस लेंगी?

स्वामी प्रसाद मौर्य का सियासी सफर

स्वामी प्रसाद मौर्य का जन्म 2 जनवरी 1954 को प्रतापगढ़ में हुआ था. 80 के दशक में शुरू हुआ उनका सियासी करियर 90 के दशक में बसपा के साथ चमका. 1996 में रायबरेली की डलमऊ सीट से पहली बार विधायक बने. मायावती के करीबी रहे मौर्य 2001 से 2008 तक बसपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे. 2007 में मायावती सरकार में श्रम व रोजगार मंत्री बने. 2012 में बसपा सरकार के जाने के बाद उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया. लेकिन 2016 में मौर्य ने बसपा से बगावत कर दी.

मायावती पर टिकट बेचने और दलित-पिछड़ा विरोधी नीतियों का आरोप लगाया. इसके बाद वे बीजेपी में शामिल हुए. 2017 में योगी सरकार में मंत्री बने, लेकिन वो पुराना रसूख नहीं रहा. 2022 के चुनाव से पहले सपा में चले गए, पर फाजिलनगर सीट से हार गए. सपा ने उन्हें विधान परिषद भेजा, लेकिन ‘रामचरितमानस’ और ‘जातिगत जनगणना’ पर उनके बयानों ने विवाद खड़ा किया. आखिरकार, 2024 में उन्होंने अपनी पार्टी आरएसएसपी बनाई और सपा से नाता तोड़ लिया.

अब 2027 के चुनाव की तैयारी में मौर्य फिर से बसपा की ओर देख रहे हैं. उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य भी बसपा में शामिल होने की कोशिश में हैं. हाल ही में उनकी मायावती से मुलाकात की खबरें भी आईं, लेकिन अभी कोई ठोस संकेत नहीं मिला है.

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मायावती का रुख?

मौर्य भले ही बसपा में वापसी के लिए बेताब हों, लेकिन मायावती का रुख अभी साफ नहीं है. बसपा सूत्रों की मानें तो मौर्य के पुराने आरोपों और हाल के विवादित बयानों से मायावती नाराज हैं. मौर्य ने 2016 में पार्टी छोड़ते वक्त मायावती पर गंभीर इल्जाम लगाए थे, जिसे भूलना आसान नहीं. फिर भी, मौर्य की तारीफ और नरम रुख से लगता है कि वे पुरानी कड़वाहट को भुलाने की कोशिश में हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने हाल ही में कहा, “अगर मायावती बाबासाहेब आंबेडकर और कांशीराम जी के मिशन पर लौटती हैं, तो मैं उनके साथ हाथ मिलाने को तैयार हूं.” लेकिन मायावती क्या इस प्रस्ताव को स्वीकार करेंगी? यह यूपी की सियासत का सबसे बड़ा सस्पेंस है.

2027 का सियासी समीकरण

यूपी में बीजेपी लगातार दो बार से सत्ता में है. वहीं, सपा, बसपा जैसे विपक्षी दल उसे हटाने की जुगत में हैं. बसपा का ओबीसी और दलित वोट बैंक पहले जैसा मजबूत नहीं रहा, लेकिन मौर्य जैसे नेता की वापसी पार्टी को फिर से ताकत दे सकती है. मौर्य का मौर्य-कुशवाहा समाज में प्रभाव अब भी बरकरार है और अगर मायावती उन्हें मौका देती हैं, तो यह बसपा के लिए फायदेमंद हो सकता है. दूसरी ओर, मायावती की रणनीति हमेशा से अप्रत्याशित रही है. वे शायद मौर्य को वापस लें, लेकिन अपनी शर्तों पर. खैर, 2027 का रण अभी दूर है, लेकिन सियासी शतरंज की बिसात बिछ चुकी है.

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