USAID Controversy: अमेरिकी ‘डीप स्टेट’ और दूसरे देशों में इनकी फ़ंडिंग के क़िस्से कोई ढकी-छिपी बात नहीं है. इस बार अंतर ये है कि इस बात का खुलासा ख़ुद अमेरिका का एक राष्ट्रपति कर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने दूसरे देशों में फ़ंडिंग करने वाली एजेंसी ‘द यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट’ (USAID) को विशुद्ध रूप से दूसरे देशों में कांड कराने वाला एक टूल का तमगा दिया है.
इस अमेरिकी एजेंसी का भारत में संदिग्ध रोल होने का ट्रंप ने दावा किया है. अमेरिकी राष्ट्रपति के इस दावे से भारतीय सियासत में बवाल मचा हुआ है. बीजेपी ने कांग्रेस पर इस एजेंसी से पैसे लेकर चुनाव को प्रभावित करवाने के आरोप जड़ दिए हैं. वहीं, कांग्रेस ने भी सत्ताधारी दल को इतिहास का गुल्लक फोड़ देने की धमकी दे डाली है.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने USAID की भारत में फ़ंडिंग को लेकर यह दावा दूसरी बार की है. गुरुवार को उन्होंने पहली बार अमेरिका शहर मयामी में इसका जिक्र किया था. हालाँकि, 24 घंटे के भीतर मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि ट्रंप नो जो दावा किया वह भारत नहीं बल्कि बांग्लादेश के संदर्भ था. उन्होंने भूलवश भारत का नाम ले लिया. लेकिन, ठीक अगले ही दिन डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पुरानी बात को दोहराते हुए कहा, “अमेरिका भारत में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर (174 करोड़ रुपये) क्यों दे रहा है? हमें अपने देश की फिक्र करनी चाहिए. क्या आपको लगता है कि यह पैसा सही जगह पर खर्च होता है? नहीं, यह एक ‘किकबैक स्कीम’ है. यह पैसा उन लोगों के पास वापस चला जाता है, जिन्होंने इसे भेजा था.”
भारत के अलावा बांग्लादेश और नेपाल में फंडिंग पर सवाल
ट्रंप ने सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश और नेपाल को भी फंडिंग देने पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, “$29 मिलियन बांग्लादेश के ‘पोलिटकल लैंडस्केप’ को मजबूत करने के लिए दिया गया. लेकिन कोई नहीं जानता कि ’पोलिटकल लैंडस्केप’ का क्या मतलब है. $19 मिलियन नेपाल की जैव विविधता के लिए और $47 मिलियन एशिया में शिक्षा सुधार के लिए दिया गया. हमें इसकी परवाह क्यों करनी चाहिए?”
ट्रंप के इस बयान को जियोपॉलिटिक्स के जानकार गंभीरता से ले रहे हैं. विदेशी मामलों पर पैनी नज़र रखने वाले आईएल ठाकुर कहते हैं, “इस मामले को सिर्फ़ भारत की अंदरूनी राजनीति से देखना उचित नहीं होगा. ट्रंप ने जब बांग्लादेश और नेपाल का नाम लिया, तो इससे भारत सरकार को ज़्यादा सतर्क हो जाना चाहिए. बांग्लादेश में तख्तापलट को हम पहले से ही अमेरिकी साजिश मानकर चल रहे थे. लेकिन, अब छिपाने को कुछ नहीं बचा. सब जानते हैं कि 29 बिलयन डॉलर बांग्लादेश में जिस ‘पोलिटिकल लैंडस्केप’ के लिए दिया गया, उसने क्या रूप धारण किया. शेख़ हसीना देश से बाहर हैं और भारत से रिश्ते और ज़्यादा ख़राब.”
बीजेपी का पलटवार: ‘डीप-स्टेट एजेंट्स को बनाए रखने के लिए फंडिंग’
डोनाल्ड ट्रंप के इस दावे के बाद बीजेपी ने इस मुद्दे को और हवा दे दी. बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह पैसा भारत में कुछ प्रभावशाली लोगों को बनाए रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो इस तरह की फंडिंग पर पर्दा डालते हैं. मालवीय ने X पर लिखा, “डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में 21 मिलियन डॉलर भेजे जाने का खुलासा किया है और यह सिर्फ बांग्लादेश तक सीमित नहीं है. यह पैसा उन डीप-स्टेट एजेंट्स को बनाए रखने में खर्च होता है, जो ऐसे खुलासों को दबाने और झूठ फैलाने का काम करते हैं.”
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कांग्रेस का पलटवार: “बीजेपी खुद विदेशी फंडिंग से चली है”
इस आरोप के जवाब में कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने बीजेपी पर पलटवार किया. उन्होंने कहा, “बीजेपी सिलेक्टिवली कांग्रेस सरकार पर विदेशी फंडिंग लेने का आरोप लगा रही है. जब स्मृति ईरानी USAID की ब्रांड एंबेसडर थीं और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रही थीं, तब क्या USAID उनके पीछे था? अन्ना हजारे का आंदोलन भी अमेरिका में फंडिंग के जरिए चलता था. वे चुनाव के बाद अमेरिका में रोड शो करने गए थे. फोर्ड फाउंडेशन से उन्हें पैसे मिलते थे और आरएसएस भी इसमें शामिल था.”
अमेरिकी फंडिंग का भारतीय राजनीति पर प्रभाव
भारत में विदेशी फंडिंग का मुद्दा लंबे समय से विवादों में रहा है. कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भारतीय गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और दूसरी राजनीतिक गतिविधियों के लिए डोनेशन देती रही हैं. हालांकि, इस फंडिंग का इस्तेमाल पारदर्शिता और सही उद्देश्य के लिए हुआ है या नहीं, इस पर हमेशा बहस होती रही है.
बहरहाल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो दावा किया है, उसने भारतीय राजनीति में गर्मी ज़रूर बढ़ा दी है. बीजेपी इसे विदेशी हस्तक्षेप से जोड़ रही है, जबकि कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी खुद विदेशी ताकतों के समर्थन से सत्ता में आई थी. वर्तमान राजनीतिक हालात को देखते हुए लगता है कि यह मुद्दा और ज़्यादा विवादित होने वाला है.
