Aam Aadmi Party: संसद के मानसून सत्र में सरकार के खिलाफ रणनीति बनाने के लिए इंडिया ब्लॉक की महत्वपूर्ण बैठक शनिवार को बुलाई गई है. पहले ये बैठक कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर होने वाली थी, जिसे अब ऑनलाइन कर दिया गया है. इसका मकसद अधिक से अधिक संख्या में भागीदारी सुनिश्चित करना था, लेकिन इसके पहले ही इंडिया ब्लॉक को आम आदमी पार्टी ने झटका दे दिया. पहले ही इस बैठक में आम आदमी पार्टी के शामिल होने पर सस्पेंस बना हुआ था. वहीं अब यह साफ हो गया है कि आम आदमी पार्टी इस बैठक का हिस्सा नहीं होगी. पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने साफ तौर पर कह दिया कि इंडिया ब्लॉक की बैठक में AAP शामिल नहीं होगी. उन्होंने कहा कि पार्टी ने इसको लेकर पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी.
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने बिहार चुनाव में उतरने के ऐलान के वक्त भी साफ किया था इंडिया गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव तक के लिए था. वहीं उसी लाइन को दोहराते हुए अब संजय सिंह ने कहा कि हरियाणा, दिल्ली के बाद अब बिहार में पार्टी अकेले चुनाव लड़ने जा रही है और दो राज्यों में हुए उपचुनाव में भी अकेले ही लड़ी थी.
कांग्रेस से AAP ने बनाई दूरी
इशारा साफ था कि पार्टी अब कांग्रेस की मौजूदगी वाले गठबंधन से दूर ही रहेगी. हालांकि, पार्टी अन्य दलों के साथ सहयोग बरकरार रखना चाहती है. संजय सिंह ने कहा कि संसदीय मुद्दों पर आम आदमी पार्टी ममता बनर्जी की टीएमसी, स्टालिन की डीएमके जैसी विपक्षी पार्टियों के साथ खड़े होते हैं और जरूरत पड़ने पर ये दल भी आम आदमी पार्टी का समर्थन करते हैं.
दरअसल, अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने इंडिया ब्लॉक से अलग होने का फैसला यू हीं नहीं लिया. इसके पीछे नफे-नुकसान का काफी हिसाब-किताब नजर आता है, जो हालिया वर्षों में देखने को मिला है.
कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने से AAP को नुकसान!
तमाम राजनीतिक पंडितों, चुनावी नतीजे और खुद आम आदमी पार्टी को भी कहीं न कहीं ये लगता है कि कांग्रेस और उसका वोट बैंक तकरीबन एक ही है. ऐसे में दिल्ली-पंजाब और गुजरात की तर्ज पर पार्टी अकेले लड़कर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाकर अपनी सियासी जमीन का विस्तार करना चाहती है. दिल्ली में हुए 2015 और 2020 के चुनावों ने साबित कर दिया था कि कांग्रेस का वोट बैंक पूरी तरह आम आदमी पार्टी की तरफ शिफ्ट हो गया. वहीं पंजाब में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला और नतीजन आम आदमी पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आ गई. ऐसे में अरविंद केजरीवाल अब किसी चुनाव में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर खुद का ‘नुकसान’ नहीं करना चाहते हैं.
AAP की गुजरात पर नजर
इस कड़ी में पार्टी की सबसे बड़ी उम्मीद गुजरात से है, जहां 2022 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने न केवल 5 सीटों पर जीत हासिल की, बल्कि 12.92% वोट हासिल कर तमाम राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया. 2022 के विधानसभा चुनाव में माना जा रहा था कि मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होगा. इसके पीछे वजह थी कि 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को बेहद कड़ी टक्कर दी थी. लेकिन, 2022 चुनाव में आम आदमी पार्टी की दमदार एंट्री ने कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर दिया.
हालिया उपचुनावों में भी आम आदमी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया. इसके बाद पार्टी को ये लगने लगा है कि गुजरात आम आदमी पार्टी के लिए बेहद मुफीद राज्य साबित हो सकता है. ऐसे में अगर पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरती है तो उसके लिए यह ‘फायदे का सौदा’ नहीं होगा.
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हरियाणा की हार में भी ‘जीत’
ऐसा नहीं है कि अकेले चुनाव लड़कर आम आदमी पार्टी को केवल फायदा ही पहुंचा है. हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, उसे जीत नहीं मिली लेकिन कई सीटों पर आदमी पार्टी के कारण कांग्रेस को नुकसान हुआ. आम आदमी पार्टी विभिन्न राज्यों में अकेले ही लड़ना चाहती है और ऐसे में अगर हरियाणा में उसके वजह से कांग्रेस को नुकसान हुआ तो, पार्टी इसे अपने लिए किसी ‘शुभ संकेत’ से कम नहीं मानती है.
फिलहाल, AAP ने बिहार चुनाव में भी अकेले उतरने का फैसला किया है. अब देखना होगा कि पार्टी यहां पर कोई चमत्कार कर पाने में कामयाब होती है या फिर उसके हाथ खाली रह जाएंगे.
