Vistaar NEWS

दुनिया में पहली ‘मॉक ड्रिल’ से लेकर भारत की ताजा तैयारियों तक…जानें क्यों है यह सुरक्षा की रीढ़

Mock Drill

‘इफ डे’ कनाडा

Mock Drill: आतंक के पनाहगार पाकिस्तान को जवाब देने के लिए भारत पूरी तरह से तैयार है. सेनाएं अलर्ट मोड पर हैं. जमीन से लेकर आकाश और पानी तक चारों ओर भारत ने अपना सुरक्षा घेरा मजबूत कर लिया है. भारत ने पाकिस्तान पर कई प्रतिबंध भी लगा दिए हैं. भारत की तैयारी देख पाकिस्तान में डर बढ़ गया है. इस बीच भारत ने एक कदम आगे बढ़ते हुए युद्ध की तैयारी भी तेज कर दी है. कल देशभर में मॉक ड्रिल होगी, जिसमें किसी भी आपात स्थिति में अपने नागरिकों को सुरक्षित बचाने की ट्रेंनिंग दी जाएगी. हालांकि, आपके मन में एक सवाल पनप रहा होगा कि आखिर ये मॉक ड्रिल दुनिया में पहली बार कहां हुआ था? आइए इतिहास को टटोलते हुए ताजा स्थिति तक की पूरी बात विस्तार से जानते हैं.

उपलब्ध जानकारी के अनुसार, मॉक ड्रिल का सबसे पहला उदाहरण 19 फरवरी 1942 को कनाडा के मैनिटोब शहर में देखा गया. इसे ‘इफ डे’ के नाम से जाना गया. दरअसल, उस वक्त द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक नकली नाजी हमले का अभ्यास किया गया था. इस ड्रिल में शहर में सायरन बजाए गए, स्वयंसेवी सैनिकों को तैनात किया गया और लोगों को अस्थायी हिरासत में लेकर युद्ध जैसी स्थिति दिखाने की कोशिश की गई. इसका उद्देश्य नागरिकों को युद्ध के समय सुरक्षित रहने और आपात स्थिति से निपटने की ट्रेनिंग देना था.

इसके बाद, 1980 में ब्रिटेन ने ‘स्क्वायर लेग’ नाम से एक व्यापक मॉक ड्रिल आयोजित की, जिसमें 150 परमाणु बम हमले की कल्पना की गई. इस दौरान ब्लैकआउट, एयर-रेड सायरन और नागरिक सुरक्षा की रणनीतियों का अभ्यास किया गया.

युद्ध से पहले मॉक ड्रिल क्यों जरूरी?

मॉक ड्रिल युद्ध या आपातकालीन स्थिति से पहले नागरिकों, प्रशासन और सुरक्षा बलों को तैयार करने का एक महत्वपूर्ण साधन है. रक्षा विशेषज्ञ और रिटायर्ड मेजर जनरल केके सिन्हा के अनुसार, मॉक ड्रिल आमतौर पर ‘ऑल-आउट वॉर’ या लंबे समय तक चलने वाले युद्ध की संभावना को ध्यान में रखकर की जाती है. इसके दौरान कुछ विशेष बातों पर ध्यान रखा जाता है.

नागरिक सुरक्षा सुनिश्चित करना: मॉक ड्रिल के जरिए लोगों को हवाई हमले, ब्लैकआउट, या आतंकी हमले जैसी स्थितियों में सुरक्षित रहने की ट्रेनिंग दी जाती है. यह जनता में जागरूकता बढ़ाता है और घबराहट को कम करता है.

प्रशासन की तैयारी: यह प्रशासन और सुरक्षा बलों की तत्काल प्रतिक्रिया क्षमता को परखता है. उदाहरण के लिए, ब्लैकआउट के दौरान बिजली कटौती और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को छिपाने की रणनीति का अभ्यास किया जाता है.

रणनीतिक लाभ: युद्ध के समय दुश्मन के हवाई हमलों से बचने के लिए ब्लैकआउट और कैमुफ्लॉज जैसी तकनीकों का उपयोग होता है. मॉक ड्रिल यह सुनिश्चित करता है कि ये रणनीतियां प्रभावी ढंग से लागू हो सकें.

मनोबल बढ़ाना: नागरिकों और सुरक्षा बलों का मनोबल ऊंचा रखने के लिए मॉक ड्रिल जरूरी है, क्योंकि यह उन्हें आत्मविश्वास देता है कि वे किसी भी स्थिति का सामना कर सकते हैं.

युद्ध के अलावा, मॉक ड्रिल भूकंप, बाढ़ या आतंकी हमले जैसी अन्य आपदाओं के लिए भी तैयार करती है, जिससे जान-माल की हानि को कम किया जा सकता है.

यह भी पढ़ें: MP-छत्तीसगढ़ के इन 6 जिलों में होगी सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल, बजेंगे हमले की चेतावनी वाले सायरन

भारत में मॉक ड्रिल

भारत ने हाल ही में 7 मई 2025 को देश के 244 जिलों में सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल आयोजित करने का ऐलान किया है. यह कदम 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद पहली बार उठाया गया है. देश में आखिरी बार 1971 में ऐसी व्यापक मॉक ड्रिल हुई थी. यह फैसला जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर लिया गया है.

इस मॉक ड्रिल में क्या-क्या होगा?

सायरन बजाकर हवाई हमले जैसी स्थिति क्रिएट किया जाएगा. ये सायरन 120-140 डेसिबल की आवाज के साथ 2-5 किलोमीटर तक सुनाई देंगे. वहीं, शहरों में बिजली बंद कर दुश्मन के हवाई हमलों से बचने की रणनीति का अभ्यास होगा. छात्रों, नागरिकों और सिविल डिफेंस वालंटियर्स को आपात स्थिति में सुरक्षित निकासी और बचाव के तरीके सिखाए जाएंगे. भीड़भाड़ वाले इलाकों जैसे मॉल, रेलवे स्टेशन और स्कूलों से लोगों को सुरक्षित निकालने की योजना का अभ्यास किया जाएगा.

मॉक ड्रिल जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, और गुजरात जैसे सीमावर्ती राज्यों के जिले शामिल हैं. उदाहरण के लिए, राजस्थान के 28 शहरों में सायरन और ब्लैकआउट के साथ यह अभ्यास होगा.

पहलगाम हमले का कनेक्शन

22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. गृह मंत्रालय ने 5 मई को राज्यों को निर्देश जारी किए, और 6 मई को केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक की.

भारत में मॉक ड्रिल का इतिहास

भारत में मॉक ड्रिल सबसे पहले 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देखा गया. उस समय दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे रणनीतिक शहरों में सिविल डिफेंस ड्रिल आयोजित की गई थीं. इन ड्रिल्स में हवाई हमले के सायरन, ब्लैकआउट और सुरक्षित निकासी का अभ्यास शामिल था. इसका उद्देश्य जनता को युद्ध के लिए मानसिक रूप से तैयार करना और जागरूकता बढ़ाना था. 1971 की में जब ड्रिल हुआ था दो पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए थे.

दुनियाभर में मॉक ड्रिल को नागरिक सुरक्षा का अभिन्न अंग माना जाता है. स्वीडन और फिनलैंड युद्ध का खतरा न होने पर भी न्यूक्लियर हमले से बचाव के लिए अंडरग्राउंड बंकर और मॉक ड्रिल का अभ्यास करते हैं. वहीं, इजरायल और यूक्रेन जैसे देशों में एयर सायरन और सिविल डिफेंस प्रोटोकॉल युद्ध के समय प्रभावी ढंग से काम करते हैं. 1980 की ‘स्क्वायर लेग’ ड्रिल में परमाणु हमले की स्थिति में नागरिक सुरक्षा की तैयारियों को परखा गया.

Exit mobile version