Azam Khan: समाजवादी पार्टी (सपा) के कद्दावर नेता आजम खान जेल से रिहा होने के बाद से लगातार चर्चाओं में हैं. 72 मुकदमों में जमानत मिलने के बाद आजम खान सीतापुर जेल से 23 महीनों के बाद रिहा हुए तो समर्थक खुशी से झूम उठे. लेकिन आजम की रिहाई के बाद से एक सवाल लगातार उठता रहा है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अभी तक आजम खान से मुलाकात क्यों नहीं की है. अब खबर आ रही है कि 8 अक्टूबर को अखिलेश यादव उनसे मिलने रामपुर जाएंगे. यह मुलाकात उनकी रिहाई के 16 दिन बाद होगी. हालांकि, इसको लेकर भी सियासी गलियारों में कानाफुसी तेज है.
दरअसल, 9 अक्टूबर को बसपा (BSP) सुप्रीमो मायावती की बड़ी रैली होनी है और इसके ठीक एक दिन पहले ही आजम खान से मिलने अखिलेश रामपुर जाएंगे. माना जा रहा है कि इसके पीछे भी अखिलेश की प्लानिंग है. ऐसी चर्चा है कि अखिलेश ने आजम को अपने साथ बनाए रखने और बसपा से दूर रखने के लिए मुलाकात के लिए ये तारीख चुनी है.
मुलाकात के पीछे बड़ी वजह
सूत्रों के अनुसार, मुलाकात का उद्देश्य आजम खान को पार्टी की वर्तमान राजनीतिक दिशा और आगामी चुनावों में उनकी भूमिका से अवगत कराना है. इसके अलावा, यह कदम सपा के विभिन्न गुटों को एकजुट करने और पार्टी में मजबूती लाने की रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है. जानकारों का कहना है कि आजम खान की सक्रिय भागीदारी से पार्टी को मुस्लिम और पिछड़े वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी.
मुकदमों में जकड़े आजम खान
कभी यूपी की सियासत में आजम खान मुस्लिमों के सबसे बड़े चेहरे थे. 2012 में सपा सरकार में आजम खान की तूती बोलती थी. लेकिन अब उन पर जमीन कब्जाने, फ्रॉड और भ्रष्टाचार के 70 से ज्यादा केस हैं. कई मामलों में तो उन्हें कोर्ट से सजा भी हो चुकी है.
अब तक 10 मामलों में हुई सजा
2023 में फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में उन्हें 7 साल और 2024 में जबरन घर खाली कराने के केस में 10 साल की सजा हुई. इसके बाद वे जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत कम से कम 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. आजम खान को अब तक 10 मामलों में सजा हो चुकी है और कई केस अभी भी कोर्ट में लंबित हैं. इसका मतलब है कि उनका राजनीतिक सफर आसान नहीं है.
सपा को अब उनकी कितनी जरूरत?
रामपुर लोकसभा सीट, जिसे आजम का गढ़ माना जाता था, वहां 2022 के उपचुनाव में सपा हार गई. लेकिन 2024 में सपा ने आज़म के विरोधी रहे मोहिब्बुल्लाह को टिकट दिया और सीट जीत ली. इससे संकेत गया कि सपा आज़म के बिना भी रामपुर में चुनाव जीत सकती है. दूसरी तरफ, अखिलेश यादव ने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला अपनाकर खुद को यूपी में मुस्लिमों का सबसे बड़ा नेता बना लिया है. ऐसे में शायद ही अब सपा को आजम की पहले की तरह जरूरत रहे. बता दें कि 2024 लोकसभा चुनाव में सपा ने 37 सीटें जीतीं.
बसपा और नई पार्टियों की नजर
भले ही आजम की बसपा से नजदीकियों की खबरें हों या फिर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी और एआईएमआईएम की नजरें आजम पर हों, सपा नेता ने साफ कर दिया है कि वे फिलहाल बसपा के साथ नहीं जा रहे हैं. बसपा में जाने की खबरों पर जब आजम से सवाल किया गया, उन्होंने कहा,“मैं बेवकूफ हो सकता हूं, लेकिन इतना बड़ा भी नहीं.”
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आगे क्या होगा रास्ता
कानूनी मुश्किलों, बढ़ती उम्र और कमजोर होती सेहत के कारण आजम खान की राजनीति पहले जैसी नहीं रही. वे किस पार्टी में रहेंगे या किसी का कितना फायदा कर पाएंगे, ये कहना मुश्किल है. फिलहाल, सपा में उनकी भूमिका और भविष्य पर तस्वीर अखिलेश यादव के साथ 8 अक्टूबर को होने वाली मुलाकात के बाद जरूर साफ हो सकती है.
