Hindenburg Research: भारती अर्थव्यवस्था और राजनीति में तूफ़ान लाने वाली ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ नाम की अमेरिकी शॉर्ट सेलिंग कंपनी अब बंद हो चुकी है. 15 जनवरी को कंपनी के मालिक नेट एंडरसन ने कोई ठोस वजह बताए बग़ैर इसे बंद करने की घोषणा कर डाली. हिंडनबर्ग रिसर्च के बंद होने के बाद अड़ानी समूह (Adani Group) के CFO ने फुल मजे लिए हैं. अडानी ग्रुप के सीएफओ जुगेशिंदर रॉबी सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट लिखी और नेट एंडरसर पर तीखा प्रहार किया. उन्होंने लिखा, “कितने गाजी आए, कितने गाजी गए…”
गौरतलब है कि हिंडनबर्ग रिसर्च ने पिछले साल अडानी ग्रुप के खिलाफ एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके बाद अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आई थी. ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ के बंद के पीछे अडानी और भारतीय शेयर बाज़ार की रेगुलेटरी संस्था सेबी (SEBI) के दावे और अमेरिका में बनी ट्रंप की नई सरकार को बड़ी वजह माना जा रहा है. क्योंकि, कंपनी के मालिक नेट एंडरसन ने इसे बंद करने को लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं दी है.
हिंडनबर्ग रिसर्च को बंद करने का ऐलान ऐसे वक़्त में हुआ है जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले हैं. इनके शपथ समारोह से ठीक पहले रिपब्लिकन सांसद लांस गुडेन ने अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट से अडानी मामले से जुड़े सबी रिकॉर्ड सुरक्षित रखने के अनुरोध किए थे. उनके अनुरोध के ठीक एक दिन बाद ही कंपनी के मालिक एंडरसन ने इसे बंद करने की घोषणा कर डाली. ग़ौरतलब है कि लांस गुडेन सदन के न्याय समिति के सदस्य भी हैं. एक हफ़्ते पहले भी गुडेन ने जस्टिस डिपार्टमेंट से “सेलेक्टिव पर्सिक्यूशन” पर भी जवाब माँगा था और पूछा था कि क्या इसका जॉर्ज सोरोस से कई लिंक तो नहीं है. जॉर्ज सोरोस पहले से ही भारत विरोधी गतिविधियों के लिए जाने जाते रहे हैं. भारत की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी अक्सर सोरोस के हवाले से भारत को डिस्टर्ब रखने के आरोप लगाती रही है.
जॉर्ज सोरोस और बाइडेन प्रशासन की मिलीभगत!
रिपब्लिकन सांसद और अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट के सदस्य लांस गुडेन के सवालों काफ़ी मायने रखते हैं. इसके पीछे के बैकग्राउंड को भी समझना बेहद ज़रूरी है. क्योंकि, यहीं से भारतीय राजनीति में विपक्षी दलों का ग़ैर-जिम्मेदराना रवैया भी देखने को मिलेगा. फ्रांसीसी खोजी अखबार ’मीडियापार्ट’ (Mediapart) ने अमेरिकी सरकार और जॉर्ज सोरोस की ’ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ के बारे में कई दावे किए. ’द हिडन लिंक्स बिटवीन ए जायंट ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म एंड द यूएस गवर्नमेंट’ शीर्षक नाम की अपनी रिपोर्ट में Mediapart ने कहा, ”दुनिया की सबसे बड़ा खोजी मीडिया नेटवर्क OCCRP ने अमेरिकी सरकार के साथ अपने संबंधों की सच्चाई छुपाई. जांच में पता चला है कि वॉशिंगटन इसकी आधे से ज्यादा फंडिंग करता है. वरिष्ठ स्टाफ को नियुक्त करने का अधिकार रखता है और रूस तथा वेनेजुएला पर ध्यान केंद्रित करने वाली जांचों को फंड करता है.” ज़ाहिर है जब किसी इंटरनेशनल मीडिया की तरफ़ से ऐसे आरोप अमेरिकी सरकार और सोरोस पर लगेंगे तो भारतीय संबंध में भी सवाल उठाना लाज़मी हो जाता है. तब बीजेपी ने भी इसी को आधार बनाकर भारत में कांग्रेस से सवाल किए थे. क्योंकि, कांग्रेस लगातार इसे एक बड़ा मुद्दा बनाती रही है.
चीन का कनेक्शन और SEBI का दावा
हिंडनबर्ग रिसर्च के संस्थापक नेट एंडरसन की भारत विरोधी शक्तियों का साथ कई तार जुड़ते दिखाई दिए हैं. लिहाज़ा, रिपोर्ट की सत्यता पर न सिर्फ़ भारत बल्कि अमेरिका समेत दूसरे देशों ने भी गंभीर सवाल उठाए. ख़ुद को एक व्हीसलब्लोअर के तौर पर प्रोजेक्ट करने वाली कंपनी शेयरों की शॉर्ट सेलिंग के ज़रिए पैसे बना रही थी. इधर भारत के बाज़ार तबाह होते, उधर हिंडनबर्ग मुनाफ़ा कमा कर मालामाल हो जाता. दूसरी तरफ़ भारत की राजनीति में आग लगती सो अलग. ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ ने जब भारतीय शेयर बाज़ार को रेगुलेट करनी वाली संस्था SEBI पर हाथ डाला तब पलटवार तय था. सेबी ने अनियमितता के आरोप लगाए. इसके अलावा चीन के साथ तार जुड़ने के भी आरोप पुख़्ता होते दिखे.
सेबी(SEBI) ने बताया कि हिंडनबर्ग ने अडानी ग्रुप के खिलाफ अपनी रिपोर्ट पब्लिश करने से पहले और बाद में शेयर बाजार के नियमों का उल्लंघन किया. अपनी शिकायत में भारतीय शेयर बाज़ार की इस रेगुलेटरी संस्था दावा किया कि हिंडनबर्ग ने रिपोर्ट को पहले न्यूयॉर्क की एक हेज फंड कंपनी ’किंगडन कैपिटल’ को साझा किया था. इसके बाद किंगडन कैपिटल ने शेयर बाजार में अडानी के शेयरों में भारी गिरावट का फायदा उठाकर मुनाफा कमाया.
हिंडनबर्ग रिसर्च पर ताला लगने के पीछे अडानी समूह से पंगा लेना बड़ा कारण माना जा रहा है और इसके पीथे कई सारे तार भी जुड़ते चले जा रहे हैं. हिंडनबर्ग रिसर्च ने भारतीय कंपनी अडानी समूह के अलावा सेबी (SEBI) की प्रमुख माधवी बूच को भी निशाने पर लिया. जिसके चलते भारतीय शेयर बाज़ार में ऐतिहासिक ब्लड-बाथ देखा गया. अडानी ग्रुप की कंपनियों के साथ-साथ दूसरे शेयर भी धड़ाम होते दिखाई दिए. एक दिन के अंदर बाज़ार के हज़ारों करोड़ रुपये स्वाहा हो गए. जब भी हिंडनबर्ग रिसर्च की की कोई रिपोर्ट आती इससे भारत की सियासत और अर्थव्यवस्था दोनों डावाँडोल हो जाती.
दरअसल, इसके खुलासे की टाइमिंग या तो किसी बड़े चुनाव के पहले या फिर संसद सत्र के आस-पास होती थी. ऐसे में इस कंपनी की मंशा और बैकिंग को लेकर भारतीय बाज़ार और राजनीति के जानकार सवाल खड़े करते रहे हैं.
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भारत से लेकर अमेरिका में राजनीतिक बवाल
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से भारत के अलावा अमेरिका भी राजनीतिक हलचल देखी गई. भारत में जिस तरह का राजनीतिक बवंडर विपक्ष ने मचाया और फिर बीजेपी ने इसमें भारत विरोधी ताक़तों का हवाला दिया, उसके बाद अमेरिका में भी सियासत ने रफ़्तार पकड़ ली. आलम ये रहा कि हाल ही में अधिकांश अमेरिकी सांसदों ने डोनाल्ड ट्रंप के नए प्रशासन से अडानी मामले की जांच की मांग कर डाली.
इसके अलावा कुछ भारतीय नेताओं और वकीलों ने हिंडनबर्ग पर विदेशी साज़िश का आरोप लगाया और इसके ज़रिए भारत की छवि ख़राब करने की बात कही. कुल मिलाकर राजनीति से लेकर SEBI की ओर से हिंडनबर्ग पर लगातार क़ानूनी दबाव बढ़ता गया है. क्योंकि, जिस गुप्त तरीक़े से यह कंपनी पैसे कमा रही थी, वह भी कम से कम भारतीय क़ानून के दायरे एक बड़े अपराध की श्रेणी में है.