Delhi Politics: दिल्ली की राजनीति में इन दिनों हलचल मची हुई है, और यह हलचल सिर्फ एक बयान तक सीमित नहीं है. सीएम अरविंद केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है और पार्टी के किसी नए नेता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने का इरादा जताया है. लेकिन इस घोषणा के पीछे की कहानी और भी दिलचस्प है. जब एक अनुभवी नेता कुर्सी छोड़ने का फैसला करता है, तो यह कदम केवल व्यक्तिगत नहीं होता, बल्कि यह राजनीति के बड़े खेल की एक नई शुरुआत को दिखाता है.
यह सवाल उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी का नया मुख्यमंत्री आने वाले चुनाव के बाद भी अपनी कुर्सी को इतनी आसानी से छोड़ देगा? दिल्ली की राजनीति में सत्ता की इस अदला-बदली का क्या नतीजा होगा? क्या यह स्थिति बिहार में नीतीश-मांझी, झारखंड में हेमंत-चंपई की तरह एक और पेचीदा कहानी का हिस्सा बन जाएगी? आइए, जानते हैं कि इस इस्तीफे की घोषणा के पीछे छिपे असली खेल की कहानी क्या है और इससे दिल्ली की राजनीति में क्या बदलाव आ सकते हैं.
अरविंद केजरीवाल देंगे इस्तीफा
अरविंद केजरीवाल की घोषणा ने दिल्ली की राजनीतिक सर्कल्स में हलचल मचा दी है. उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का निर्णय लिया है. इसके पीछे के कारण चाहे जो भी हों, इस फैसले ने एक नई राजनीति की शुरुआत की संभावना को जन्म दिया है. लेकिन सवाल यह है कि पार्टी का नया मुख्यमंत्री क्या वास्तविक रूप से सत्ता की कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार होगा?
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नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी की कहानी
आइए पहले बिहार की राजनीति पर एक नज़र डालते हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों में जेडीयू का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. नीतीश कुमार ने पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और दलित नेता जीतन राम मांझी को इस पद पर नियुक्त किया. यह कदम एक नया नेतृत्व स्थापित करने के उद्देश्य से उठाया गया था, लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं हुआ.
10 महीने बाद, जब जेडीयू ने मांझी से इस्तीफा देने के लिए कहा, तो उन्होंने इसका विरोध किया. यह कदम पार्टी के अंदर घमासान का कारण बना और अंततः मांझी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इस घटना ने स्पष्ट कर दिया कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना एक नेता के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है और इसके छोड़ने की प्रक्रिया कितनी कठिन हो सकती है. मांझी ने अपनी अलग पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) बनाई और अब एनडीए का हिस्सा हैं, लेकिन नीतीश कुमार के लिए यह अनुभव अच्छा नहीं रहा.
झारखंड का उदाहरण
अब झारखंड की ओर बढ़ते हैं. जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भूमि घोटाले में गिरफ्तार किया गया, तब उन्होंने पार्टी के बड़े आदिवासी नेता चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बना दिया. लेकिन जैसे ही हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए, झामुमो ने चंपई सोरेन से इस्तीफा देने की मांग की. चंपई ने इस्तीफा दिया. हालांकि, उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी. चंपई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद झामुमो को एक बड़ा झटका लगा.
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दिल्ली में क्या होगा?
अब सवाल यह है कि अगर आम आदमी पार्टी के सामने भी ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो क्या होगा? यदि पार्टी अगले विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में वापस आती है, तो क्या नया नेता, जिसे अभी मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार होगा? क्या उसके समर्थक इस बात की मांग नहीं करेंगे कि उनका नेता मुख्यमंत्री बने रहे?
राजनीति में ताकत का खेल और महत्वाकांक्षाएं प्रमुख भूमिका निभाती हैं. मुख्यमंत्री पद राज्य सरकार का सबसे महत्वपूर्ण पद होता है और इस पर बैठने वाले नेता का राजनीतिक कद बढ़ जाता है. ऐसे में किसी भी नेता के लिए इस कुर्सी को छोड़ना आसान नहीं होता.
अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे और पार्टी के नए नेतृत्व का चयन दिल्ली की राजनीति में एक नई दिशा की संभावना को दर्शाता है. लेकिन यह भी देखना होगा कि यह स्थिति कितनी स्थिर रहती है और क्या पार्टी आने वाले समय में ऐसे किसी भी चुनौती का सामना कर पाएगी. दिल्ली के इस राजनीतिक खेल में कौन सी नई कहानी सामने आएगी, यह आने वाला समय ही बताएगा.