Assam Beef Ban: क्या बिहार में जनता दल यूनाइटेड एक बार फिर ‘खेला’ करने का संकेत दे रही है. 11 महीने बाद सियासी गलियारों में ये चर्चा इसलिए होने लगी है क्योंकि, असम में सीएम हिमंता बिस्वा सरमा के बीफ बैन के फैसले का नीतीश कुमार की पार्टी ने पुरजोर विरोध करना शुरू कर दिया है. बात यहां तक पहुंच गई कि ‘राजधर्म’ का जिक्र भी हो गया. दिलचस्प बात ये है कि यह सब उस वक्त हो रहा था, जब महाराष्ट्र में शपथ ग्रहण के दौरान सीएम नीतीश कुमार और पीएम मोदी की गर्मजोशी से मुलाकात हो रही थी. जदयू के बदले तेवर के बाद फिर से राजनीतिक चर्चाओं का दौर एक बार फिर शुरू हो गया है.
बताया ‘राजधर्म’ के खिलाफ
दरअसल, एनडीए सरकार में शामिल होने के बाद यह पहला मौका है जब इस कदर मुखर होकर जदयू ने भाजपा के किसी फैसले का विरोध किया है. नीतीश की पार्टी असम में बीफ बैन को खाने-पीने की आजादी के मसले से जोड़ रही है. पार्टी का कहना है कि यह संविधान खाने-पीने की आजादी देता है और ऐसे फैसलों से समाज में तनाव बढ़ेगा. जदयू का विरोध यहीं तक नहीं था. पार्टी के प्रवक्ता राजीव रंजन ने असम सरकार के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि लोगों को खाने-पीने की आजादी होनी चाहिए. उन्होंने इस फैसले को ‘राजधर्म’ के खिलाफ बताया. राजीव रंजन का कहना था कि लोग क्या खा रहे हैं और क्या पहन रहे हैं, इससे सरकार को क्या मतलब?
क्या था असम सरकार का फैसला?
पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने भी असम सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि होटल या सार्वजनिक जगहों पर बीफ करने का फैसला समाज में तनाव को बढ़ा सकता है। बता दें कि सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने दो दिनों पहले ही ऐलान किया था कि असम के होटलों, रेस्टोरेंट्स और सार्वजनिक जगहों पर बीफ पर बैन लगाया जाएगा. उनके इस फैसले के बाद से ही लगातार राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है.
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जगदीप धनखड़ के बयान का समर्थन
लेकिन, बीजेपी को सबसे ज्यादा विरोध अपने ही सहयोगी दल जदयू के खेमे से झेलना पड़ रहा है. बीजेपी की मुश्किल केवल यही नहीं है कि बीफ बैन पर जदयू के तेवर बदले हैं. बल्कि, किसानों के मुद्दे पर भी जदयू ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के उस बयान का समर्थन किया था, जिसमें उन्होंने किसानों से किए वादे पूरे न करने पर सवाल उठाए थे. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से पूछा था कि किसानों से किए गए वादे क्यों पूरे नहीं किए जा रहे हैं? उन्होंने कहा था कि किसानों से बात क्यों नहीं की जा रही है. इस मुद्दे विपक्ष सरकार को घेरने में जुटा है, वहीं एनडीए के घटक दल जदयू ने भी उपराष्ट्रपति के बयान का समर्थन कर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का भी किया था विरोध
जदयू ने महाराष्ट्र चुनाव के दौरान यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे का भी विरोध किया था. ‘बंटेगे तो कटेंगे’ नारे का विरोध करते हुए बिहार के जदयू एमएलसी गुलाम गौस ने कहा था कि ऐसे नारों की देश में जरुरत नहीं है. उन्होंने कहा था कि हम लोग एकजुट हैं और इस नारे की जरुरत उन लोगों को है जिन्हें एक संप्रदाय के नाम पर वोट की जरुरत है. गौस ने कहा था कि बिहार में यह नारा नहीं चलेगा, जिसके बाद बीजेपी ने भी उन पर तीखा हमला बोला था. वक्फ बोर्ड संशोधन बिल तटस्थ रुख अपनाने वाली जदयू जिस तरह से असम में बीफ बैन पर आक्रामक बयानबाजी कर रही है, उसे बीजेपी के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है.