उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों में सबसे ज्यादा हलचल दो सियासी घटनाक्रमों के कारण देखने को मिली है. एक मामले में बीजेपी के भीतर अंदरूनी कलह की बातें सामने आईं, जब बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने ये कह दिया कि सरकार से बड़ा संगठन है. इसके बाद यूपी में केशव मौर्य और सीएम योगी आदित्यनाथ के बीच सबकुछ ठीक न होने की चर्चाएं शुरू हो गईं. सोशल मीडिया पर ये कहा जाने लगा कि अब सीएम योगी की कुर्सी खतरे में पड़ गई है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ‘मानसून ऑफर’ के बहाने केशव मौर्य पर डोरे डालने लगे. लेकिन सियासी बयानबाजी के बीच यूपी में होने वाले उपचुनाव की तैयारियों में जुटे सीएम योगी आदित्यनाथ ने ऐसा दांव चल दिया कि विरोधी पस्त नजर आने लगे हैं.
‘सरकार बनाम संगठन’ की चर्चाओं पर लगा विराम!
दरअसल, केशव मौर्य के ‘सरकार से बड़ा संगठन’ वाले बयान को सियासी हलकों में सीएम योगी के खिलाफ माना गया. इसके बाद ये मामला दिल्ली में आलाकमान की चौखट जा पहुंचा, जहां केशव प्रसाद मौर्य को नसीहत देकर लखनऊ भेजा गया. लेकिन डिप्टी सीएम के तेवर में कोई बदलाव नहीं नजर आया. खबरें ये तक आने लगी कि उपचुनाव के बाद सरकार व संगठन में बदलाव तय है. साथ ही ये भी चर्चाएं होने लगीं कि केशव प्रसाद मौर्य को यूपी का गृह मंत्री बनाया जा सकता है. अगर ऐसा हुआ तो यूपी में पावर के दो सेंटर हो जाएंगे. एक योगी आदित्यनाथ और दूसरा केशव मौर्य. लेकिन इस पावर सेंटर से अलग एक बात और होगी कि योगी आदित्यनाथ उतने ताकतवर नहीं रह जाएंगे जितने अभी हैं. गृह विभाग की कमान अगर केशव प्रसाद के हाथों में गई तो चाहें माफियाओं के खिलाफ बुलडोजर चलाने का मामला हो या फिर पुलिस को अपराधियों के खिलाफ फ्री हैंड देने का… इन दोनों मामलों में गेंद मौर्य के पाले में होगी. फिलहाल, ये चर्चाएं थम सी गई हैं कि यूपी बीजेपी का भविष्य क्या होगा और सरकार में कैबिनेट स्तर पर क्या बदलाव होने वाला है, क्योंकि इस मामले के बीच एक नए मुद्दे ने जन्म ले लिया जिसने ‘सरकार बनाम संगठन’ की बहस को पूरी तरह हाईजैक कर लिया. या यूं कहा जाए तो जो यूपी की राजनीति ‘धर्म’ की पिच से हटती नजर आ रही थी, अचानक इसी पर टी20 फॉर्मैट में राजनीतिक दलों की तरफ से बयानबाजी होने लगी.
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योगी के एक आदेश ने बदल दिया यूपी में सियासी ‘गेम’
दरअसल, हुआ यूं कि मुजफ्फरनगर में स्थानीय प्रशासन ने दुकानदारों को निर्देश दिया है कि कांवड़ रूट पर वे अपनी पहचान के साथ दुकानदारी करें, यानी हर दुकानदार को अपनी दुकान पर नाम का बोर्ड लगाने को कहा गया. प्रशासन के इस आदेश का असर भी हुआ. देखते ही देखते फल से लेकर ढाबे तक पर दुकानों के आगे बोर्ड पर मालिकों के नाम लिखे जाने लगे. लेकिन ये मामला यहीं थमने वाला नहीं था क्योंकि इसमें अभी राजनीति का तड़का लगना बाकी था. जैसे ही दुकानों पर लगे नेमप्लेट की तस्वीरें सामने आने लगीं, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस समेत एनडीए के अन्य सहयोगी दल योगी सरकार पर हमलावर हो गए.
वहीं विवाद के बीच कांवड़ रूट पर नेमप्लेट लगाने को लेकर योगी आदित्यनाथ के कार्यालय की तरफ से एक आदेश जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि दुकानदारों को हर हाल में नेमप्लेट लगाना होगा. अब इस आदेश के बाद कई दुकानों के नाम बदल गए हैं. संगम ढाबा अब सलीम भोजनालय हो गया है, चाय लवर्स प्वाइंट का नाम अहमद टी स्टॉल हो गया है. इसी तरह अन्य दुकानों के नाम भी बदल गए हैं.
कांवड़ यात्रा रूट पर नेमप्लेट के आदेश से छिड़ा घमासान
मुजफ्फरनगर में कांवड़ रूट पर मुसलमानों की भी बड़ी संख्या में दुकानें हैं. ऐसे में सपा और कांग्रेस ने ये कहना शुरू कर दिया कि योगी सरकार धार्मिक आधार पर भेदभाव को बढ़ावा दे रही है. कई मुस्लिम संगठनों ने भी योगी सरकार पर धर्म के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है. वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस आदेश को असंवैधानिक करार दे दिया. और तो और…योगी सरकार के इस फरमान के खिलाफ RLD और जदयू की तरफ से भी बयान आने लगे. एनडीए के सहयोगी दल योगी सरकार से इस आदेश को वापस लेने की मांग करने लगे. एनडीए के एक अन्य सहयोगी चिराग पासवान ने भी योगी सरकार के इस आदेश पर आपत्ति जाहिर की. कुल मिलाकर कहा जाए तो यूपी के बाहर के सहयोगी दलों की प्रतिक्रिया से कहीं न कहीं आलाकमान पर दबाव जरूर बढ़ सकता है.
योगी के दांव से विपक्ष हैरान!
वहीं नेमप्लेट पर छिड़े सियासी घमासान के बीच राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि केशव प्रसाद मौर्य जिस तरह का अड़ियल रवैया अपनाए हुए थे, उसके बाद बीजेपी में कलह और भी बढ़ने के संकेत मिल रहे थे. लेकिन योगी सरकार के एक फैसले ने तमाम राजनीतिक दलों को ‘धर्म’ की उस पिच पर ला खड़ा किया है जहां बीजेपी खूब बल्लेबाजी करती है. योगी आदित्यनाथ ने अपने खिलाफ बन रहे माहौल के बीच ऐसा आदेश पारित कर दिया कि यूपी में अब सहयोगी से लेकर विपक्षी दलों तक को उनके सेट किए ‘नैरेटिव’ पर चाहे-अनचाहे बात करनी पड़ रही है. अगर उपचुनाव की कड़ी में इसे जोड़कर देखा जाए तो ये भी कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में यूपी में जिस तरह के नतीजे आए थे, उसके बाद उपचुनाव में भी पीडीए फॉर्मूले पर जोर देने की बात हो सकती थी. लेकिन कांवड़ रूट पर नेमप्लेट को लेकर उपजे विवाद ने इस मानसून की बारिश में एक बार फिर से धर्म आधारित राजनीति के ‘सियासी बीज’ बो दिए हैं.