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Explainer: केजरीवाल के सामने प्रवेश वर्मा, आतिशी के खिलाफ रमेश विधूड़ी; दिल्ली चुनाव में BJP ने AAP की बढ़ाई ‘टेंशन’,जानिए हॉट सीटों पर कैसी रहेगी टक्कर

Delhi Election

मंजिंदर सिंह सिरसा, अरविंदर सिंह लवली और प्रवेश वर्मा

Delhi Election: भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) के लिए अपने 29 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. इन 29 नामों में बीजेपी की दिल्ली इकाई के तमाम हैवीवेट नाम शामिल हैं. प्रवेश वर्मा, रमेश विधूड़ी, मंजिंदर सिंह सिरसा, विजेंदर गुप्ता, सतीश उपाध्याय, दुष्यंत गौतम, मनोज शौक़ीन और कैलाश गहलोत जैसे चेहरों पर सबकी नज़रें टिकी हुई हैं और बीजेपी ने इन्हें टिकट भी दे दिया है.

पिछले दो विधानसभा चुनावों में एकतरफ़ा तूती बोलवाने वाली ‘आम आदमी पार्टी’ इस बार के चुनावी दंगल में फ़ज़ीहत महसूस कर रही है. इसकी वजह है कि ग्राउंड पर कांग्रेस के पुराने दिग्गज पहले ही आ डटे हैं और बीजेपी ने भी उसी को देखते हुए मौक़े पर चौका लगा दिया है.

केजरीवाल के खिलाफ प्रवेश वर्मा का टिकट

नई दिल्ली से प्रवेश वर्मा को बीजेपी ने टिकट दिया है और यहीं से आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल भी ताल ठोक रहे हैं. प्रवेश वर्मा दिल्ली के पूर्व सीएम और बीजेपी के कद्दवार नेता रहे स्वर्गीय साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं. उम्मीदवारों की औपचारिक घोषणा से पहले ही बीजेपी में इनके नाम को लेकर हलचल तेज़ हो गई थी. एक महीना पहले ही यह तय हो चुका था कि केजरीवाल को टक्कर देने के लिए प्रवेश वर्मा ही चुनावी मैदान में उतरेंगे. यही वजह रही की बीते एक महीने के दौरान आम आदमी पार्टी ने कई मौक़ों पर प्रवेश वर्मा को निशाने पर लिया. इसमें महिलाओं को नोट बाँटने का वाला मामला सबसे ज़्यादा सुर्खियों में रहा. उसी दौरान अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे पर ख़ुद आगे आकर वर्मा पर अटैक किया. इसके बाद आम आदमी पार्टी के तमाम दिग्गज नेता जिनमें संजय सिंह, आतिशी, सौरभ भारद्वाज और मनीष सिसोदिया ने हमले तेज़ कर दिए.

बहरहाल, प्रवेश वर्मा की औपचारिक एंट्री ने यह तय कर दिया है कि केजरीवाल की मुसीबत और ज़्यादा बढ़ने वाली है, क्योंकि यहाँ पहले ही कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित को मैदान में उतार दिया है. यहाँ समझना ये भी दिलचस्प होगा कि संदीप दीक्षित दिल्ली में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे हैं और अरविंद केजरीवाल की पार्टी का फैलाव और उनकी सत्ता में आने का रास्ता शीला दीक्षित की सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन से ही तैयार हुआ था.

कॉमनवेल्थ गेम से लेकर तत्कालीन शीला सरकार पर केजरीवाल जमकर बरसते थे और भ्रष्टाचार को लेकर हर दूसरे दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री को कटघरे में खड़ा करते थे. यहीं से दिल्ली की सियासत से कांग्रेस ऐसे ग़ायब हुई कि आज नंबर दो या नंबर तीन की पार्टी बनने के लिए संघर्ष कर रही है. ऐसे में संदीप दीक्षित के लिए माना जा रहा है कि यहाँ कि जंग सियासत से भी ज़्यादा निजी तौर पर मायने रखती है.

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नई दिल्ली सीट की इस जंग को थोड़ा और बेहतर से आपको समझना चाहिए. वो इसलिए कि आख़िर इस सीट से अरविंद केजरीवाल भारी भरकम वोट से जीतते रहे हैं. फिर इस बार बेचैनी क्यों है? दरअसल, इस बार एंटी इन्कंबेंसी काफ़ी ज़्यादा है और पहले ही संदीप दीक्षित का मैदान में उतरना बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी है. क्योंकि, दिल्ली में बीजेपी का अपना वोट प्रतिशत पिछले दोन चुनावों में इंटैक्ट रहा है. यानी कहीं दूसरे ख़ेमे में फ़्लोट नहीं किया है. ऊपर से प्रवेश वर्मा बीजेपी के भीतर एक हार्डलाइनर नेता के तौर पर देखे जाते हैं. ऐसे में यह तय है कि बीजेपी का वोटबैंक कहीं खिसकने वाला नहीं है. लेकिन, संदीप दीक्षित के चलते केजरीवाल को अपना वोट-शेयर बंटने का डर सता रहा है. ऐसे में अगर AAP के उस वोट बैंक पर जो कभी कांग्रेस का वोट बैंक था, उसमें संदीप दीक्षित सेंधमारी करते हैं तो केजरीवाल की हालत डावांडोल हो सकती है.

आतिशी पर भारी लांबा और विधूड़ी

नई दिल्ली की तरह कालकाजी विधानसभा सीट भी दिलचस्प और हाई-प्रोफाइल बनी हुई है. वर्तमान सीएम आतिशी सिंह यहाँ से उम्मीदवार हैं और उनके ख़िलाफ़ कांग्रेस ने अलका लांबा को मैदान में उतारा है तो वहीं रमेश विधूड़ी को बीजेपी ने टिकट दे दिया है. ऐसे में जो समीकरण आपने ऊपर नई दिल्ली के लिए समझा. ठीक वही समीकरण कालकाजी में भी लागू होती है. यहीं से आतिशी सीटिंग एमएलए हैं और अब दूसरी महिला उम्मीदवार अलका लांबा से भी उन्हें टक्कर मिलने की आशंका सता रही है. अलका लांबा पहले AAP का ही एक मज़बूत हिस्सा हुआ करती थीं और पार्टी की विधायक भी रहीं. लेकिन, पाँच साल पहले उन्होंने AAP का साथ छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया. तब अलका ने आरोप लगाए कि ‘AAP अब ख़ास हो गई है’.

ऐसे में यदि लांबा एक साइजेबल वोट खींचती हैं तो उसका सीधा नुक़सान आतिशी को ही होगा. क्योंकि, यहाँ बीजेपी के वोट बैंक पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. विधूड़ी भी पार्टी के भीतर एक हार्ड लाइन इख़्तियार करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं. बतौर सांसद उनके विवादित बोल से भले ही आम जनता नाराज़ हुई हो, लेकिन उनकी पार्टी का कैडर उनके साथ खड़ा रहा है. ग़ौरतलब है कि संसद में विधूड़ी ने तत्कालीन बसपा सांसद दानिश अली पर विवादित टिप्पणी कर दी थी. बहरहाल, विधूड़ी अपने मतदाताओं के साथ इंटैक्ट खड़े दिखाई देते हैं. अगर अलका लांबा सेंधमारी कर जाती हैं तो यहाँ भी आतिशी डेंजर ज़ोन में आ जाएंगी.

मंजिंदर सिंह सिरसा का प्रभाव

दिल्ली का राजौरी गार्डन इलाक़ा पंजाबी बहुल एरिया है. यहाँ से बीजेपी ने मंजिंदर सिंह सिरसा पर भरोसा दिखाया है. सिरसा पहले अकाली दल में रहे हैं. लेकिन, किसान आंदोलन के दौरान जब अकाली दल ने एनडीए से नाता तोड़ा तब सिरसा बीजेपी में शामिल हो गए थे. सिरसा का व्यक्तित्व एक राजनेता के साथ-साथ पंथिक शख्सित के रूप में भी रही है. ये ‘दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी’ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. ऐसे में ख़ास तबके में इनकी अच्छी बैठ है और ज़मीन पर लोगों के बीच अक्सर पाए जाते हैं. इसके अलावा पार्टी के लिए मीडिया में भी हर मुद्दे पर अपनी राय देकर सुर्खियों में बने रहते हैं.

अरविंदर सिंह लवली

अरविंदर सिंह लवली के पहले कांग्रेस के क़द्दावर नेताओं में से एक थे. लेकिन, बाद में पार्टी से बग़ावत करके बीजेपी में शामिल हो गए. बहुत ही कम उम्र में ये शीला दीक्षित की सरकार में अहम मंत्री पद भी सँभाल चुके हैं. लिहाज़ा, इनका अनुभव और राजनीतिक क्षमता भी काफ़ी ज़्यादा है. बीजेपी ने इनके इसी पकड़ को देखते हुए इन्हें गांधीनगर सीट से टिकट दिया है. गांधीनगर को 1972 में विधानसभा सीट के तौर पर घोषित किया गया था. यह सीट पारंपरिक रूप से कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. लेकिन, बीचे में दो बार बीजेपी और एक मर्तबा आम आदमी पार्टी ने सेंधमारी ज़रूर की है.

फ़िलहाल, आज भी इस सीट पर कांग्रेस से सहानुभूति रखने वाले मतदाताओं की संख्या काफ़ी ज़्यादा है. लेकिन, कांग्रेस से ही बीजेपी में शामिल हुए दिग्गज नेता लवली को टिकट देकर बीजेपी ने बाज़ी मारने की कोशिश की है. क्योंकि, लवली सिख समाज से आते हैं और यहाँ हिंदू के साथ-साथ सिख बिरादरी का वोट भी बीजेपी के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है. लवली इस सीट से बतौर कांग्रेस विधायक 1998 से लेकर 2015 तक लगातार विधायक रहे. लेकिन, 2015 में इस सीट पर AAP के उम्मदवार अनिल कुमार वाजपेयी ने इन्हें पटखनी दे दी. बाद में वाजपेयी ने पाला बदला और बीजेपी में शामिल हो गए. 2020 में भी उन्होंने बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल की. इस बार AAP ने यहाँ से नवीन चौधरी उर्फ़ दीपू को मैदान में उतारा है.

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