Delhi Farmer Protest: संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के नेतृत्व में हजारों किसान नोएडा से दिल्ली की तरफ कूच कर रहे थे. हालांकि बाद में किसानों ने सड़क खाली कर दी और दलित प्रेरणा स्थल पर ही रुक कर प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं, दिल्ली-नोएडा बॉर्डर से बैरिकेडिंग हट रही है. इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य गोरखपुर जैसे चार गुना मुआवजे, भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव और अन्य अहम मुद्दों को लेकर सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग करना है. हालांकि, प्रशासन ने उनकी मांगों पर मुख्य सचिव से बात करने की बात कही है.
किसानों की प्रमुख मांगें
किसानों का आरोप है कि गौतमबुद्ध नगर के किसानों को गोरखपुर हाईवे परियोजना के तहत चार गुना मुआवजा नहीं दिया गया, जबकि यह मुआवजा अन्य क्षेत्रों में दिया गया था. इसके अलावा, पिछले 10 सालों से सर्किल रेट (जमीन की बाजार दर) में कोई वृद्धि नहीं हुई है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है. इसके अलावा, किसान नेता यह भी मांग कर रहे हैं कि नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मिलने वाले लाभ और उच्च पावर कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाए.
किसान नेता पहले भी यमुना प्राधिकरण कार्यालय के सामने चार दिनों तक धरने पर बैठे थे, लेकिन उनकी मांगों को अनसुना कर दिया गया. अब किसानों ने दिल्ली में संसद के पास प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है. उनकी प्रमुख मांगें भूमि अधिग्रहण से जुड़े उचित मुआवजे, फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी और किसानों की लंबित समस्याओं के समाधान को लेकर हैं.
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पुलिस और प्रशासन की तैयारी
किसान आंदोलन को देखते हुए नोएडा पुलिस ने रूट डायवर्जन की व्यवस्था लागू कर दी है. नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे और यमुना एक्सप्रेसवे पर भारी वाहनों की आवाजाही रोक दी गई है. इसके अलावा, सिरसा से परी चौक होकर सूरजपुर जाने वाले रास्तों पर भी यातायात को रोक दिया जाएगा. पुलिस ने लोगों से अपील की है कि वे वैकल्पिक मार्गों का उपयोग करें. किसान आंदोलन की वजह से दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में यातायात प्रभावित हो सकता है, और प्रशासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती हो सकती है.
पंजाब और हरियाणा से भी समर्थन
इस आंदोलन को लेकर पंजाब और हरियाणा के किसान भी दिल्ली की ओर कूच करने की योजना बना रहे हैं. किसान नेता शंभू और खनौरी बॉर्डर से 6 दिसंबर को पहला जत्था दिल्ली के लिए रवाना करने की तैयारी कर रहे हैं. किसान नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार ने फरवरी 2024 के बाद से किसानों से कोई बातचीत नहीं की है, जिसके कारण किसान सरकार से नाराज हैं.
अन्य राज्यों में भी प्रदर्शन
किसान केवल दिल्ली में ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों में भी अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. केरल, उत्तराखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी किसान अपनी मांगों को लेकर मार्च कर रहे हैं. ये किसान कर्ज माफी, पेंशन, बिजली दरों में बढ़ोतरी पर रोक, पुलिस मामलों की वापसी, लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय और 2020-21 के आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं.
सरकार के सामने बड़ी चुनौती
किसानों का यह आंदोलन एक बार फिर से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है. किसानों ने बार-बार अपनी मांगों को उठाया है, लेकिन उनकी बातों को नकारा जा रहा है, जिससे उनका गुस्सा बढ़ता जा रहा है. इस आंदोलन में केवल किसानों की समस्याओं का समाधान करने की बात नहीं हो रही है, बल्कि किसानों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की जरूरत महसूस हो रही है.
किसानों के इस विरोध प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस और प्रशासन को कानून व्यवस्था बनाए रखने और यातायात व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा. सरकार के लिए यह समय यह समझने का है कि यदि वह किसानों की मांगों को गंभीरता से नहीं लेती, तो यह आंदोलन और भी बड़े स्तर पर फैल सकता है.
किसानों का यह आंदोलन दिखाता है कि जब तक उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया जाएगा, तब तक वे संघर्ष करते रहेंगे. इस आंदोलन के जरिए वे यह संदेश देना चाहते हैं कि किसान देश की रीढ़ हैं, और अगर उनकी समस्याओं को अनदेखा किया जाएगा, तो देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा.