Diwali 2024: दिवाली, भारत में एक ऐसा पर्व है जो धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है. यह पर्व भगवान श्री राम के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. दिवाली के दिन लोग अपने घरों को दीपों से सजाते हैं, भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं, और पटाखों की गूंज से आसमान को रोशन करते हैं.
तमिलनाडु और केरल में नहीं मनाई जाती है दिवाली
हालांकि, भारत के कुछ हिस्सों में ऐसा नहीं होता. यह सुनकर आप चौंक सकते हैं, लेकिन कई स्थान हैं जहां दिवाली का जश्न नहीं मनाया जाता. उदाहरण के लिए दक्षिण भारत के तमिलनाडु और केरल में कई स्थान ऐसे हैं जहां लोग दिवाली की जगह ‘नरक चतुर्दशी’ का पर्व मनाते हैं. यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के नरकासुर राक्षस के वध की याद में मनाया जाता है. यहां लोग इस दिन विशेष पूजा करते हैं और अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं.
तमिलनाडु में नरक चतुर्दशी को ‘छोटी दिवाली’ के रूप में मनाने की परंपरा है. इस दिन लोग अपने घरों को साफ करते हैं और विशेष पकवान बनाते हैं. यहां पर यह मान्यता है कि इस दिन नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने भक्तों को अपने आशीर्वाद से धन और समृद्धि का अनुभव कराया.
इसके अलावा, मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में भी दिवाली का जश्न नहीं मनाया जाता. यहां लोग अपने स्थानीय त्योहारों को मनाते हैं, जैसे ‘नरोपा’, जो अपनी अनोखी परंपराओं और रिवाजों के लिए जाना जाता है.
सम्मू गांव में दीवाली मनाने पर लग जाती है आग
भारत भर में धूमधाम से मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक दीवाली के दिन हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के सम्मू गांव में एक अनोखी परंपरा है—यहां दशकों से दिवाली नहीं मनाई जाती है. भोरंज उपमंडल के इस छोटे से गांव में दिवाली के दिन किसी भी घर में पकवान नहीं बनते. गांववाले मानते हैं कि उनके गांव पर एक श्राप है. उनकी मान्यता है कि अगर कोई यहां दिवाली का जश्न मनाता है, तो आपदाएं आती हैं या किसी की अकाल मृत्यु होती है. यहां तक की पकवान बनाने पर घर में आग लगने की बात भी कही जाती है.
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गांव को लगा है श्राप!
गांव के लोग इस मान्यता को बहुत गंभीरता से लेते हैं और कई सौ सालों से दिवाली का उत्सव मनाने से परहेज कर रहे हैं. इस बार भी हमीरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में दिवाली की कोई रौनक नहीं है. स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि पहले यहां दिवाली मनाई जाती थी, लेकिन एक विशेष घटना के बाद से गांव पर यह श्राप लग गया. तब से गांववासियों ने इस पर्व को मनाना छोड़ दिया है. दिवाली के दिन, गांव में सामाजिक और धार्मिक गतिविधियां होती हैं, लेकिन त्योहार का कोई उत्सव नहीं होता. यहां के निवासियों के लिए, दिवाली का दिन एक सामान्य दिन की तरह होता है. वे अपनी दिनचर्या पर ध्यान केंद्रित करते हैं और त्योहारों की भव्यता से दूर रहते हैं.
इस वर्ष, दिवाली 2024, 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी. दिवाली की आप सभी को शुभकामनाएं! इस त्योहार की रोशनी में एकत्रित होकर हम सब एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशियों का जश्न मनाएं. लेकिन इस बार जब आप दीप जलाएं, तो याद रखें कि भारत के कई हिस्सों में यह पर्व अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है.