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बिहार में ‘बाहुबली कौन’, राजधानी में ‘नहीं बिगड़ने देंगे दिल्ली का हाल’…क्या नीतीश और केजरीवाल के नारों की सियासत से तय होगी जीत?

नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल

Election 2025: नववर्ष की शुरुआत के साथ दिल्ली और बिहार दोनों राज्य चुनावी मोड में प्रवेश कर चुके हैं. जहां दिल्ली में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने की संभावना है, वहीं बिहार में अक्टूबर-नवंबर तक चुनाव होने की संभावना जताई जा रही है. इन दोनों राज्यों में राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है, और पार्टियों के बीच एक जोरदार सियासी संघर्ष देखने को मिलेगा. दिल्ली में बीजेपी के लिए सत्ता में लौटने का सपना है, जबकि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला NDA अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है. इन चुनावों के दौरान दो प्रमुख राजनीतिक नारे उभर कर सामने आए हैं—एक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का और दूसरा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का. ये दोनों नारे अपने-अपने राज्य की जनता को एक खास संदेश दे रहे हैं, और सवाल यह है कि क्या इन नारों से जनता का समर्थन मिलेगा?

बाहुबली कौन?

बिहार में राजनीतिक परिदृश्य हमेशा से ही दिलचस्प और जटिल रहा है. नीतीश कुमार ने हाल ही में अपने दल जेडीयू के एक नारे से अपनी राजनीतिक ताकत का इशारा किया है. इस नारे के तहत उन्हें बिहार का ‘बाहुबली’ यानी सबसे ताकतवर नेता के रूप में पेश किया जा रहा है. नीतीश कुमार पाला बदलने के मास्टर रहे हैं.

बिहार में चुनावी रणनीतियों के बारे में हमेशा अटकलें लगाई जाती हैं. भाजपा और नीतीश कुमार के रिश्तों में उतार-चढ़ाव का इतिहास रहा है, और इस बार भी यह स्थिति बनी हुई है. कुछ समय पहले, बिहार के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से राज्य में अकेले अपनी सरकार बनाने की बात कही थी, जिसके बाद विपक्षी पार्टी राजद ने नीतीश कुमार को महागठबंधन में वापस आने का प्रस्ताव दिया. यह स्पष्ट है कि बिहार में चुनावी गणित नीतीश कुमार के आसपास ही घूमता है, चाहे वह एनडीए के साथ हों या महागठबंधन के.

राजद और महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव ने राज्य में बढ़ती बेरोजगारी, कानून व्यवस्था और जातीय जनगणना जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाया है. इन मुद्दों को लेकर महागठबंधन लगातार एनडीए सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है. हालांकि,बिहार में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदलते रहते हैं, और यह देखना होगा कि इस बार नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार की जनता किसे अपना समर्थन देती है—एनडीए को या महागठबंधन को.

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“नहीं बिगड़ने देंगे दिल्ली का हाल, फिर लाएंगे केजरीवाल”

दिल्ली में पिछले एक दशक से अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (AAP) सत्ता में है, और दिल्ली की जनता को मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी योजनाओं के जरिए आकर्षित किया है. दिल्ली में आगामी चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीति को उसी दिशा में आगे बढ़ाया है, जहां महिलाओं, बुजुर्गों और गरीबों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. AAP ने हाल ही में जो नारा दिया है, “नहीं बिगड़ने देंगे दिल्ली का हाल, फिर लाएंगे केजरीवाल”, वह इस बात को दर्शाता है कि पार्टी दिल्ली की जनता को यह विश्वास दिलाना चाहती है कि केजरीवाल के नेतृत्व में ही उनकी समस्याओं का समाधान हो सकता है.

हालांकि, AAP की सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर रही है. बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि केजरीवाल और उनकी पार्टी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और उन्होंने कई वादे किए हैं, जो पूरे नहीं हुए. इसके बावजूद, केजरीवाल और उनकी पार्टी का मानना है कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है, तो वह दिल्ली की जनता को मिलने वाली मुफ्त सुविधाओं को समाप्त कर सकती है, जिससे महंगाई और आम आदमी की समस्याएं बढ़ सकती हैं. यही कारण है कि AAP ने अपनी रणनीति के तहत इस नारे को गढ़ा है, जिससे दिल्ली की जनता को यह संदेश दिया जा सके कि अगर केजरीवाल सत्ता में नहीं रहे, तो उनका जीवन और भी कठिन हो सकता है.

दिल्ली में बीजेपी ने भी अपनी पूरी ताकत झोंकी है. पार्टी का आरोप है कि केजरीवाल पुराने वादों को पूरा किए बिना ही नए वादों की झड़ी लगा रहे हैं. बीजेपी का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार के 10 साल के कार्यकाल के बावजूद दिल्ली में बीजेपी कोई बड़ा बदलाव लाने में नाकाम रही है. दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी ने भी दिल्ली में महागठबंधन से अलग होकर AAP के खिलाफ अपनी जंग छेड़ी है. कांग्रेस के लिए आगामी चुनावों में AAP और बीजेपी से मुकाबला करना एक कठिन चुनौती होगी.

नारों से जनता का समर्थन मिलेगा या नहीं?

बिहार और दिल्ली दोनों ही राज्यों में चुनावी नारे ऐसे हैं, जो जनता के भीतर विशेष संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. बिहार में नीतीश कुमार का “बाहुबली कौन?” नारा यह दर्शाता है कि वह ही राज्य के सबसे बड़े नेता हैं, जिनके साथ कोई भी राजनीतिक गठबंधन जीत सकता है. वहीं दिल्ली में केजरीवाल का “नहीं बिगड़ने देंगे दिल्ली का हाल” नारा यह बताता है कि अगर उनके नेतृत्व में सरकार नहीं बनी, तो दिल्लीवाले अपनी मुफ्त सेवाओं को खो देंगे.

अब सवाल यह है कि इन नारों से जनता का समर्थन मिलेगा या नहीं. बिहार और दिल्ली दोनों राज्यों में राजनीतिक परिस्थितियां बदलती रहती हैं, और जनता के मूड का सही अनुमान लगाना मुश्किल होता है. इन नारों का असर तो यह तय करेगा कि अगले चुनाव में कौन सी पार्टी सत्ता में आएगी, लेकिन इस बार की चुनावी जंग बेहद दिलचस्प होने वाली है.


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