Engineer Rashid Interim Bail: जम्मू-कश्मीर के बारामूला से सांसद इंजीनियर राशिद को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट से जमानत मिल गई है. यह जमानत उन्हें आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के प्रचार के लिए दी गई है. पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश चंदर जीत सिंह ने 28 अगस्त को इंजीनियर राशिद की जमानत याचिका पर सुनवाई की. अदालत ने इस याचिका पर विचार करने के बाद जमानत मंजूर की. जमानत देने का मुख्य कारण था कि राशिद को चुनाव प्रचार के लिए जरूरी समय और स्वतंत्रता प्रदान की जा सके.
पहले की कानूनी प्रक्रिया
इससे पहले, 5 जुलाई 2024 को अदालत ने राशिद को एक विशेष पैरोल दी थी ताकि वे जम्मू-कश्मीर के बारामूला निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद शपथ ले सकें. शपथ के बाद भी राशिद पर टेरर फंडिंग के मामले में आरोप लगे थे, जिसके चलते उन्हें हिरासत में रखा गया था.
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जमानत की शर्तें
राशिद को चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं होने की शर्त पर राहत दी गई है. जमानत की शर्तों के अनुसार, उन्हें अदालत के समक्ष नियमित रूप से पेश होना होगा और किसी भी तरह की गैर-कानूनी गतिविधियों से बचना होगा. राशिद पर आरोप है कि वे टेरर फंडिंग के मामले में शामिल रहे हैं. यह मामला जम्मू-कश्मीर में हिंसा और उग्रवाद से जुड़े संगठनों के फंडिंग से जुड़ा है.
सिम्पैथी फैक्टर
वर्तमान में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद राशिद को आर्टिकल 370 के हटने के बाद गिरफ्तार किया गया था. उनकी जमानत के साथ-साथ उनके परिवार की राजनीति और जनता की सहानुभूति पर भी ध्यान दिया जा रहा है. इंजीनियर राशिद के केस में एक महत्वपूर्ण ‘सिम्पैथी फैक्टर’ सामने आया है. जब राशिद जेल में थे, उनके बेटे अबरार अहमद ने लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार का मोर्चा संभाला. अबरार का रोड शो हिट रहा था, जिसमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक ने भाग लिया. इस भीड़ का एक प्रमुख कारण यह था कि जनता ने सोचा कि राशिद की जीत उन्हें जेल से बाहर कर देगी. राशिद के प्रति इस सहानुभूति की लहर इतनी मजबूत थी कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के दिग्गज नेताओं, उमर अब्दुल्ला और सज्जाद गनी लोन को हराया.
भाई ने विधानसभा चुनाव के लिए छोड़ दी सरकारी नौकरी
राशिद के परिवार की राजनीति में एक और दिलचस्प पहलू सामने आया है. उनके भाई खुर्शीद अहमद शेख ने विधानसभा चुनाव के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी है. शेख ने 2003 से सरकारी स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्य किया था, लेकिन अब उन्होंने VRS (वोलंटरी रिटायरमेंट स्कीम) के तहत अपनी नौकरी छोड़ दी है. शेख ने इस निर्णय को ‘पारिवारिक बलिदान’ बताते हुए कहा कि यह वंशवादी राजनीति नहीं है, बल्कि परिवार की ओर से एक महत्वपूर्ण त्याग का उदाहरण है. उनके अनुसार, यह कदम परिवार की राजनीतिक लड़ाई को समर्थन देने के लिए उठाया गया है .