Explained: बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर का लोकसभा में जाति का तंज इतना प्रचंड हो चुका है कि विपक्ष इसे अपने लिए एक नए मौके के तौर पर देख रही है. बुधवार को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक बुलाई गई, जाति की राजनीति को साधने के लिए नई रणनीति इख़्तियार करने की बातें हुईं. एक लफ़्ज़ में कहा जाए तो कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के बाकी दल जातिगत राजनीति को ही हथियार बनाकर बीजेपी को लगातार काउंटर करते जा रहे हैं. हालांकि, जिस जातिगत जनगणना की कांग्रेस खुद को चैंपियन बताना चाह रही है, दरअसल उसकी वह काफी विरोधी हुआ करती थी. कांग्रेस का प्रसिद्ध नारा ही था, “जात पर-न पात पर मुहर लगेगी हाथ पर”. कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए-2 के शासनकाल में भी जातिगत जनगणना की मांग उठी थी. तब मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार और लालू यादव इसकी ज़ोरदार पैरवी कर रहे थे. लेकिन कांग्रेस ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया था. कांग्रेस खुद को किसी खास जाति-वर्ग से जोड़कर नहीं दिखाना चाहती थी.
पैदा की गई ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की लहर
लेकिन, 2014 के बाद परिस्थितियां ऐसी बदली की बीजेपी ने जातिगत अंतर्विरोधों से ध्यान हटाकर “हिंदुत्व” की एक विशाल अवधारणा आम हिंदू समाज में पिरोने की कोशिश की और काफ़ी हद तक कामयाब भी रही. देश में बहुसंख्यक समाज को एक प्लैटफ़ॉर्म पर रखने के लिए ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की लहर पैदा की गई. कांग्रेस इस लहर में डूबती नज़र आई. ख़ुद कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री सोनिया गांधी को मार्च, 2018 में सार्वजनिक तौर पर कहना पड़ा, “बीजेपी ने प्रचारित किया है कि कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी है. जबकि कांग्रेस के बहुसंख्यक नेता हिंदू हैं और अलग-अलग जातियों से आते हैं. पार्टी में मुसलमान भी हैं लेकिन कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी कहना मेरी समझ से परे है.”
बीजेपी के इलेक्टोरल चक्रव्यूह को तोड़ने में असफल रही थी कांग्रेस
कांग्रेस एक दशक तक बीजेपी के इलेक्टोरल चक्रव्यूह को तोड़ने की कोशिश में असफल रही थी. लेकिन जैसे ही बीजेपी के हिंदुत्व की लहर धीमी पड़ने लगी, कांग्रेस को इसी में इसका तोड़ दिखने लगा. दलित और पिछड़ों की राजनीति कांग्रेस के लिए एक उपयुक्त तोड़ मिला है, जिसके ज़रिए बीजेपी के हिंदुत्व के गठजोड़ को ध्वस्त किया जा सके. कांग्रेस ने अब उन दलों की विचारधारा को अपना बनाने की कोशिश है कि जिनकी पहचान ही जातिगत राजनीति की रही है. लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने पीडीए ( पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नारा बुलंद किया. राहुल गांधी ने भी इस नारे का भरपूर समर्थन किया. अब यह लड़ाई सड़क से संसद तक लड़ी जा रही है. कांग्रेस समेत इंडिया ब्लॉक के तमाम दल यह नैरेटिव बनाने में कामयाब होते दिखाई दे रहे हैं कि बीजेपी पिछला और दलित विरोधी है. गौर करने वाली बात ये है कि बीजेपी भी इस काउंटर को सही तरीक़े से हैंडल नहीं कर पा रही है.
कांग्रेस ने पहले मंडल कमिशन को हवा दी, फिर ठंडे बस्ते में रख दिया
उल्टा अगर राजनीतिक घटनाक्रमों पर गौर करें तो बीजेपी दलित और पिछड़ों के लिए ज़्यादा प्रतिबद्ध रही है. उज्ज्वला गैस, टॉयलेट, आवास, जल और बिजली जैसी तमाम बुनियादी ज़रूरतों का लाभ सबसे ज़्यादा इसी तबके को मिला है. यहां तक कि जब बिहार में जातिगत जनगणना नीतीश सरकार के नेतृत्व में कराई जा रही थी, तब बीजेपी ने इसका विरोध नहीं किया था. पार्टी के तमाम नेताओं ने जाति आधारित जनगणना का समर्थन किया था. हालांकि, राज्य की सरकारों की बात करें तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों के मुख्यमंत्रियों ने जाति आधारित जनगणना को समर्थन नहीं दिया. अभी भी कर्नाटक में जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जा रहे हैं, जबकि वहां सरकार कांग्रेस की है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कांग्रेस ने पहले मंडल कमिशन को हवा दी फिर ठंडे बस्ते में रख दिया. बाद में वीपी सिंह की सरकार ने मंडल कमिशन को लागू करके कांग्रेस की सियासत को ही डूबा दिया. नतीजा हमने देखा है कि तकरीबन 3 दशकों से कांग्रेस यूपी और बिहार में हाशिए पर रही है. लेकिन, अब अपनी तमाम ऐतिहासिक भूलों से इतर कांग्रेस एक नए आत्मविश्वास में लबरेज़ नज़र आ रही है. उसे मंडल 2.O में ही सत्ता की वापसी का ख़्वाब पूरा होता दिखाई दे रहा है.
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नया लग रहा है कांग्रेस का कंटेंट
कहना सही होगा कि नैरेटिव के जिस धुरी पर पहले हम जहां बीजेपी को देखते थे, अब वहां कांग्रेस विराजमान हो गई है. जिस आईटी सेल के ज़रिए बीजेपी नए कंटेंट के साथ हल्ला बोलती थी, वह अब बासी और पुराना हो चुका है. जनता को कांग्रेस का कंटेंट नया लग रहा है. अब कांग्रेस नैरेटिव तय कर रही है और बीजेपी उस नैरेटिव के चक्रव्यूह में घिर जा रही है. कांग्रेस का हर दांव एक नया किक दे रहा है. जाति विशेष का हक़, रोजगार, सिस्टम आदि ऐसे तत्व हैं जिन पर एक दशक से बात तक नहीं हुई है. लिहाज़ा, कांग्रेस के मुद्दे समाज के भीतर एक किक दे रहे हैं. जबकि, बीजेपी के तमाम प्रचंड मुद्दों का या तो निपटारा हो चुका है या जनता उससे उब चुकी है.