Explained: पीएम मोदी की ताबड़तोड़ रैलियां, BJP के आक्रामक तेवर…बंगाल में पॉलिटिक्स का एपिसेंटर बना ‘संदेशखाली’
Explained: जैसे-जैसे पश्चिम बंगाल में सुबह की धुंध छंट रही है, राज्य में एक राजनीतिक बवंडर आने वाला है.पीएम मोदी जल्द ही संदेशखाली में तीन सार्वजनिक रैलियां करने वाले हैं. यह वही संदेशखाली गांव है जो लगभग एक महीने से राजनीतिक तूफान के केंद्र में है. पीएम मोदी मार्च के पहले सप्ताह में एक के बाद एक लगातार तीन चुनावी सभा करने वाले हैं. संदेशखाली पिछले 1 महीने से पश्चिम बंगाल में राजनीति का सबसे बड़ा एपिसेंटर बना हुआ है. बीजेपी संदेशखाली में हुए महिलाओं के साथ अत्याचार के मुद्दे पर दीदी को घेरने की कोशिश में है. वहीं दीदी यानी ममता बनर्जी बीजेपी को कोई मौका देना नहीं चाहती.
बीजेपी लगातार ममता पर दबाव बना रही है. हिंसा ग्रस्त इलाके में पहले एससी-एसटी आयोग ने दौरा किया, फिर राष्ट्रीय महिला आयोग ने और अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संदेशखाली हिंसा और महिलाओं के साथ रेप की घटना पर संज्ञान लेते हुए 4 हफ्ते में चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी से संदेशखाली हिंसा पर रिपोर्ट मांगी है. वहीं संदेशखाली में नेताओं का तो जमावड़ा लगा ही रहता है. संदेशखाली को लेकर बीजेपी जितनी एग्रेसिव है, दीदी की चिंता उससे कहीं अधिक है.यहां हम बंगाल की राजनीति की वो बातें बता रहे हैं जो आपको कोई नहीं बताएगा.
ममता को किस बात का डर?
कभी लाल झंडे से ढके बंगाल को ममता ने तृणमूल के पत्ते से ढक लिया. अब ममता बनर्जी को डर है कि कहीं बीजेपी फूल से इस पत्ते को न ढक ले. ऐसा हम 2009, 2014 और 2019 के चुनावी नतीजे के आधार पर कह रहे हैं. ममता के डर की सबसे बड़ी वजह है पिछले 15 सालों में बीजेपी का शानदार स्ट्राइक रेट. साल 2009 में बीजेपी को एक सीट मिली थी. तब वोट शेयर 2.38 परसेंट था. 2014 में ये स्ट्राइक रेट दोगुना 4.76 परसेंट हो गया, एक से बढ़कर 2 सीट हो गईं. लेकिन 2019 में बीजेपी के लिए राज्य की राजनीति में बूम आया. स्ट्राइक रेट 4.76 परसेंट से सीधे 42.85 हो गया, यानी 9 गुना बढ़ गया और हाथ में 18 सीट आ गईं. लिहाजा बीजेपी का यही परफॉरमेंस दीदी की फिक्र को बढ़ा रहा है.
ममता के ‘हथियार’ से ही ममता को परास्त करने की तैयारी
बीजेपी संदेशखाली पर एग्रेसिव रुख अपना रही है . वहीं ममता बीजेपी को मौका नहीं देना चाहती. इसके पीछे एक बड़ी वजह है. बता दें कि बंगाल की राजनीति में जन आंदोलन का मजबूत अतीत रहा है और ममता बनर्जी को जन आंदोलन की ताकत अच्छे से पता है. शायद ही ममता की सियासी रसूख इतनी बड़ी होती अगर सिंगूर और नंदीग्राम में ज़मीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों को ममता लीड नहीं करतीं. ममता ने आंदोलन के दम पर राज्य में लेफ्ट के 34 साल के साम्राज्य को मिटा कर रख दिया. अब ममता बीजेपी के लिए संदेशखाली को नया संगूर नहीं बनने देना चाहती. वहीं बीजेपी ममता के ‘हथियार’ से ही ममता को परास्त करने की प्लानिंग कर रही है. इसलिए बीजेपी का संदेशखाली को लेकर एग्रेसिव रुख है.
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महज संयोग नहीं है संदेशखाली का चयन
बीजेपी की इस राजनीतिक अभियान के केंद्र के रूप में संदेशखाली का चयन महज संयोग नहीं है. उत्तर 24 परगना जिले में स्थित यह क्षेत्र मौजूदा तृणमूल कांग्रेस (TMC) सरकार के खिलाफ बढ़ते तनाव और सार्वजनिक असंतोष का केंद्र बिंदु रहा है. हमले, भूमि पर कब्ज़ा और यौन हिंसा के आरोप बढ़ गए हैं, जिससे क्षेत्र की कानून व्यवस्था की स्थिति पर लंबा प्रभाव पड़ रहा है.
पीएम मोदी की 1 और 2 मार्च को आरामबाग और कृष्णा नगर में रैलियां करने की योजना है, जिसके बाद 6 मार्च को बारासात में एक महत्वपूर्ण सभा होगी, जिसे इन घटनाओं की सीधी प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है. चूंकि चुनाव आयोग ने अभी तक लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है, इसलिए मोदी की यात्रा को एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में समर्थन जुटाना और भाजपा कैडर के मनोबल को ऊपर उठाना है.