तीखे भाषणों की झड़ी
2024 के आम चुनावों के नतीजों के बाद से राहुल गांधी की बयानबाजी काफी तेज हो गई है. हालांकि वे अपने शुरुआती दिनों से काफी आगे निकल आए हैं. जब उन्हें ‘पप्पू’ कहा जाता था. लेकिन ऐसा लगता है कि उनका मौजूदा ‘अवतार’ सबसे ज्यादा आक्रामक है. उदाहरण के लिए आज के भाषण में गांधी ने महाभारत के ‘चक्रव्यूह’ का हवाला दिया. राहुल गांधी ने आरोप लगाया, “कई हजार साल पहले कुरुक्षेत्र में एक चक्रव्यूह था. मैंने कुछ शोध किया है और क्या आप इस चक्रव्यूह का आकार जानते हैं? यह कमल के आकार का था.”
“अभिमन्यु को ‘चक्रव्यूह’ में फंसा कर मारा, वही अब हिंदुस्तान के साथ किया जा रहा.”- लोकसभा में बोले राहुल गांधी #RahulGandhi #Mahabharat #Trap #LokSabha #VistaarNews pic.twitter.com/JHq41KrHO7
— Vistaar News (@VistaarNews) July 29, 2024
गांधी ने बजट के बारे में भी बात की. उन्होंने कहा, “बीजेपी सरकार ने दो तरीकों से भारत के मध्यम वर्ग को धोखा दिया है. इंडेक्सेशन हटाना और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स बढ़ाना, वे तरीके थे जिनसे बीजेपी ने मध्यम वर्ग को धोखा दिया.” आज का भाषण आम चुनावों के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर उनके पहले भाषण जैसा ही था. अपने भाषण में राहुल गांधी ने सरकार पर आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. राहुल इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे निशाना साधा और अग्निपथ योजना, नीट विवाद, MSP और मणिपुर संघर्ष जैसे कई मुद्दों पर एनडीए सरकार पर हमला बोला.
आरोपों से भरा रहा है राहुल गांधी का राजनीतिक सफर
राहुल गांधी का राजनीतिक सफर कई तरह के आरोपों से भरा रहा है. शुरू से ही राहुल गांधी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता था जो ‘चांदी का चम्मच’ लेकर पैदा हुआ था और जिसे कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व थाली में परोसा गया था. कई लोग उन्हें बहुत हकदार मानते थे और इस तरह की भावनाओं पर खुलकर टिप्पणी करने से नहीं कतराते थे. उन्हें एक अलग-थलग रहने वाले व्यक्ति के रूप में भी देखा जाता था. यहां तक कि जब उन्होंने आम जनता से जुड़ने की कोशिश भी की, तो ऐसा लगता है कि गांधी एक-दो गलतियां किए बिना ऐसा नहीं कर पाए. वे मौखिक गलतियों से जुड़े रहे. इसके साथ ही उन्हें कई उपनाम दिए गए, जिनमें सबसे लोकप्रिय ‘पप्पू’ था. हालांकि ‘पप्पू’ अब काफी आगे निकल चुका है.
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लहजे में दिखा आत्मविश्वास
अगर राहुल के पुराने भाषणों की तुलना आज के भाषणों से की जाए तो साफ तौर पर एक बड़ा अंतर है. राजनीति की समझ से लेकर लहजे में आत्मविश्वास और आश्वासन तक, राहुल गांधी के आज के भाषण सत्ता के उस स्तर पर काम करने वाले राजनेता जैसे हैं जिस पर वे हैं . ये अलग बात है कि राहुल को यहां तक पहुंचने में समय लगा है, लेकिन आज कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी से कम से कम एक हद तक विश्वसनीयता की उम्मीद कर सकती है.
यह नया, ज़्यादा आक्रामक संचार कितना कारगर?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2014 और 2019 के मुक़ाबले 2024 के आम चुनावों में पार्टी का कहीं बेहतर प्रदर्शन ने भी राहुल गांधी की तीखी बयानबाजी को और हवा दे दी है. यह बात लोकसभा में उनके मौजूदा भाषणों में भी साफ़ झलकती है. उनकी बयानबाज़ी में बेहतर नतीजे नज़र आते हैं, लेकिन सवाल अभी भी बना हुआ है कि यह नया, ज़्यादा आक्रामक संचार कितना कारगर होगा? यह मतदाताओं तक पहुंचने में कितना असरदार होगा? सत्ताधारी पार्टी को इससे कितना नुकसान हो सकता है? यह अभी भी एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब सिर्फ़ बातों से नहीं मिल सकता.
अपने भाषणों के दौरान मिलने वाली तालियों और प्रशंसा में खो जाना आसान है और राहुल का स्पष्ट सुधार निश्चित रूप से उनके व्यक्तित्व के इस पहलू से भी आगे निकल गया है. उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके भाषणों से सिर्फ़ अलग-अलग तालियां और हंसी न मिलें, बल्कि उनके आरोप तीखे, सटीक और तथ्य-आधारित होने चाहिए ताकि सत्ताधारी दल को नीति में बदलाव करने या एक-दो खामियां स्वीकार करने पर मजबूर होना पड़े.