Vistaar NEWS

हिंदू नववर्ष और सियासी हलचल…बीजेपी, कांग्रेस और CPM के लिए क्यों अहम है चैत्र का महीना?

जेपी नड्डा, प्रकाश करात, ख़ड़गे

जेपी नड्डा, प्रकाश करात, ख़ड़गे

BJP National Council Meeting: हिंदू नववर्ष की शुरुआत हो चुकी है. इन दिनों चैत्र का महीना चल रहा है. यह महीना सिर्फ धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सियासी दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है. भारतीय राजनीति के इस खास समय में तीन प्रमुख पार्टियां – बीजेपी, कांग्रेस और सीपीएम – अपनी-अपनी रणनीतियां तय करने में लगी हैं. इन पार्टियों के लिए यह महीना खास है क्योंकि हर पार्टी अपनी सियासी ताकत को नया मोड़ देने की कोशिश कर रही है. तो, चलिए जानते हैं कि इस महीने इन पार्टियों के लिए क्या खास हो रहा है?

दक्षिण में ‘कमल’ खिलाने की तैयारी में बीजेपी

बीजेपी के लिए इस बार अप्रैल का महीना बहुत महत्वपूर्ण है. पार्टी ने अपने दक्षिण भारत में पैर पसारने की योजना बनाई है. पार्टी का फोकस अब कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों पर है, जहां अभी तक बीजेपी की पकड़ कमज़ोर रही है.

बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक 18-20 अप्रैल तक बेंगलुरु में होने वाली है. इस बैठक का मुख्य उद्देश्य पार्टी के दक्षिण भारत में विस्तार को लेकर रणनीति बनाना है. दक्षिण भारत में तमिलनाडु और केरल में बीजेपी का प्रभाव बहुत कम है, लेकिन पार्टी इसे बदलने के लिए तैयार है. बीजेपी और आरएसएस दोनों ही अपनी रणनीतियों पर गहन मंथन कर रहे हैं. खासकर केरल और तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं, और बीजेपी को इन राज्यों में जीत की उम्मीद है.

बेंगलुरु की बैठक में पार्टी के भविष्य की दिशा तय होगी. इसमें बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर भी मुहर लगेगी, साथ ही 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए एजेंडा भी तय किया जाएगा. बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती पश्चिम बंगाल, बिहार, और केरल जैसे राज्यों में अपनी स्थिति मजबूत करना है, जहां वह पहले कभी सत्ता में नहीं आ सकी.

संगठन में बदलाव करने जा रही है कांग्रेस

कांग्रेस के लिए भी यह महीना बेहद अहम है. पार्टी का 86वां पूर्ण अधिवेशन 8 और 9 अप्रैल को गुजरात के अहमदाबाद में होने जा रहा है. पिछले कुछ सालों में कांग्रेस को सत्ता में कोई खास सफलता नहीं मिली है, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 के बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीतियों पर फिर से काम करना शुरू किया है.

कांग्रेस ने खासतौर पर बिहार में संगठन को फिर से मजबूत करने की दिशा में काम किया है. पार्टी ने सभी जिला अध्यक्षों से मिलकर उनकी समस्याओं और सुझावों को सुना है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पार्टी के नेता राहुल गांधी ने यह साफ किया है कि इस साल संगठन में बड़े बदलाव किए जाएंगे. कांग्रेस का उद्देश्य 2024 के चुनावों के बाद 2025 में अपनी स्थिति को और मजबूत करना है. अहमदाबाद में होने वाली बैठक में पार्टी के नए दिशा-निर्देश तय किए जाएंगे, जिनसे बीजेपी को चुनौती दी जा सके.

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पार्टी को अब अपने पुराने जमाने की खोई हुई ताकत को वापस पाना है. पार्टी की कोशिश है कि वह तेलंगाना, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अपने शासन को बचाए रखे और साथ ही 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करे. पार्टी के नेताओं का मानना है कि अगर संगठन को सख्त फैसले लेकर चुस्त-दुरुस्त किया जाए तो 2025 में कांग्रेस को नई उम्मीद मिल सकती है.

यह भी पढ़ें: ‘राम’, ‘राष्ट्रवाद’ और ‘मोदी मैजिक’…45 साल में ऐसे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई BJP

संकट से उबरने की कोशिश में सीपीएम

सीपीएम के लिए यह समय अपने सबसे कठिन दौर से गुजरने का है. पार्टी के इतिहास में यह वह समय है जब वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. सीपीएम के पास अब केवल केरल राज्य ही बचा हुआ है, जहां वह सत्ता में है. लेकिन वहां भी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ से कड़ी चुनौती मिल रही है.

सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी के निधन के बाद, पार्टी अब नए महासचिव की तलाश कर रही है. पार्टी को ऐसे नेता की जरूरत है जो उसके सियासी जनाधार को फिर से मजबूत कर सके. खासकर केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां सीपीएम को कांग्रेस से मुकाबला करना है.

सीपीएम के लिए इस महीने का महाधिवेशन तमिलनाडु के मदुरई में हो रहा है. पार्टी के नेताओं का कहना है कि वह पार्टी के खोए हुए विश्वास को फिर से हासिल करने की कोशिश करेंगे. हालांकि, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्य जहां सीपीएम की सरकार नहीं है, वहाँ पार्टी के लिए अपनी स्थिति वापस पाना बहुत चुनौतीपूर्ण है. केरल में भी कांग्रेस के साथ उनकी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है.

क्या हो सकता है इन पार्टियों का भविष्य?

बीजेपी, कांग्रेस और सीपीएम तीनों ही पार्टियां अपने-अपने तरीके से देश की राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं. बीजेपी दक्षिण भारत में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए रणनीति बना रही है, वहीं कांग्रेस अपनी संगठनात्मक ताकत को फिर से स्थापित करने की कोशिश में है. सीपीएम अपने बिखरे हुए जनाधार को फिर से जोड़ने के लिए नए नेतृत्व की तलाश कर रही है.

हर पार्टी के लिए यह महीना एक नया मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि अप्रैल के अंत तक इनकी रणनीतियां स्पष्ट हो जाएंगी. फिर चाहे वह कांग्रेस का नया संगठनात्मक ढांचा हो या बीजेपी का दक्षिण भारत में ‘कमल’ खिलाने की योजना, या फिर सीपीएम का खुद को फिर से खड़ा करने का प्रयास. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन राजनीतिक दलों की रणनीतियां कितनी सफल होती हैं.

Exit mobile version